कई राज्यों में चुनाव नजदीक हैं। सभी राजनीतिक दल, खासकर आम आदमी पार्टी, मुफ्त बिजली देने का वादा कर लोगों को लुभाने का प्रयास कर रहे हैं। प्रति माह तीन सौ यूनिट तक मुफ्त बिजली और लंबित बिलों की माफी के वादे किए जा रहे हैं। पर प्रश्न यह है कि ऐसे वादों से किसे फायदा होगा और अंत में कौन मुफ्त बिजली का खर्च झेलेगा? मुफ्त बिजली देने से ऊर्जा की फिजूलखर्ची बढ़ जाती है। इससे बिजली वितरण में सेवा की गुणवत्ता की उपेक्षा के कारण बार-बार बिजली गुल होती है और बिजली के उपकरण जल जाते हैं। पहले से ही कर्ज में डूबी राज्य सरकारों पर ऊंची सब्सिडी का बोझ है, जो कि करों के रूप में जनता से ही वसूला जाता है।

विडंबना यह है कि सरकार द्वारा खपत का वास्तविक अनुमान लगाने के लिए किसी भी मीटरिंग प्रयास को प्रतिरोध का सामना करना पड़ता है, क्योंकि इसे बिजली शुल्क लगाने की दिशा में पहला कदम माना जाता है। मुफ्त बिजली वितरण पूरी तरह से विफल है, लेकिन मुफ्त वितरण को रद्द करने के निर्णय के लिए साहसी राजनीतिक इच्छाशक्ति सरकार नहीं रखती। मुफ्त बिजली का वितरण आर्थिक सहायता के हकदार गरीब वर्ग को प्रत्यक्ष लाभ जैसे सबसिडी का उनके बैंक खाते में जमा किए जाने को कठिन बना देता है। ये विफल योजनाएं अंतत: गरीब वर्ग को वित्तीय संकट में डाल देती हैं और बिजली वितरण कंपनियां और राज्य सरकारें निराशा महसूस करती हैं।

मानव जीवन की गुणवत्ता में सुधार के लिए अच्छी बिजली आपूर्ति आवश्यक है। इसलिए वित्तीय रूप से स्थिर बिजली उत्पादन कंपनियों की आवश्यकता है। मुफ्त बिजली आपूर्ति एक अल्पकालिक राहत है, जो विशेष रूप से उन लोगों को प्रदान की जानी चाहिए, जिन्हें इसकी सख्त जरूरत है। जिस सरकार के मन में अपने लोगों के दीर्घकालिक हित हों, उसे मुफ्त बिजली लाभार्थियों को सीमित करने के लिए काम करना होगा।
’परमवीर ‘केसरी’, मेरठ</p>