सर्वोच्च न्यायालय की फटकार के बाद भी राजनीतिक दल मुफ्त की रेवड़ी बांटने से बाज नहीं आ रहे। कांग्रेस द्वारा गुजरात में मतदाताओं से पुरानी पेंशन व्यवस्था को लागू करने का वादा राज्य की अर्थव्यवस्था के लिए एक आत्मघाती कदम है। इस व्यवस्था को 2004 में वाजपेयी सरकार ने समाप्त कर ऐतिहासिक और देश की अर्थव्यवस्था के पक्ष में सराहनीय कदम उठाया था।
उसे बाद में यूपीए सरकार में वित्तमंत्री पी. चिदंबरम ने भी सराहा था। आज फिर वही कांग्रेस और आप उस जिन्न को बोतल से बाहर करने पर उतारू हैं। वाजपेयी सरकार में शामिल वित्तमंत्री यशवंत सिन्हा ने तब कहा था कि इस पेंशन व्यवस्था पर सरकार को कर्मचारियों के वेतन से अधिक व्यय करना पड़ता है।
एक अनुमान के अनुसार 2021-22 में पेंशन भुगतान पर 2 लाख 54 हजार रुपए सरकार ने खर्च किए थे। पुरानी पेंशन व्यवस्था पर अधिकांश पैसा करदाताओं का होता था, जबकि नई पेंशन व्यवस्था में कर्मचारियों का अपना पैसा होता है। इसलिए इस तरह के वादों से हर राजनीतिक दल को बचना चाहिए, जो राष्ट्रहित में न हो।
- नरेंद्र टोंक, मेरठ</strong>