भारत की बैंकिंग सेक्टर में कई तरह की चुनौतियां सामने आ रही हैं। बीते कुछ सालों में देश के बैंकिंग परिदृश्य में काफी बदलाव आया है। नई तकनीकी और बैंकिंग व्यवहार ने उपभोक्ताओं की जरूरतों को भी बढ़ा दिया है। वर्तमान स्थिति देखें तो कोरोना महामारी ने बैंकिंग ढांचे को क्षति पहुंचाई है। एनपीए में बढ़ोतरी, वित्तीय कठोरता में कमी और दक्षता में गिरावट आदि ने भारत के बैंकिंग क्षेत्र को गंभीर रूप से प्रभावित किया है। सरकार को बैंकों की हालत को ठीक करने के लिए सुधार के कदम उठाने चाहिए। हालांकि सरकार ने कुछ बैंकिंग सुधारों की शुरुआत की है, जिसमें वित्त की कमी को पूरा करने के लिए विकास वित्त संस्थान की स्थापना और एनपीए से निपटने के लिए ‘बैड बैंक’ की प्रक्रिया शुरू की है। बैंकों में पूंजी जुटाने के मामले में अतिरिक्त बोझ कम करने के लिए कुछ बैंकों के निजीकरण की मंजूरी भी दी है। लेकिन ये उपाय नाकाफी हैं।

जहां पर राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय बैंक हैं, वहां पर सरकार को छोटे-छोटे बैंक खोलने की आवश्यकता है, ताकि राज्यों के स्थानीय व्यापार, उद्योग और कृषि को बढ़ावा मिल सके। ये छोटे-छोटे बैंक कई क्षेत्रों में भी अनिवार्य वित्त की पहुंच को आसान बना सकेंगे। साथ ही बैंकों के कामकाज में सुधार करना चाहिए, क्योंकि सरकारी बैंकों की संख्या घट कर बहुत कम हो गई है। व्यवस्थाएं भी शून्य है। स्टेट बैंक ऑफ इंडिया को भी बड़े स्तर पर ब्याज दरों को मुक्त करने और एसएलआर में कटौती के लिए प्रयास करने की जरूरत है। सरकार की मदद से एनपीए से निपटने के लिए मजबूत व्यवस्था बनानी होगी।
-रितिक सविता, दिल्ली विवि, दिल्ली