”कोई विशालकाय सो रहा है तो सोने दो। वह जागेगा तो दुनिया हिला देगा।” नेपोलियन का यह कथन चीन के बारे में था, लेकिन अब भारत पर भी लागू होता है।
मैं निराश हो गया था, क्योंकि मैं सोचता था कि क्या भारत कभी भी अपने पिछड़ेपन से छुटकारा पाएगा? भारी गरीबी, रिकॉर्ड बेरोजगारी, बाल कुपोषण के उच्चस्तर (भारत में हर दूसरा बच्चा कुपोषित है, ग्लोबल हंगर इंडेक्स के अनुसार), आम लोगों के लिए उचित स्वास्थ्य सेवा और अच्छी शिक्षा और स्वास्थ्य सुविधा का लगभग पूरा अभाव (भारतीय महिलाओं में से आधे एनीमिया का शिकार हैं), जैसी समस्याओं से क्या कभी निजात मिलेगा? सोचता था कि क्या भारत में स्थितियां हमेशा ऐसी ही बनी रहेंगी? पर अभी चल रहे किसानों के आंदोलन ने मेरी निराशा को समाप्त कर दिया है और पूरी तरह से मेरा दृष्टिकोण बदल दिया है।
आज भारत दुनिया के सभी अविकसित देशों में सबसे विकसित है। इसमें वह सब है जो इसे संयुक्त राज्य अमेरिका, कनाडा, यूरोपीय देशों, जापान, चीन आदि जैसे उच्च विकसित देश बनने के लिए आवश्यक होता है। इसमें तकनीकी प्रतिभाओं का एक बड़ा समूह है – हजारों कुशल इंजीनियर, तकनीशियन, वैज्ञानिक आदि (जिनमें से बहुत से लोग कैलिफ़ोर्निया की में सिलिकॉन वैली में कार्यरत हैं और अमेरिकी, यूरोपीय विश्वविद्यालयों में विज्ञान, इंजीनियरिंग, गणित और चिकित्सा विभाग में प्रोफेसर हैं) और प्राकृतिक संसाधनों के अपार भंडार हैं। ऐसे में आसानी से हम 15-20 वर्षों में एक औद्योगिक देश बन सकते हैं।
हालांकि, समस्या हमारी जनता में व्याप्त विभाजन है। भारत कई धर्मों, जातियों, भाषाई, जातीय और क्षेत्रीय समूहों में विभाजित है। ये अब तक एक-दूसरे से लड़ रहे थे और इस तरह हमारे संसाधनों और ऊर्जाओं को बर्बाद कर रहे थे। इसके बजाय हमें ऐतिहासिक परिवर्तन करके भारत को सशक्त, आधुनिक औधोगिक राष्ट्र बनाने के लिए एकजुट होकर जनसंघर्ष करना है। दरअसल, हाल के वर्षों में भारत में धार्मिक ध्रुवीकरण बढ़ा है।
वर्तमान में चल रहे किसानों के आंदोलन ने पूरे परिदृश्य को बदल दिया है। इसने जाति और धर्म की सीमाओं को तोड़ दिया है और इससे ऊपर उठ गया है। इसने 1947 में आजादी के बाद पहली बार भारतीय लोगों के बीच एकता कायम की है – जो पहले केवल एक स्वप्न था।
इसने न केवल किसानों को एकजुट किया है, बल्कि बार काउंसिल ऑफ इंडिया, बुद्धिजीवियों, कलाकारों, औद्योगिक श्रमिकों आदि ने भी इसके लिए अपना समर्थन व्यक्त किया है। लगभग सभी इसे विभिन्न तरीकों से समर्थन कर रहे हैं। पहले ज्यादातर आंदोलनकारी किसान पंजाब, हरियाणा और पश्चिमी यूपी के थे, लेकिन अब राजस्थान, महाराष्ट्र, पश्चिम बंगाल, दक्षिण भारतीय राज्यों आदि में से कुछ उनके साथ हो गए हैं।
किसान संगठन भारत सरकार द्वारा बनाए गए किसानों से संबंधित तीन कानूनों को निरस्त करने की मांग कर रहे हैं, जो कि किसान संगठनों से परामर्श किए बिना बनाये गए थे। उन्हें लगता है कि ये कानून उन पर प्रतिकूल प्रभाव डालेंगे और केवल कॉरपोरेट्स को लाभान्वित करेंगे।
मेरे अनुसार यह महत्वपूर्ण नहीं है कि इन कानूनों को निरस्त किया जाएगा या नहीं, बल्कि यह महत्वपूर्ण है कि किसान आंदोलन ने भारतीय एकता की नींव रखी।
विपक्षी राजनीतिक दलों ने इस आंदोलन को समर्थन दिया है, लेकिन किसान नेताओं ने उनके समर्थन को स्वीकार करते हुए, उनसे पीछे रहने को कहा है क्योंकि वह जानते हैं राजनीतिकों का निहित स्वार्थ होता है।
(लेखक सुप्रीम कोर्ट के पूर्व जज हैं। लेख में विचार उनके निजी हैं।)