गुड्स एंड सर्विसेज टैक्स (GST) व्यवस्था में अक्टूबर की शुरुआत तक बड़ा बदलाव होने जा रहा है। नए दो-स्लैब स्ट्रक्चर के तहत रोज़मर्रा के इस्तेमाल वाली चीज़ों पर टैक्स का बोझ कम होगा, जिससे आम जनता को राहत मिलेगी और अर्थव्यवस्था को खपत बढ़ने से मजबूत बढ़ावा मिलेगा। जीएसटी सिस्टम में इस बदलाव के साथ ही कई सारे सामानों पर लगने वाला टैक्स कम होगा और हर दिन के इस्तेमाल होने वाली चीजें सस्ती होंगी।
कौन-कौन सी चीजें होंगी सस्ती?
जिन वस्तुओं के सस्ते होने की संभावना है, उनमें सीमेंट, छोटी कारें, एयर कंडीशनर और कई तरह के FMCG प्रोडक्ट्स शामिल हैं।
8 साल पुराने GST सिस्टम में बदलाव
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने शुक्रवार (15 अगस्त) को स्वतंत्रता दिवस के मौके पर अपने संबोधन में आठ साल पुराने अप्रत्यक्ष कर (Indirect Tax) जीएसटी में बड़े बदलाव की घोषणा की और इसे देशवासियों के लिए एक ‘दिवाली गिफ्ट’ बताया।
इसके बाद वित्त मंत्रालय ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म X (पूर्व ट्विटर) पर पोस्ट करते हुए कहा कि यह फैसला, सस्ती दरों पर सामान उपलब्ध कराने, खपत बढ़ाने और जरूरी व आकांक्षी वस्तुओं को ज्यादा से ज्यादा लोगों तक पहुंचाने में मदद करेगा।
मंत्रालय ने यह भी जोड़ा कि प्रस्तावित जीएसटी सुधार तीन मुख्य स्तंभों पर आधारित होगा। इनमें- संरचनात्मक सुधार (structural reforms), दरों का सरलीकरण (rate rationalisation) और जीवन को आसान बनाना (ease of living) शामिल हैं।
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प्रस्तावित GST स्ट्रक्चर और टैक्स दरों में बदलाव (Proposed GST Structure and Rate Changes)
-प्रस्तावित GST स्ट्रक्चर
-नया टू-टियर स्लैब सिस्टम
-5% स्लैब – ज़रूरी और रोज़मर्रा के इस्तेमाल का सामान
-18% स्लैब – बाकी अधिकांश वस्तुएं और सर्विसेज
किन चीज़ों पर टैक्स घट सकता है
-सीमेंट
-छोटी कारें
-एयर कंडीशनर (ACs)
-FMCG प्रोडक्ट्स (तेल, साबुन, पैक्ड फूड आदि)
-सुधारों के प्रमुख लक्ष्य
-कंपनसेशन सेस हटाना
-टैक्स स्ट्रक्चर को सरल बनान
-विवाद और मुकदमों को कम करना
-राजस्व स्थिरता (Revenue Buoyancy) बनाए रखना
हमारे सहयोगी फाइनेंशियल एक्सप्रेस की रिपोर्ट में आधिकारिक सूत्रों के अनुसार, वित्त मंत्रालय ने रेट रैशनलाइजेशन पर मंत्रियों के समूह (GoM) को एक समग्र (holistic) प्रस्ताव भेजा है। इस प्रस्ताव के तहत जीएसटी दरों को सरल बनाने के लिए दो प्रमुख स्लैब रखे जा सकते हैं:
5% मेरिट रेट – ज़रूरी और आम इस्तेमाल की वस्तुओं पर
18% स्टैंडर्ड रेट – अधिकांश वस्तुओं और सेवाओं पर
इसके अलावा, करीब 5 से 7 “डिमेरिट आइटम्स” (जैसे लग्ज़री या हानिकारक सामान) को एक स्पेशल 40% स्लैब में रखा जा सकता है। यह दर मौजूदा जीएसटी कानूनों में निर्धारित उच्चतम सीमा है।
इसका मकसद टैक्स ढांचे को सरल बनाना, खपत को बढ़ावा देना और साथ ही राजस्व में स्थिरता बनाए रखना है।
कंपनसेशन सेस होगा खत्म!
