भारत सहित दुनिया भर में दूसरी बार मजदूर दिवस, घोषित महामारी और तालाबंदी के दौरान मनाया जा रहा है। यह दिवस जनसाधारण को नए समाज के निर्माण में श्रमिकों के योगदान और ऐतिहासिक श्रम आंदोलन का स्मरण कराता है। देशभर में हुए तालाबंदी ने अनौपचारिक क्षेत्र में काम करने वाले असंख्य मजदूरों की आजीविका के साधनों को खत्म कर दिया है। इससे एक बात समझ में आ रही है कि देश को स्वास्थ्य संबंधी चुनौतियों के साथ-साथ रिक्शेवालों, ठेले-रेहड़ी वालों और दिहाड़ी कमाने वाले श्रमिकों के बढते असंतोष और असुरक्षा की भावना के लिए त्वरित कदम उठाने होंगे।

इसके अंतर्गत वंचित वर्गों को खाद्यान्न उपलब्ध कराना, मनरेगा की दिहाड़ी को बढ़ाना, विधवाओं और पेंशन उपभोक्ताओं को अग्रिम राशि देना और स्वयं सहायता समूह की महिलाओं की ऋण सीमा में विस्तार करने होंगे। पिछले साल केंद्र सरकार ने बहुत सारी योजनाओं और राहत पैकेजों की घोषणा की और अन्य कई कदम उठाए गए। इन कदमों को अपर्याप्त बताया जा रहा है। प्रवासी श्रमिकों के लिए केंद्र सरकार को असंवेदनशील भी माना जा रहा है। केंद्र ने फिलहाल प्रवासी मजदूरों की व्यवस्था का भार राज्य सरकारों पर डाला है।
कुछ व्यवस्था की गई है, लेकिन अभी बहुत कुछ किए जाने की जरूरत है। पिछले दो वर्षों से जीएसटी काउंसिल को लेकर राज्यों ने जिस प्रकार का समन्वय और सहयोग किया है, उसी प्रकार इस महामारी से निपटने के लिए भी केंद्र और राज्यों के बीच एक प्रकार की साझेदारी का वातावरण बनाए जाने की आवश्यकता है।
’मनीष कुमार, पटना, बिहार