जब से प्रदूषण से होने वाली समस्याएं बढ़ी हैं, केंद्र और राज्य सरकारों ने अपने स्तर से इससे छुटकारा पाने के लिए कदम उठाए हैं। सवाल उठता है कि क्या केंद्र और राज्य सरकारों द्वारा पर्यावरण प्रदूषण से निजात पाने के लिए आबंटित धन और योजनाओं से पर्यावरण को स्वच्छ बनाया जा सकता है?
पर्यावरण प्रदूषण ने मानव सभ्यता की तमाम गतिविधियों और विकास पर जो असर पिछले तीन दशकों में डाला है, उसका असर कितने दशकों तक बना रहेगा, कहना मुश्किल है। दरअसल, यह ऐसा धीमा जहर है जिसका प्रभाव हमारी सेहत सहित तमाम दूसरी गतिविधियों पर पड़ता रहता है। कोरोना के पहले पर्यावरण प्रदूषण कई समस्याओं, संकटों, बीमारियों, विकास में रुकावट, आर्थिक प्रगति में रुकावट और संपूर्ण वायुमंडल को जहरीला बनाने का कारण समझा जाता था। इसका मतलब यह नहीं कि पर्यावरण प्रदूषण के कारण पड़ने वाले असर, इससे बढ़ रहीं समस्याएं, संकट, बीमारियां, ऋतु चक्र में बदलाव जैसे अनगिनत समस्याओं को प्राथमिकता की सूची से निकाल दिया जाए।
वर्ष 2015 में हुए पेरिस जलवायु समझौते में निर्धारित संकल्पों के अनुरूप भारत पर्यावरण संरक्षण और संवर्धन के लिए निरंतर प्रयत्नशील है। जी 20 देशों में भारत अकेला देश है जो समझौते का अनुपालन कर रहा है। इसके तहत वन क्षत्रों को बचाना और बढ़ाना शामिल है। लेकिन बात इतनी ही नहीं है। वायु प्रदूषण के अलावा जल, ध्वनि, मिट्टी, अग्नि और अति प्रकाश प्रदूषण जैसी समस्याएं भी हैं, जिनके दुष्प्रभावों के असर से कई स्तरों पर समस्याएं पैदा हुई हैं।
पिछले छह महीनों से पर्यावरण प्रदूषण तीव्र गति से बढ़ा है। ताजा सर्वेक्षण के मुताबिक विश्व में प्रदूषण के मामले में जिन तीस शहरों को शामिल किया गया, उनमें दिल्ली दूसरा सबसे प्रदूषित शहर है। इसके अलावा भारत के बाईस दूसरे शहर भी सर्वाधिक दुनिया के प्रदूषित शहरों में शामिल हैं। गौरतलब है कि पर्यावरण बेहतरी के संकल्पों को अमल में लाने के बावजूद प्रदूषण की समस्या में कोई खास तब्दीली नहीं आई है। इसके बावजूद हम पर्यावरण को बेहतर रखने के प्रति संवेदनशील नहीं हैं।
वैज्ञानिकों ने जलवायु परिवर्तन, बढ़ती बीमारियों, ग्लोबल वार्मिंग, सुनामी और धरती के बढ़ते तापमान की बड़ी वजह बढ़ते वायु प्रदूषण को माना है। धरती का बढ़ता तापमान और ऋतु चक्र में आए बदलाव की सबसे बड़ी वजह विषैली कार्बन ऊर्जा है। हमारे देश में 2005 की तुलना में कार्बन उत्सर्जन में इक्कीस प्रतिशत की कमी आई है, लेकिन यह बहुत कम है। दिल्ली, गुरुग्राम, आगरा, गाजियाबाद, कानपुर और दूसरे शहरों में हवा अति खराब श्रेणी में लगातार बने रहने का मतलब है पर्यावरण की बेहतरी के लिए और अधिक कारगर कदम उठाने की जरूरत है।
पर्यावरण वैज्ञानिकों के मुताबिक देश में 2040 तक स्वच्छ ऊर्जा की मांग आज की तुलना में तीन गुना बढ़ जाएगी। सर्वेक्षणों से पता चलता है कि देश के कई राज्य जहां यूरिया, अमोनिया, जिंक सल्फेट और कीटनाशक बनाने के कारखाने हैं, जिनकी चिमनियों से तरह-तरह की जहरीली गैसें निकलतीं हैं, इनसे बुरी तरह से पर्यावरण खराब होता है। फूलपुर और आंवला में यूरिया बनाने के बहुत बड़े कारखाने हैं।
इन कारखानों से निकले जहरीले पानी और गैस की वजह से तमाम समस्याओं से लोगों को रूबरू होना पड़ रहा है। बिहार में बहने वाली कई नदियों और कोलकाता में हुगली नदी डेढ़ सौ से ज्यादा चर्म, कपड़ा, कागज, पटसन, शराब और दूसरे आधुनिक उद्योगों के उच्छिष्टों की वजह से इतनी अधिक प्रदूषित हो गई है कि इसे हाथ से छूना बीमारी को बुलाने जैसा लगता है।
इसी तरह भारत-नेपाल को बांटने वाली सरीसवा नदी नेपाल के उद्योगों से निकले उच्छिष्टों के कारण बहुत अधिक प्रदूषित हो गई है। गौरतलब है कि सरीसावा नदी सदियों से सौ से अधिक गांवों के लिए जीवन यापन का साधन बनी हुई थी। लेकिन चर्मशोधक कारखानों, शराब फैक्ट्रियों और चीनी मिलों से निकले जहरीले पानी और उच्छिष्टों की वजह से अब यह मौत का कारण बन गई है।
