राजनीतिक दल अपनी प्रयोगशाला की परखनली में धार्मिक आस्था को लेकर प्रयोग करते रहते हैं। जनता की धार्मिक आस्था में किस तरह की मिलावट की जाए कि उत्पाद में राजनीतिक फायदा मिले इसकी कवायद उत्तर से लेकर दक्षिण भारत की राजनीति में होती रहती है। इसकी ताजा मिसाल आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री चंद्रबाबू नायडू हैं। देवस्थानम की आस्था के नाम पर उन्होंने विपक्ष के नेता जगनमोहन रेड्डी की पूर्ववर्ती सरकार पर प्रसाद में पशु-चर्बी की मिलावट का आरोप लगाया। मामला अभी अदालत में विचाराधीन है, लेकिन शुरुआती अदालती टिप्पणियों से लगता है कि आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री चंद्रबाबू नायडू की कोशिश इसका पूरी तरह से राजनीतिकरण करने की थी। उनकी मंशा बालाजी के भक्तों की आस्था की रक्षा होती तो इस मुद्दे पर वे पूरी स्पष्टता और सतर्कता के साथ सामने आते। सत्ता में आते ही जनता को फायदा पहुंचाने के बजाय विपक्ष को नुकसान पहुंचाने की बढ़ती प्रवृत्ति और इसे लेकर जनता की जागृति के उत्तर-दक्षिण संगमम पर बेबाक बोल।
राजनीति और धर्म को मिलाने की अनुमति नहीं दी जा सकती…सुप्रीम कोर्ट की यह फटकार स्वत: संज्ञान पर आधारित नहीं थी। तिरुपति देवस्थानम के प्रसादम यानी लड्डू में इस्तेमाल होने वाले घी में मिलावट के आरोप के बाद दाखिल याचिका पर ही सुप्रीम कोर्ट ने आंध्र प्रदेश में नायडू सरकार को यह फटकार लगाई।
चार जून 2024 को लोकसभा चुनाव के नतीजों के बाद सबकी नजरें चंद्रबाबू नायडू और नीतीश कुमार पर थीं। इनके भरोसे राजग सरकार का शपथ ग्रहण समारोह होना था और आगे स्थिरता मिलनी थी। भाजपा और तेदेपा का जैसा राजनीतिक स्वार्थ भरा रिश्ता रहा था, उसे देखते हुए यही माना जा रहा था कि हर राजनीतिक दल की तरह चंद्रबाबू नायडू सिद्धांत के बरक्स राजनीतिक स्वार्थ को ही प्राथमिकता देंगे और केंद्र सरकार के सहयोगी होने के नाते उसका फायदा भी उठाएंगे।
लोकसभा चुनाव के पहले काशी-तमिल संगमम का भी खूब प्रचार हुआ। काशी से लेकर कन्याकुमारी और तिरुपति तक देश की जनता की आस्था का संगम हो चुका है। आदि गुरु शंकराचार्य ने धर्म के जरिए ही उत्तर और दक्षिण को जोड़ने की मुहिम शुरू की थी जो सफल भी हुई। भाषाई और अन्य वर्चस्ववादी मुद्दों को छोड़ दें तो बजरिए धर्म उत्तर और दक्षिण कब के एक हो चुके हैं। इसी कड़ी में तिरुमाला तिरुपति देवस्थानम भी है।
सत्ता पाने के बाद विपक्ष को खारिज करना ही बड़ा मकसद
लोकसभा चुनाव के बाद लगा था कि चंद्रबाबू नायडू के लिए सबसे अहम मुद्दा आंध्र प्रदेश के लिए विशेष पैकेज लेना रहेगा। केंद्रीय बजट में इसका ध्यान भी रखा गया और लगा कि बजट का सबसे ज्यादा लड्डू आंध्र प्रदेश को ही दिया गया। लेकिन, इन दिनों जो राजनीतिक शैली अखिल भारतीय रूप ले चुकी है, वह है बदले की। सत्ता पाने के बाद एक ही मकसद रह जाता है, हर हाल में विपक्ष को न सिर्फ खारिज करना बल्कि उसे नेस्तो-नाबूत करने की कोशिश करना। मानो विपक्ष के खारिज होते ही जनता की रोजी, रोटी, रोजगार की समस्या हल हो जाएगी। महंगाई, रोजगार जैसे मुद्दे पर जूझने से आसान था जनता को प्रसादम के मसले पर उलझा कर रख देना।
आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री चंद्रबाबू नायडू एक बैठक में तिरुपति के प्रसादम में मिलावटी घी का आरोप लगाते हैं। ध्यान रहे कि मिलावट का यह आरोप बेसन या मेवे की गुणवत्ता पर नहीं लगा। मिलावट का आरोप लगा घी में पशु-चर्बी को लेकर। पशु-चर्बी यानी हिंदू धर्म के एक बड़े तबके की आस्था का छिन्न-भिन्न हो जाना। आरोप आंध्र प्रदेश की पूर्व जगनमोहन रेड्डी सरकार पर लगे। सत्ता के शीर्ष के द्वारा यह आरोप लगते ही उसके आइटी सेल ने जगन मोहन को विधर्मी साबित करते हुए उनका आगे का राजनीतिक सफर रोकने की पूरी कोशिश की। नायडू के यह आरोप लगाते ही लगा कि उत्तर से दक्षिण तक हंगामा मच जाएगा। जनता अपनी आस्था के सवाल को लेकर सड़क पर आ जाएगी।
इंटरनेट और सनसनीखेज मीडिया को छोड़ दें तो ऐसा कुछ भी नहीं हुआ। उत्तर से लेकर दक्षिण भारत तक के भक्त आगे की कार्रवाई का इंतजार करते रहे। इसे लेकर सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल हुई, अदालत की फटकार भी आई। आखिर चंद्रबाबू नायडू की रणनीति फिलहाल नाकामयाब होती क्यों दिख रही है?
