देखा जाए तो पिछले वर्ष हिमालय क्षेत्र में और विदेश में आए भूकंप की तीव्रता अधिक थी। हिमालयन प्लेट में भूकंप का खतरा बना रहता है। पूर्व जापान में आए शक्तिशाली भूकंप के झटके से कम ऊंचाई की सुनामी आई, परमाणु संयंत्र को ठंडा रखने की व्यवस्था पर पर असर पड़ा था, लेकिन कोई भी हताहत नहीं हुआ, क्योंकि वहां पर भूकंप से संभलने की प्रणाली लगी है। भूगर्भ वैज्ञानिकों के शोध के अनुसार हिमालयन प्लेट के संधि-स्थल पर सर्वाधिक दबाव बन रहा है।

उनका मानना है कि जब कभी भूगर्भीय संरचना मे तेजी से हो रहे बदलावों के कारण धरती से उष्मा उत्सर्जित होकर निकलती है, तो वह भी भूकंप आने का एक लक्षण दर्शाती है।हिमालयन प्लेट क्षेत्र और भूकंप प्रभावित क्षेत्र में भूकंप के खतरे को देखते हुए अभी से प्रयास प्रारंभ कर देना चाहिए। इन प्रयासों से भूकंप को रोका तो नहीं जा सकता, लेकिन उसकी विनाशक क्षमता को तो कम कर जानमाल की हानि में कमी लाई जा सकती है। इसके लिए सभी प्रदेशों में भूकंप अवरोधी संरचनाओं और अन्य कोशिशों पर ध्यान देकर भूकंप के झटके सहन करने वाला क्षेत्र बनाया जाना चाहिए।
संजय वर्मा ‘दृष्टि’, मनावर, धार

पाक का भविष्य

सन 1947 में दो संप्रभु राष्ट्र भारत और पाकिस्तान की नींव रखी गई। उस समय दोनों राष्ट्रों की राजनीतिक और आर्थिक स्थिति अलग-अलग थी। दोनों ने अपनी राजनीतिक और आर्थिक विकास की शुरुआत एक समय ही की थी। भारत विकास की ओर अग्रसर होते हुए विश्व के सबसे लोकतांत्रिक देशों में से एक देश बना, जबकि पाकिस्तान आतंकवादी गतिविधियों और संगठनों को बढ़ावा देते हुए लगभग एक निरंकुश और सैन्य शासन की ओर अग्रसर होता गया। कहीं न कहीं इसका मूलभूत कारण की ओर देखे तो यह पाकिस्तान में व्याप्त राजनीतिक अस्थिरता का प्रभाव था।

भारतीय राजनेताओं के कुशल नेतृत्व ने भारत को विश्व के विकासशील देशों की श्रेणी में रखा, जबकि पाकिस्तानी राजनेताओं की असफलता ने इसे महंगाई, बेरोजगारी जैसी तमाम समस्याओं की ओर अग्रसर किया। इन सभी के कारण वहां राजनीतिक अस्थिरता बनी रहती है। इसलिए पाकिस्तान को वर्तमान परिस्थितियों से उबरने के लिए राजनीतिक व्यवस्था में सुधार के साथ-साथ एक बेहतर लोकतांत्रिक और लोक कल्याणकारी राज्य की स्थापना करनी होगी। तभी वह वर्तमान परिस्थितियों से उबर सकता है।
अभिषेक कुमार, बेतिया, बिहार

निराशा की प्रतियोगिता

प्रतियोगी विद्यार्थी अपने-अपने गांव-मोहल्लों से निकलकर और सब कुछ छोड़कर शहर पहुंचते हैं और प्रतियोगी परीक्षाओं की जमकर तैयारी करते हैं। मगर भर्तियों में देरी उनके आत्मविश्वास को तोड़ देती है। कभी-कभी तो इसके कारण प्रतियोगियों को काफी मानसिक तनाव से गुजरना पड़ता है। आज अगर अदालत में फंसी नियुक्तियों पर गौर करें, तो कई मामले सामने दिखते हैं। चाहे वह उत्तर प्रदेश प्राथमिक शिक्षक भर्ती परीक्षा हो, उत्तर प्रदेश टीजीटी, पीजीटी परीक्षा या फिर समीक्षा अधिकारी, सहायक समीक्षा अधिकारी, राजस्व निरीक्षक जैसी परीक्षाएं।

