यों अभी आम चुनावों में काफी वक्त है, लेकिन विपक्षी दलों के बीच एकजुटता के प्रयास शुरू हो गए हैं। विपक्षी दल पहले भी राज्यों और केंद्र के चुनावों में इस तरह की पहल कर चुके हैं। लेकिन ये प्रयोग कामयाब नहीं हो सके, क्योंकि हर दल के अपने निजी स्वार्थ हैं। कुछ राज्यों में कांग्रेस और क्षेत्रीय दलों की आपसी लड़ाई है। वहां वे एक-दूसरे के खिलाफ चुनाव लड़ते हैं, मगर लोकसभा चुनावों के लिए जब वे गठबंधन बनाते हैं तो लोग उस गठबंधन को अवसरवादी मानते हैं और उसे समर्थन नहीं देते।

प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार भी हर दल में होते हैं और किसी एक नेता पर सहमति नहीं बन पाती। सभी दल सत्ता में ज्यादा से ज्यादा हिस्सा चाहते हैं। निस्वार्थ भाव से कोई भी देश की सेवा नहीं करना चाहता। इन्हीं कारणों से गठजोड़ में दरार आ जाती है। विपक्ष की इसी कमजोरी का फायदा भाजपा को मिलता है। यह ध्यान रखने की जरूरत है कि विपक्ष का कमजोर होना देश का दुर्भाग्य है और सरकार को मनमानी करने की सुविधा देता है।
’चरनजीत अरोड़ा, नरेला, दिल्ली</p>

बाजार में त्योहार

हाल ही में हमने रक्षाबंधन का त्योहार मनाया। हर बार की तरह ही बहनों ने अपने भाइयों को राखियां बांधी और भाइयों ने बहनों को तोहफे दिए। उपहार देना कोई गलत बात नहीं है, पर रिश्तों को उपहारों के अधीन रखना सही नहीं है। इससे बेहतर यह है कि बहनों या लड़कियों को संपत्ति में उनका अधिकार दिया जाए, जो कानून में भी दर्ज है। रक्षा सूत्र की जगह अब महंगी डिजाइनर राखियों ने ले ली है। सभी त्योहारों का यही हाल है। ऐसा लगता है जैसे पटाखों के शोर के बिना दिवाली मनाई ही नहीं जा सकती। अब त्योहारों का महत्त्व बाजारों के लिए अधिक हो गया है। त्योहारों पर बेलगाम खर्च के बढ़ते प्रचलन ने आम आदमी की जेब ढीली कर दी है। त्योहारों के इस बदलते स्वरूप ने उनके सामाजिक और नैतिक महत्त्व को खत्म-सा कर दिया है।
’मानू प्रताप मीना, लखनऊ, उप्र

राहत की बारिश

देश भर में इस मानसून में कई राज्यों में खूब बारिश हुई। भारी मात्रा में हो रही बारिश लोगों के लिए मुसीबत बनती जा रही है। एक ओर किसानों के लिए हो रही बरसात फसल के बुआई के लिए अच्छे संकेत हैं, वहीं आए दिन के क्रियाकलापों में बाधा उत्पन्न हो रही है। कई जगहों पर जलजमाव बड़ी समस्या बन कर उभरा है, जिसके कारण यातायात ठप हो जाती है या बुरी तरह प्रभावित हुई है। पहाड़ी इलाकों में भयावह भूस्खलन भी बहुत सारे लोगों को डरा रहे हैं। लेकिन अगर इसे खेती के नजरिए से देखा जाए तो यह अच्छा है। प्राकृतिक आपदाएं रोकी नहीं जा सकतीं, लेकिन उनसे बचने के इंतजाम किए जा सकते हैं और इस तरह जानमाल के नुकसान को कम किया जा सकता है। लेकिन अगर खेती रुक गई तो मनुष्य जीवन के सामने बड़ी चुनौती खड़ी हो जाएगी।
’निशा कश्यप, दिल्ली