एक कहावत है कि चोरी और सीनाजोरी, जो पश्चिमी बंगाल की मुख्यमंत्री की मंत्रियों पर सटीक बैठती है। ममता सरकार के पिछले कार्यकाल में शिक्षामंत्री रहे पार्थ चटर्जी (वर्तमान में वाणिज्य एवं उद्योग मंत्री) को शिक्षक भर्ती में करोड़ों के घोटाले में ईडी ने गिरफ्तार कर लिया है। उनके सहयोगियों के यहां से छापेमारी में करोड़ों की नकदी और सोने के बिस्कुट बरामद किए गए हैं, जो बड़े पैमाने पर किए गए भ्रष्टाचार को उजागर करता है। बंगाल में जब भी सरकार के खिलाफ शिकायत पर केंद्रीय एजेंसियां जांच करने पहुंची, चाहे सारदा घोटाला रहा हो या अन्य, केन्द्र सरकार पर राजनीतिक दबाव बनाने का आरोप लगाकर भ्रष्टाचार पर पर्दा डाला जाता रहा और ममता बनर्जी द्वारा मंत्रियों का बचाव किया जाता रहा। गनीमत है कि ऐसी जांचों का आदेश उच्च न्यायालय का है, नहीं तो पार्थ चटर्जी को हरिश्चंद्र बनाने का कोई नया शिगूफा छोड़ा जा चुका होता।

अपने को पाक-साफ कहने वाली ममता को जवाब देना होगा कि ऐसे भ्रष्ट नेता नाक के नीचे अवैध गतिविधियों में लिप्त रहे और उन्हें भनक भी नहीं लगी। क्या ऐसे भ्रष्ट मंत्रियों से मेधावी और कुशल शिक्षकों के चयन की उम्मीद की जा सकती है? योग्य एवं हरफनमौला अभ्यर्थी जो दर-दर की ठोकरें खा रहे, क्या ऐसी ही मानसिकता का परिणाम नहीं?
पवन कुमार मधुकर, रायबरेली

निराधार बयान

हाल ही में अपने उपमुख्यमंत्री पर सीबीआइ जांच की सिफारिश से भड़के दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने टीवी पर वक्तव्य दिया कि हम भगत सिंह की औलाद हैं, सावरकर की नहीं, जिन्होंने अंग्रेजों से माफी मांगी थी। उन्होंने अपने कथन से भाजपा को परोक्ष रूप से घेरने की कोशिश की, जो वीर सावरकर को अपना आदर्श मानते हैं, पर इस कार्य से उन्होंने न केवल वीर स्वतंत्रता सेनानी सावरकर को अपमानित किया, बल्कि वे भगत सिंह के सावरकर के प्रति आदर को भी छिपा गए।

भगत सिंह ने स्वयं एक लेख जो 15 और 22 नवंबर 1924 को ‘मतवाला’ अंक में दो बार प्रकाशित हुआ, में सावरकर का उल्लेख किया था। सावरकर की पुस्तक ‘1857 स्वतंत्रता समर’ के एक संस्करण को गुप्त रूप से भगत सिंह ने ही प्रकाशित करवाया था, क्योंकि अंग्रेज इसे प्रतिबंधित कर चुके थे। आजाद हिंद फौज के निर्माण में भी इस पुस्तक की भारी भूमिका रही। सावरकर भी भगत सिंह से स्रेह करते थे। जब 31 मार्च को भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव को फांसी दी गई, तो इन युवाओं को श्रद्धांजलि अर्पित करते हुए सावरकर ने एक कविता लिखी जो दस्तावेजों में उपलब्ध है। नेताओं द्वारा अपनी राजनीतिक प्रतिद्वंद्विता के लिए इन सेनानियों के नाम का दुरुपयोग न केवल निंदनीय, बल्कि इनका अपमान दंडनीय भी होना चाहिए।
पुनीत अरोड़ा, मेरठ</p>