ब्रिटेन के ग्लासगो में संपन्न हुए संयुक्त राष्ट्र के जलवायु सम्मेलन में नब्बे से अधिक देशों ने धरती के बढ़ते तापमान और कार्बन-मीथेन के उत्सर्जन को कम करने के लिए कई बड़े लक्ष्य निर्धारित किए। इनमें भारत का नाम भी शामिल है। अमेरिका और चीन के बाद भारत ही सबसे ज्यादा कार्बन उत्सर्जन करता है। इस बैठक में भारत ने 2030 तक करीब बाईस फीसद उत्सर्जन कम करने का लक्ष्य निर्धारण के साथ-साथ 2070 तक नेट जीरो कार्बन उत्सर्जन का लक्ष्य हासिल करने की भी घोषणा की है।
लेकिन एक विकासशील देश होने के कारण भारत का यह लक्ष्य चुनौतियों से भरा हुआ है। एक तरफ देश में निम्न वर्ग की जरूरतें पूरी करने की जिम्मेदारी है, तो दूसरी तरफ रोजगार की चुनौती। इसके अलावा बिजली उत्पादन में सौर ऊर्जा और पवन ऊर्जा की तुलना में हम कोयले पर ही सबसे ज्यादा निर्भर हैं। इसके विकल्प को लेकर देश की स्थिति अब भी बेहद कमजोर है। सौर ऊर्जा और पवन ऊर्जा से पचास फीसद बिजली उत्पादन का लक्ष्य भारत ने 2030 तक रखा है।
लेकिन 2019 में भारत में इनसे सिर्फ 9.2 फीसद बिजली उत्पादन होता था। वहीं तिरसठ फीसद बिजली उत्पादन कोयले से होती थी। ऐसे में यह लक्ष्य काफी बड़ा है। बीते दिनों कोयले के कमी कारण दिल्ली, पंजाब समेत कई राज्यों में बिजली संकट को लेकर भी चर्चा हुई थी। ऐसे देश में बढ़ते औद्योगीकरण और संसाधन को देखते हुए भारत सरकार द्वारा निर्धारित लक्ष्य के लिए देश को एक बड़े बदलाव से गुजरना होगा।
मगर मौजूदा हालात को देखते हुए यह लक्ष्य हासिल करना विपरीत परिस्थितियों में संघर्ष करने जैसा है। इसलिए सरकार को इसके लिए जल्द से जल्द एक मजबूत और ठोस रणनीति अपना कर काम करना होगा। इसके लिए जमीनी स्तर पर, समाज के हर तबके, हर वर्ग को जागरूकता के साथ लेकर आगे बढ़ना होगा, ताकि जल्द से जल्द इस लक्ष्य को हासिल करने कि दिशा में कार्य प्रगति पर आए। भारत के लिए यह लक्ष्य हासिल करना एक म्यान में दो तलवार रखने जैसा है। एक तरफ देश निम्न वर्ग की जरूरतें पूरी करने और इस प्रक्रिया और बदलाव के दौरान उत्पन्न होने वाली समस्याएं हैं, तो दूसरी तरफ जलवायु परिवर्तन के भविष्य को लेकर भारत द्वारा अपने योगदान के लक्ष्य को हासिल करने की चुनौती।
’शुभम शर्मा, गोरखपुर