इस पुनर्गठन (Restructuring) के तहत दिसंबर तक “कंपनसेशन सेस” को खत्म कर दिया जाएगा। दरअसल, नवंबर तक सेस से होने वाली वसूली इतनी पर्याप्त होगी कि उससे उस कर्ज़ का भुगतान किया जा सकेगा, जो जीएसटी कलेक्शन में कमी को पूरा करने के लिए लिया गया था। इसका सीधा मतलब है कि दिसंबर के बाद उपभोक्ताओं को कई वस्तुओं और सेवाओं पर लगने वाला अतिरिक्त सेस नहीं देना पड़ेगा।
सूत्रों ने कहा कि GoM और अन्य संबंधित समूह आने वाले हफ्तों में प्रस्तावों को मजबूत करेंगे, ताकि जीएसटी परिषद के लिए सितंबर-अक्टूबर में (20 अक्टूबर को दिवाली से काफी पहले) बैठक करना सुविधाजनक हो सके।
मौजूदा GST दर क्या है
वर्तमान में, जीएसटी में सोने और रत्नों (gold and gems) के लिए विशेष दरों के अलावा 5%, 12%, 18% और 28% (प्लस सेस) की चार स्तरीय कर संरचना है। अनप्रोसेस्ड फूड सहित आवश्यक वस्तुओं को छूट दी गई है, जबकि बड़े पैमाने पर उपभोग की कई वस्तुओं पर 5% के निचले कर दायरे में कर लगाया गया है। क्लच डीमेरिट और लग्जरी सामानों पर 28% से अधिक प्लस सेस लगाया जाता है, कुछ तंबाकू उत्पादों पर वास्तविक कर की दर 88% तक होती है। एक अधिकारी ने कहा कि तंबाकू, गुटका और सिगरेट जैसे पापी सामानों पर पहले की तरह ही (40% से अधिक) कर लगेगा, लेकिन उन्होंने यह नहीं बताया कि यह कैसे किया जाएगा।
केंद्र सरकार का सुझाव
केंद्र सरकार ने सुझाव दिया है कि किसानों द्वारा इस्तेमाल किए जाने वाले औज़ार और मशीनरी पर कम जीएसटी दर लगाई जाए, ताकि उत्पादकता और मशीनीकरण को बढ़ावा मिल सके। इसके अलावा, हेल्थ और लाइफ इंश्योरेंस पर मौजूदा 18% की जगह केवल 5% टैक्स लगाने का प्रस्ताव है, जिसमें इनपुट टैक्स क्रेडिट (ITC) का लाभ भी मिलेगा। साथ ही, नवीकरणीय ऊर्जा क्षेत्र (Renewable Energy), हस्तशिल्प (Handicrafts), फार्मास्यूटिकल्स और मेडिकल डिवाइस पर भी टैक्स दरों में कटौती की जा सकती है।
फिलहाल जीएसटी राजस्व का करीब 70% हिस्सा 18% वाले स्लैब से आता है। इस स्लैब में FMCG (तेज़ी से बिकने वाले उपभोक्ता सामान), ज़्यादातर सेवाएँ, कंज़्यूमर ड्यूरेबल्स, इंडस्ट्रियल इंटरमीडिएट्स और बिल्डिंग मटीरियल्स शामिल हैं, हालांकि सीमेंट और फर्नीचर इसमें नहीं आते।
40% का विशेष स्लैब केवल तंबाकू उत्पादों, पान मसाला आदि तक ही सीमित रहेगा। वहीं, इस कैटेगरी की कुछ चीज़ें जैसे सीमेंट, एयर कंडीशनर और कुछ छोटी कारें अब 18% स्लैब में शिफ्ट की जा सकती हैं। इसके अलावा, यह भी संभव है कि ऑनलाइन गेमिंग को, जिसे नीति-निर्माताओं ने जुए के समान माना है, 40% टैक्स स्लैब में रखा जाए।
