पूरी दुनिया में कोविड-19 यानी कोरोना विषाणु के प्रकोप ने सामाजिक, आर्थिक, राजनीतिक, धार्मिक और वित्त संरचनाओं को विचलित कर दिया है। ऐसे में भारत और यहां के आम लोगों की आर्थिक हालत बहुत बुरी हो चुकी है। दूसरी ओर, महंगाई आसमान छू रही है। गरीब वर्ग और एक निश्चित वेतन पाने वाला व्यक्ति जो पहले ही महामारी के कारण अन्य समस्याओं से जूझ रहा था तो अब महंगाई के चलते मार खा रहा है।
मुद्रास्फीति के कारण रोजमर्रा की चीजें महंगी होती जा रही हैं और गरीब वर्ग के लोगों को उसका नुकसान उठाना पड़ रहा है। कई राज्यों में प्रतिदिन पेट्रोल-डीजल के दाम बढ़ने से जनता को पहले ही परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है, वहीं घरेलू सामान तेल, गैस और खाद्य पदार्थों की कीमतों में बढ़ोतरी ने लोगों को संकट में डाल रखा है। महामारी के कारण देश की आधी जनसंख्या बेरोजगार बैठी है, लोग दो वक्त की रोटी पाने के लिए संघर्ष कर रहे हैं और ऐसे में महंगाई का इस तरह बढ़ना उनकी मुश्किलों को और बढ़ा रहा है।
देश की जनता सरकार के वादों पर भरोसा करके उन्हें वोट देती है, ताकि वह उनकी समस्याओं का हल कर करे, लेकिन चुनाव में जीतने के बाद सरकार अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति को महत्त्व देती है, न कि देश के नागरिकों को। भाजपा जहां सत्ता में आने से पहले महंगाई के विरोध मे थी और इसी विषय को अपने चुनाव का मुख्य मुद्दा बना कर उसने चुनाव में जीत हासिल की, वहीं अब वह महंगाई पर चुप्पी साधे बैठी है। यह लगातार पांचवा महीना है जब थोक महंगाई दर में तेजी आई है। हर ओर से महंगाई अर्थव्यवस्था पर हमला बोल रही है। अगर हालात में सुधार नहीं हुआ तो विकास दर के अनुमान कमजोर पड़ सकते हैं और रोजगार समेत बाकी सभी मोर्चों पर लोगों और सरकार को मुश्किलों का सामना करना पड़ सकता है।
’कोमल वर्मा, सरिता विहार, दिल्ली</p>
ईर्ष्या की अग्नि
आज हम देख रहे हैं कि हर जगह हर मनुष्य के भीतर मन में कोई न कोई अग्नि लगी हुई है। कहीं काम की अग्नि तो कहीं क्रोध की, कहीं लालच की तो कहीं घमंड की। इन सबके अलावा एक अग्नि ऐसी भी है जो मनुष्य की सफलता, निराशा और उसके दुख का कारण बनी हुई है और वह है ईर्ष्या की अग्नि। यह अग्नि बहुत ही खतरनाक है। इस अग्नि में हमारे सपने पूरे होने से पहले ही जल कर राख हो जाते हैं। हमारा लक्ष्य सिर्फ हमारे खयालों तक ही रह जाता है। मंजिल बिल्कुल आईने के प्रतिबिंब की तरह हो जाती है, जिसे हम देख तो सकते हैं, लेकिन पा नहीं सकते।
सामान्य तौर पर किसी व्यक्ति को ईर्ष्या अपनी करीबी लोगों से ही होती है, जैसे पड़ोसियों, मित्र, संबंधियों, रिश्तेदारों से, एक विद्यार्थी को दूसरे विद्यार्थी से, सहकर्मी से, परिजनों से ईर्ष्या हो सकती है। जब एक व्यक्ति दूसरे व्यक्ति से स्वयं को किसी क्षेत्र, पद या सुविधा आदि में कम आंकता है, तब ईर्ष्या अपना प्रभाव दिखाना शुरू करती है। आखिर यह ईर्ष्या अपना प्रभाव दिखाती कैसी है? ईर्ष्या मनुष्य आत्मा के अंतर्मन में असीम शक्तियों को धीरे-धीरे जला कर भस्म कर देती है। जिससे अंतर्मन पूरी तरह से खोखला और शक्तिहीन हो जाता है। इसके बाद हम अपने को इतना कमजोर अनुभव करने लगते हैं कि हमारी सफलता के मार्ग में आने वाली बाधाओं का भी हम सामना नहीं कर पाते हैं। और अंत में निराशा और असफलता ही हमारे हाथ आती है।
’अंजली नर्वत, खेड़ी कलां, हरियाणा