हमारे देश की महिलाएं पुरुषों से किसी भी क्षेत्र में पीछे नहीं हैं। देश में नाम कमाने के साथ-साथ विदेश में भी राष्ट्र का नाम रोशन कर रही हैं। लेकिन आज भी भारत में महिलाओं को ऊंचे मुकाम तक पहुंचने के बाद भी भेदभाव का शिकार होना पड़ता है। हाल में भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड (बीसीसीआइ) ने महिला क्रिकेट खिलाड़ियों को सालाना अनुबंध दिए जाने की घोषणा की है, जिसमें उन्हें पुरुष क्रिकेट खिलाड़ियों को दिए जाने वाले सालाना अनुबंध के पैसे से चौदह गुना कम मेहनताना मिलेगा। सवाल है आखिर महिला खिलाड़ियों के साथ ऐसा भेदभाव क्यों किया जा रहा है?

बीसीसीआइ का यह फैसला उसके पुरुषवादी रवैया को दशार्ता है। कुछ दिन पहले ही इंग्लैंड जाने वाली खिलाड़ियों के कोरोना जांच के मामले में भी बोर्ड ने भेदभाव वाला रुख अपनाया था। जहां पुरुष खिलाड़ियों को जांच की सुविधा उनके घर पर उपलब्ध कराई गई, वहीं महिला क्रिकेटरों को खुद जांच करवा कर रिपोर्ट लाने को कहा गया। बीसीसीआइ के ऐसे व्यवहार से यह सवाल उठता है कि आखिर कब तक महिलाओं को भेदभाव का शिकार होना पड़ेगा? वैसे तो सरकार महिलाओं को बढ़ावा देने और सशक्त करने के लिए राष्ट्रीय स्तर पर अनेक योजनाएं चलाने के दावे करती रहती है, लेकिन अगर राष्ट्रीय स्तर पर ही महिलाओं के साथ भेदभाव की खबरें आएंगी तो इसका देश में क्या संदेश जाएगा।

क्रिकेट बोर्ड को अपने इस तरह के भेदभाव भरे व्यवहार में सुधार करने की आवश्यकता है। साथ ही, सरकार को भी यह सुनिश्चित करना चाहिए कि ऐसी घटनाओं का संज्ञान ले और उन पर सख्ती से रोक लगाए जो लैंगिक असमानता को बढ़ावा देती हों।

’गौरी सिंह, हरियाणा