इक्कीस जून को विश्व के अनेक देशों में ‘योग दिवस’ मनाया गया। अपने यहां भी यह दिवस बहुत बड़े पैमाने पर मनाया गया लेकिन खेद की बात रही कि इस विशाल योग समारोह में भाजपा को छोड़कर किसी भी दूसरे राजनीतिक दल के लोग नजर नहीं आए। जाने-अनजाने इन दलों ने योग को भाजपा का समारोह मान लिया।
मेरे खयाल से विरोधी दलों को भी अपने-अपने स्तर पर योग दिवस मनाना चाहिए था। महर्षि पतंजलि न तो भाजपाई थे, न कांग्रेसी और न वामपंथी। वे राजनीति से मुक्त एक सच्चे साधक थे। माना कि आज बाबा रामदेव की सहानुभूति भाजपा के साथ है लेकिन इसका यह अर्थ कतई नहीं कि हम योग पर उनका कॉपीराइट मान लें।
योग हमें सन्मार्ग दिखाता है। यह जुदा बात है कि देश में इस समय जो वातावरण है, उसमें योग विद्या का इस्तेमाल कुछ निज हितों को साधने के लिए किया जा रहा है। बहरहाल, योग एक महत्त्वपूर्ण विद्या है और इसका उपयोग बिना किसी भेदभाव के वैसे ही किया जाना चाहिए जैसे हम हवा-पानी का करते हैं। कल अगर कोई राजनीतिक दल ‘जल दिवस’ मनाता है तो क्या दूसरे दल ‘जल’ से परहेज करने लगेंगे?
सुभाष चंद्र लखेड़ा, द्वारका, नई दिल्ली