पिछले पच्चीस सालों में दस हजार से ज्यादा जानवर इसके विषैले पानी के सेवन के कारण मौत का शिकार हुए हैं। यह जल प्रदूषण के कारण हुआ है। गंगा प्रदूषण निवारक समिति के मुताबिक 2033 किलोमीटर इस ऐतिहासिक नदी का 480 किलोमीटर हिस्सा उद्योगों के उच्छिष्टों और अवशिष्टों के लगातार मिलने की वजह से बुरी तरह प्रदूषित हो गया है। कृष्णा, कावेरी, गोदावरी, नर्मदा, ताप्ती, भीमा, साबरमती और यमुना भी उद्योगों से निकलने वाले उच्छिष्टों के कारण बुरी तरह प्रदूषित है। केरल की चलियार नदी रेयान कारखाने से निकले विषैले पानी के कारण इतनी प्रदूषित हो गई है कि इसका पानी किसी इस्तेमाल के काबिल नहीं रह गया है।
प्रदूषण की समस्याओं में हवा और जल प्रदूषण सबसे अधिक मनुष्य को प्रभावित कर रही हैं। अगर हवा में घुली विषैली गैसों की बात करें तो दिल्ली में बेंजीन कारसिनोजन की तादाद तीन से नौ गुना तक बढ़ चुकी है। यह बेंजीन का खतरनाक स्तर है। वैज्ञानिकों के मुताबिक इससे दिल्ली में कैंसर के मामले दिनोंदिन बढ़ते जा रहे हैं।
इसी तरह बिहार और झारखंड में विद्युत ताप घरों से निकलने वाली जहरीली गैसों और प्रदूषित वाटी के इस्तेमाल से हर साल तीस हजार से ज्यादा लोगों की मौत हो जाती है। वहीं दिल्ली, हरियाणा और आंध्र प्रदेश में हर साल हजारों की तादाद में सांस की बीमारियों और कैंसर से हजारों लोग मौत के शिकार हो जाते हैं। मध्य प्रदेश और झारखंड में चूना भट्ठों से निकलने वाली गैसों से सांस से संबंधित तमाम बीमारियां होने से हजारों लोग मौत के पंजे में फंस जाते हैं।
मुंबई, लुधियाना, सूरत, कोलकता और मुल्क की दूसरी तमाम कपड़ा मिलों के मजदूरों में आंख और श्वास संबंधी तमाम बीमारियां आम बात है। मध्य प्रदेश के सतना, बानमोर, कैमोर, गोपालनगर और जामुल में सीमेंट के बड़े-बड़े कारखाने हैं। कैमोर में देश का सबसे बड़ा सीमेंट का कारखाना है। इससे और दूसरे सीमेंट के कारखानों से चौबीसों घंटे धूल उड़ती रहती है। इनकी चिमनियों से धूल के विषैले कणों के अलावा कार्बन डाइआक्साइड, कार्बन मोनोआक्साइड और सल्फर डाइआक्साइड जैसी जहरीली गैसें निकलती हैं। इनकी वजह से दमा और टीबी के अलावा खून में होमोग्लोबिन की तादाद कम हो जाती है।
राजधानी दिल्ली में जितना प्रदूषण है, उसमें चौबीस फीसद फैक्ट्रियों के जरिए होता है। इसके अलावा राजधानी क्षेत्र फरीदाबाद, गुरुग्राम और नोएडा में सैकड़ों फैक्टरियों से जहरीली गैसें निकलतीं हैं। उनसे सौ किलोमीटर की परिधि में नाइट्रोजन, सल्फर डाइआक्साडड, कार्बन मोनो आक्साइड और दूसरी जहरीली गैसों की तादाद बढ़ जाने से आंख, नाक, दिमाग, फेफड़े ,गले, आंत और पाचन संबंधी बीमारियां आमतौर पर हो जाती हैं।
जब से प्रदूषण से होने वाली समस्याएं बढ़ी हैं, केंद्र और राज्य सरकारों ने अपने स्तर से इससे छुटकारा पाने के लिए कदम उठाएं हैं। सवाल उठता है कि क्या केंद्र और राज्य सरकारों द्वारा पर्यावरण प्रदूषण से निजात पाने के लिए आबंटित धन और योजनाओं से पर्यावरण को स्वच्छ बनाया जा सकता है? जाहिर है, हवा और जल प्रदूषण से निजात पाने के लिए केंद्र सरकार द्वारा उठाए गए कदमों और पर्यावरण को प्रदूषित करने वाले कारकों के संबंध में आम लोगों को भी समझाने की जरूरत है।
जब तक आम आदमी पर्यावरण पर लापरवाह बना रहेगा और हवा, पानी, मिट्टी और वातावरण में तेज आवाज के जरिए ध्वनि प्रदूषण करता रहेगा, तब तक प्रदूषण संबंधी समस्याओं का समाधान नहीं हो सकता। मात्र कानून बना देने से बात बनने वाली नहीं है। इसलिए वैज्ञानिक आम लोगों को पर्यावरण के प्रति जागरूक करने की सलाह देते रहते हैं। पिछले तीस सालों में दिल्ली सहित भारत के छोटे-बड़े नगरों, शहरों और कस्बों में बढ़ती समस्याओं ने यह जाहिर कर दिया है कि अगर बेहतर जिंदगी जीना है तो प्रदूषण को कम करना होगा।
आवश्यकता इस बात की है कि हम पर्यावरण और अपने हित में प्रदूषण करने वाले कारकों को कम से कम उपयोग करें और दूसरों को भी इसके लिए जागरूक करें। यानी बढ़ती विकट पर्यावरण की समस्याओं को जीवन-मरण के प्रश्न जैसा अति गंभीरता से लेना होगा। तभी हमारा पर्यावरण सुरक्षित रहेगा और हम भी सुरक्षित रहेंगे।