विशेषज्ञ लंबे समय से जीएसटी संरचना को सरल बनाने की ज़रूरत पर ज़ोर देते रहे हैं। उनका मानना है कि ऐसा करना आवश्यक है ताकि इसका एक “आउटपुट इफेक्ट” दिखे और आर्थिक उत्पादन को बढ़ावा मिल सके। हालांकि, कुछ राज्य सरकारों के अल्पकालिक राजस्व हितों के कारण इस सुधार में देरी होती रही है।
हालांकि जीएसटी की शुरुआत के समय औसत भारित दर (Weighted Average Rate) करीब 15.5% थी, जो अब घटकर लगभग 11% पर आ गई है, फिर भी पिछले कुछ वर्षों में जीएसटी राजस्व में उल्लेखनीय वृद्धि देखने को मिली है। दर संरचना में प्रस्तावित बदलाव से औसत दर में और गिरावट आ सकती है, लेकिन बढ़ती खपत के कारण इसका राजस्व पर कोई बड़ा नकारात्मक असर पड़ने की संभावना नहीं है।
GST सुधार पर वित्त मंत्रालय का सुझाव
वित्त मंत्रालय ने कहा कि इस सुधार का उद्देश्य क्लासिफिकेशन से जुड़े विवादों को कम करना, वस्त्र और उर्वरक जैसे क्षेत्रों में इनवर्टेड ड्यूटी स्ट्रक्चर को ठीक करना, टैक्स दरों में स्थिरता लाना और “Ease of Doing Business” को और बेहतर बनाना है।
इनवर्टेड ड्यूटी स्ट्रक्चर को दूर करने के लिए केंद्र ने प्रस्ताव दिया है कि इनपुट और आउटपुट दोनों पर समान दरें लागू की जाएं। इससे कंपनियों का वर्किंग कैपिटल फ्री हो सकेगा। वित्त मंत्रालय ने यह भी सुझाव दिया कि 95% मामलों में जीएसटी रजिस्ट्रेशन तीन दिनों में पूरा हो जाना चाहिए। इसके अलावा, प्री-फिल्ड रिटर्न और ऑटोमैटेड तरीके से तेज़ी से रिफंड जारी करने की सिफारिश की गई है, ताकि निर्यातकों और इनवर्टेड ड्यूटी स्ट्रक्चर से प्रभावित इकाइयों को राहत मिल सके।
मंत्रालय ने कहा, “जीएसटी काउंसिल अपनी अगली बैठक में मंत्रियों के समूह (GoM) की सिफारिशों पर विचार करेगी और यह सुनिश्चित करने की हरसंभव कोशिश की जाएगी कि इन सुधारों को जल्द लागू किया जाए, ताकि मौजूदा वित्त वर्ष में ही इनके अपेक्षित लाभ मिल सकें।”
पिछले तीन वर्षों में सकल संग्रह (Gross Collections) GDP के करीब 6.7% के आसपास रहा है, जो शुरुआती वर्षों की तुलना में कहीं अधिक है। हालांकि, विशेषज्ञों का मानना है कि आगे और रेवेन्यू ग्रोथ (Buoyancy) इस बात पर निर्भर करेगा कि टैक्स ढांचे को किस हद तक सरल और तर्कसंगत बनाया जाता है। उनका कहना है कि उचित टैक्स दरों से अनुपालन (Compliance) बेहतर होगा और टैक्स बेस भी व्यापक होगा।