तेल की कीमतों में बार-बार बढ़ोतरी आम आदमी पर भारी पड़ती है। अगर यह प्रवृत्ति जारी रही, तो विकास संभव नहीं होगा। रूस-यूक्रेन युद्ध का असर अब वैश्विक बाजार और दुनिया के देशों में आम जनजीवन पर पड़ना शुरू हो गया है। इसी का नतीजा है कि अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल का दाम दस साल के उच्चतम स्तर पर पहुंच गया।

भारत तेल की पचासी प्रतिशत से ज्यादा आपूर्ति के लिए अन्य देशों पर निर्भर है। हालांकि, भारत तेल आयात का एक प्रतिशत ही रूस से आयात करता है। मगर अंतरराष्ट्रीय बाजार में दाम बढ़ने का सीधा असर तो पड़ेगा ही। ऐसे में सवाल है कि क्या हमारी सरकार के पास पेट्रोलियम उत्पादों की कीमतों को स्थिर बनाए रखने या कीमतें कम करने का कोई विकल्प नहीं है? निश्चित तौर पर सरकार के पास इन उत्पादों के दाम घटाने के विकल्प हैं।

इनमें कीमतों को कम करने और इन पर कर घटाने के विकल्पों पर विचार किया जा सकता है। यह पूरी तरह सरकार के हाथ में है। कर घटा कर सरकार ईंधन को सस्ता कर लोगों को राहत दे सकती है। उत्पाद शुल्क और वैट में कटौती की भरपाई सरकारें अपने फिजूलखर्ची को कम करके कर सकती हैं। पर इसके लिए सरकार की मंशा होनी चाहिए।

  • मनीष कुमार, गोपालगंज