प्रसादम के घी में पशु-चर्बी मिलाने का आरोप नई घटना नहीं
प्रसादम के घी में पशु-चर्बी के आरोप का उछलना और आस्थावान लोगों का शांत बने रहना इस देश के उत्तर से दक्षिण तक के राजनीतिक दलों के लिए बहुत बड़ा संदेश है। चंद्रबाबू के आरोप पर भड़कने के बजाय आम लोगों को हर साल नवरात्र के दौरान मिलने वाली खबर याद आ गई होगी कि जहरीले कुट्टू के आटा का प्रसाद खाने से इतने लोगों की मौत तो इतने बीमार। दिवाली के समय नकली मावा की इतनी बड़ी खेप का पकड़ा जाना जितना हमारे यहां दूध से असली मावे का उत्पादन भी नहीं होता। हमारे देश में बनने वाले कुछ ‘ब्रांड’ के मसालों को विदेश में प्रतिबंधित कर दिया गया। यहां तक कि जिस शिशु आहार को देश के अभिभावक बड़े भरोसे के साथ बच्चों को खिलाते हैं उसमें भी हानिकारक तत्त्वों के मिलने की खबरें आईं। जो जनता शिशु आहार की गुणवत्ता पर संतोष कर लेती है, वह प्रसाद की गुणवत्ता पर आहत होकर क्या कर लेगी?
भगवान से लेकर आस्था तो राजनीति का शिकार होते ही रहे हैं और जनता इसे कबूल कर भी चुकी है। जनता कई बार राजनीति को संदेश दे चुकी है कि वह अपनी आस्था की रक्षा खुद कर लेगी, अगर सरकार रोजी-रोटी के साधन की रक्षा करना अपनी पहली प्राथमिकता बना ले।
देवस्थानम को राजनीति में घसीटने के लिए अदालत आपत्ति जता चुकी है। लेकिन, बदले की यह राजनीति संस्थागत सांवैधानिक संस्थाओं में मिलावट की वही चिंता सामने रखती है जो अभी हम उत्तर भारत में उग्र रूप से देख रहे हैं। घी की जांच की रपट की अस्पष्टता और इसके खुलासे के समय पर सवाल उठ रहे हैं कि राजनीतिक लाभ लेने के लिए किया गया। इस आरोप के बाद तो सबसे पहला सवाल भारतीय खाद्य सुरक्षा एवं मानक प्राधिकरण पर उठा, क्योंकि घी बनाने वाली आरोपी कंपनी को उसकी मान्यता प्राप्त थी।
धर्म में राजनीति के संगमम से चंद्रबाबू नायडू को यह भरोसा हो गया था कि बस ‘पशु चर्बी’ के विस्फोट के धुएं से जनता अंधी हो जाएगी। वह किसी और संस्था की जवाबदेही के बारे में पूछेगी ही नहीं। वह विपक्ष को लेकर आपके इरादों को लेकर सवालतलब भी नहीं होगी, क्योंकि सवाल आस्था का है।
कहते हैं कि सार्वजनिक याददाश्त कमजोर होती है। लेकिन, बदले समय में राजनीतिक याददाश्त ही सबसे कमजोर दिखती है। जनता ने तो अयोध्या में ही पूछ लिया कि हमारे गली-कूचों का यह हाल क्यों, हमारे घर और रोजगार के साधनों पर हथौड़ा क्यों? देश के लोकतंत्र के लिए सुखद है कि जनता यह समझने लगी है कि जब उसके आहार तक में मिलावट का भंडार है तो फिर आस्था कहां तक शुद्ध रह पाएगी। लोकतांत्रिक चेतना की परखनली धर्म में राजनीतिक स्वार्थ की मिलावट की पहचान कर ही लेती है।
धर्म हो या भ्रष्टाचार का आरोप, ये हांडी एक बार ही चढ़ती है और इसमें प्रचंड बहुमत एक बार पक चुका है। अब तो जब आप हरियाणा के चुनावी मैदान में कहते हैं कि पाई-पाई का हिसाब लेंगे तो जनता पूछ बैठती है कि पिछले पांच साल से क्या कर रहे थे? 2014 में जनता को लगा था कि कांग्रेस के नेताओं के जमघट से भारतीय जेलों में आम अपराधियों के लिए जगह कम पड़ जाएगी। अब तक तो राबर्ट वाड्रा या कांग्रेस के कई कथित आरोपी नेता अपनी कथित सजा के दस साल तो काट ही चुके होते।
बजरिए लड्डू केंद्र के सहयोगी को लगा था कि दक्षिण में मेरा विपक्ष तो निपट ही जाएगा साथ ही उत्तर भारत के चुनाव में भी थोड़ा सहयोग दे दिया जाएगा। फिलहाल तो इसके उलट उन पर राजनीति में धर्म की मिलावट करने का आरोप लग गया है।
राजनीति में धार्मिक आस्था की मिलावट के खिलाफ उत्तर-दक्षिण से लेकर अदालती फटकार का यह संगमम जून 2024 के बाद एक और गंभीर संदेश है बशर्ते राजनीतिक दल इसे लोकतंत्र के प्रसाद के रूप में ग्रहण करें।