पिछले कई वर्षों से देखने में आ रहा है कि प्रदेशों में शिक्षक और अन्य पदों के लिए चयन बोर्ड द्वारा चयनित अभ्यर्थियों को चयन के बावजूद बरसों लटकाया जाता है। क्यों नहीं उन्हें समय पर नियुक्तियां दी जाती हैं। इस अड़ंगेबाजी में कहीं भ्रष्टाचार की बात तो नहीं? अगर नहीं है तो फिर जैसे ही चयन बोर्ड परिणाम घोषित करता है और मेरिट लिस्ट बना देता है तो उसी वक्त से नियुक्ति की प्रक्रिया शुरू कर देनी चाहिए।
आखिर क्यों नहीं होती और अभ्यर्थियों को मजबूर होकर प्रदर्शन करना पड़ता है। बिहार में चयन के बावजूद नियुक्ति न मिलने पर प्रदर्शन कर रहे अभ्यर्थियों पर पुलिस ने बर्बरता पूर्वक लाठी चलाई। सरकारों को अपनी व्यवस्था सुधारनी चाहिए, ताकि परिणाम के बाद नियुक्तियां जल्दी कराई जा सकें। केंद्र सरकार और सुप्रीम कोर्ट को भी ऐसे मामलों में संज्ञान लेना चाहिए, ताकि अभ्यर्थियों का भविष्य खराब न होने पाए।
शकुंतला महेश नेनावा, इंदौर</p>
फिर आंदोलन
सरकार ने तीन विवादित कृषि कानून वापस ले लिए थे, लेकिन उसके साथ किसान की एक और बड़ी मांग थी, जो अभी तक पूरी नहीं हो पाई है और उसे लेकर किसान फिर सड़क पर उतर कर आंदोलन कर रहे है। संयुक्त किसान मोर्चा वापस खड़ा हो गया है। किसान करीब नौ मांगें लेकर फिर उतर आए हैं। सरकार को घेरने की कोशिश की जा रही है।
लखीमपुर खीरी की घटना में किसानों को इंसाफ, स्वामीनाथन आयोग की सिफारिशों को लागू करना, किसान का कर्ज माफ करना, बिजली बिल 2022 तक माफ करना, भारत डब्यूटीओ से बाहर आए, समर्थन मूल्य का भुगतान, किसानों पर से केस हटाने और अग्निपथ योजना वापस लेने जैसी मांगों को लेकर किसान ने आंदोलन शुरू किया है। किसान नए सिरे से अपने हक के लिए खड़ा हो गया है। देश बदल रहा है।
इसलिए किसान भी अपनी दीनहीन और कमजोर छवि बदलना चाहता है। मगर सरकार किसान-विरोधी नहीं है। केंद्र सरकार भी चाहती है कि किसान की दशा सुधरे। देश का अन्नदाता किसान की आर्थिक स्थिति बेहतर बनाने के लिए सरकार हर समय प्रयास कर रही है।पर किसानों की मांगों को सरकार कब तक पूरा करेगी, यह प्रश्न मुंह बाए खड़ा है।
कांतिलाल मांडोत, सूरत