सरकार जब विनिवेश शब्द का प्रयोग करती है तो इसका अर्थ समझ लेना भी जरूरी है। विनिवेश से सरकारी संपत्ति या कंपनी के कुछ हिस्सों को किसी कॉरपोरेट के हाथों मे बेचती है ओर उसे बेचने के लिए बड़ी रकम का लक्ष्य रखा जाता है। हम यह जानते है कि पहले की सरकारों ने भी अपनी कुछ हिस्सेदारी बेची थी, लेकिन अब तक इक्यावन प्रतिशत हिस्सा अपने पास रखने की कोशिश रही है। आज देश किस परिस्थिति में है, यह जान लेना भी महत्त्वपूर्ण है।
निजीकरण के लिए लगभग अट्ठाईस सरकारी महकमे निजी कॉरपोरेटों के हाथों में जा चुके हैं। अब सरकार ने बैंक, रेलवे प्लेटफार्म, दिल्ली, मुंबई, हैदराबाद हवाई अड्डा भी बेचने की बात कर रही है। हैदराबाद हवाई अड्डा में सरकार की भागीदारी छब्बीस प्रतिशत है और अब यह भी बिकने के लिए तैयार है। सवाल है कि आखिर कैसे देश की अर्थव्यवस्था इतनी खराब हो गई कि सरकार को निजीकरण या विनिवेश के लिए सरकारी संपत्ति, बैंकों आदि बेचने की नौबत आ गई। सरकारी बैंकों से ऋण उठाने वाले कॉरपोरेट, शिक्षा ऋण, किसान ऋण आदि विभिन्न प्रकार के ऋण लेते हैं। लेकिन जब यही कॉरपोरेट अपने आपको दिवालिया घोषित करके या पैसा को लेकर विदेश भाग खड़े होते हैं, तब इस पर सरकार कुछ नहीं कर पाती, कोई कदम नहीं उठा पाती। दूसरा बड़ा कारण रहा है कि सरकार के कहने पर बैंक से ऋण लेने वालों को ‘कर्ज माफी’ दे दी जाती है,, जिससे बैंको को भारी नुकसान उठाना पड़ता है और इसी का असर धीरे-धीरे अर्थव्यवस्था पर इसका पड़ता है और बैंकों के डूबने के आसार होते हैं।
सरकार अक्सर कहती है कि बैंकों को करोड़ों की पूंजी दी, तो क्यों बैंकों को निजी क्षेत्र के हाथों में दे दिया। सरकार यह बताती तो है कि उन्होंने बैंको को इतना पैसा दिया, लेकिन पता नहीं, यह पक्ष क्यों नहीं बताया जाता कि सरकार के कहने पर बड़ी तादाद में कर्जमाफी के कारण ये परिस्थितियां उत्पन्न होती हैं। बैंको को मुनाफा होता भी है तो उससे अधिक एनपीए होता है, जो लाभ को नकारात्मक स्थिति में पहुंचा देता है। सरकार ने बैंकों के निजीकरण के लिए जिन बैंकों का एलान किया है, उनमें चार बैंकों को चुना गया है। हाल में इनमें से दो बैंकों का निजीकरण इस वर्ष के अंतर्गत होने के बारे में सरकार ने कहा है।
लेकिन क्या जरूरी है बैंक प्राइवेट हाथों में होंगे तो वे नहीं डूबेंगे? हम भूले नहीं होंंगे कि पिछले कुछ सालों में आइसीआइसीआइ बैंक, लक्ष्मी विलास बैंक, यस बैंक आदि में काफी गड़बड़ियां देखी गई हैं। इससे यह साबित नहीं होता कि निजी बैंकों में सुधार की अपेक्षा की जा सकती है। इन बैंकों के डूबने की स्थिति सामने आती है, तब सरकार निजी बैंकों की जिम्मेदारी सरकारी बैंकों को ही देती हैं। आइडीबीआइ बैंक का निजीकरण हो चुका, बैंकों के निजीकरण के खिलाफ बैंक यूनियनों ने विरोध भी जताया। हालांकि हम जानते हैं कि इन वर्षों मे जितने रोजगार प्राप्त नहीं हुए, उनसे अधिक बेरोजगारी बढ़ चुकी हैं। लगभग दस हजार अधिक कंपनिया बंद हो गर्इं पूरे देश में और सरकार के बैंकों के निजीकरण के कारण बैंककर्मियों की नौकरियों पर खतरा बना हुआ है।
’मोनिका, पालम, नई दिल्ली, पालम