संपादकीय ‘आतंकवाद के खिलाफ’ (14 अप्रैल) में अमेरिकी नीति और उसके व्यवहार को लेकर करारा तंज है। भारत ने चीन और पाकिस्तान से युद्ध के समय अमेरिक से सहयोग की अपेक्षा की थी, मगर वह नहीं मिला और रूस हमारा विश्वास पात्र बन गया।
उसका एहसान भारत मानता है, इसलिए भारत रूस का नैतिक विरोध नहीं कर सकता। आज हमारी तमाम क्षेत्रों में प्रगति और उपलब्धियों ने हमें मजबूत बनाया है। अब इन हालातों में अगर अमेरिका हमारे नजदीक आता है, तो यह उसकी मजबूरी ही है।
भारत भले रूस के करीब रहे, पर यह अमेरिका की परीक्षा की घड़ी है। ऐसे में अगर अमेरिका आतंकवाद के खिलाफ उठ खड़ा होता है, तो यह दुनिया के लिए भी राहत की बात होगी।
अमृतलाल मारू ‘रवि’, धार, मप्र