एक तरफ विद्यालयों में शिक्षकों के अभाव के कारण शिक्षा-व्यवस्था खस्ता हो चली है, दूसरी तरफ भर्तियों में सम्मिलित प्रतियोगी अपनी नियुक्ति की आस लगाए बैठे हैं। अगर सरकारी भर्ती प्रक्रिया में यही अराजकता बनी रही, तो यह प्रतियोगियों के साथ गंभीर खिलवाड़ माना जाएगा। इसे कई उचित नहीं ठहराया जा सकता।

इसलिए केंद्र सरकार और सभी प्रदेश सरकारों को समय पर भर्ती प्रक्रिया पूर्ण करने के लिए निरंतर प्रयास करने चाहिए, ताकि प्रतियोगी विद्यार्थियों को उनके दर्द से छुटकारा मिल सके। कई बार तो सरकारी भर्ती प्रक्रिया इतनी लंबी हो जाती है या निर्णय कोर्ट में लंबित रहता है कि प्रतियोगी का धैर्य जवाब दे देता है। इससे वह अपना रास्ता बदलने पर मजबूर हो जाता है।
नरेंद्र राठी, मेरठ

कब तक राहत

‘राहत का रुख’ (संपादकीय, 17 जनवरी) से सहमत तो हुआ जा सकता है, पर इस बात की क्या गारंटी है कि महंगाई में गिरावट का यह दौर यों ही जारी रहेगा, जिसमें आम आदमी सुकून महसूस कर सके। अब तक का अनुभव तो यही कहता है कि बजट पूर्व ऐसी स्थितियां निर्मित होना आमतौर पर घाव पर मरहम वाली बात होती है। बजट का मामला निपटते ही फिर हालात उसी दौर में पहुंचने शुरू हो जाते हैं।

अगर इस बार यह मिथक टूटता है तो इससे बड़ी राहत की बात और क्या हो सकती है। सरकार को महंगाई की दर घटाने और थोक महंगाई को नियंत्रित करने के ठोस उपाय करने चाहिए, जिससे आम लोगों को जमाखोरों से भी राहत मिल सके। कहने का आशय यह है कि अभी महंगाई में जो कमी दिख रही है, अगर यह रुख कायम रहता है तभी आम आदमी कोई राहत महसूस कर सकेगा। और अगर ऐसा नहीं हो सका तो यह एक छलावे से ज्यादा नहीं होगा।
अमृतलाल मारू ‘रवि’, इंदौर</p>

संकट के सबक

दशकों पहले उत्तराखंड के जोशीमठ पर्वतीय क्षेत्र में अस्थिर भू-संरचना को देखते हुए नियंत्रित और व्यवस्थित विकास की सलाह दी गई थी और प्रसिद्ध पर्यावरणविद जीडी अग्रवाल ने तो इसे लेकर अपने प्राणों की भी आहुति दी थी। मगर अफसोस कि तमाम सुझावों और चेतावनियों को दरकिनार कर जोशीमठ को, जो कि सामरिक और धार्मिक दृष्टि से महत्त्वपूर्ण एक स्थान है, एक आधुनिक शहर के रूप में अनियंत्रित रूप से विकसित होने दिया गया।

धार्मिक शहर जोशीमठ को एक पर्यटक स्थल का रूप दे दिया गया और पहाड़ी ढलानों के कटाव और असंख्य जल और बिजली परियोजनाओं ने जोशीमठ शहर के गर्भ को छलनी कर दिया है। जोशीमठ के हश्र को देखते हुए हमें अपने अन्य सभी पर्वतीय शहरों के विस्तार और अनावश्यक विकास पर तुरंत रोक लगानी होगी।
अक्षित आदित्य तिलक राज गुप्ता, हरियाणा