ख्याल जिसका था मुझे, ख्याल में मिला मुझे
सवाल का जवाब भी सवाल में मिला मुझे
-मुनीर नियाजी
भारतीय राजनीति में चुनाव में गड़बड़ी का आरोप कुछ नया नहीं है। इन आरोपों को हार की हताशा मान कर सभी पक्ष आगे बढ़ जाते हैं। महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव के बाद अगर प्रतिपक्ष वहीं खड़ा रह कर सवालों पर अड़ा है तो उसे खारिज नहीं किया जा सकता है। नेता प्रतिपक्ष द्वारा पहली ही नजर में चौंका देने वाले ‘सबूतों’ को लेकर चुनाव आयोग का पहला जवाब-‘हलफनामा दीजिए’ भी चौंका गया। महाराष्ट्र के बाद चुनाव आयोग ने बिहार में जब मतदाता सूची के गहन पुनरीक्षण का दोहरा काम शुरू किया तो उसकी विश्वसनीयता पर दोहरे सवाल भी उठेंगे। नेता प्रतिपक्ष की लगाई सवालों की झड़ी के नीचे आपकी साख खड़ी है, कृपया उसे डूबने से रोकिए। चुनाव आयोग के आंकड़ों से ही आयोग पर उठाए गए सवालों को लेकर बेबाक बोल।
इस बार मानसून जम कर बरसा है। सालों बाद सावन में सावन की तरह बारिश हुई। मानसून ने जरा अपना काम ठीक से क्या कर दिया, लग रहा हर कोई उसी से प्रेरणा ले रहा है। प्रमुख विपक्षी दल कांग्रेस के नेता व सांसद राहुल गांधी ने चुनाव आयोग को लेकर सवालों की झड़ी लगा दी है। फिलहाल सवालों की इस झड़ी में चुनाव आयोग ‘मिंटो ब्रिज’ की तरह डूबा हुआ दिख रहा है। ‘मिंटो ब्रिज’ प्रतीक बन चुका है दिल्ली की बदतर जलनिकासी की व्यवस्था का। ‘मिंटो ब्रिज’ से याद आया कि अपने कार्यकाल में पहले मानसून के बाद दिल्ली की मुख्यमंत्री ने दावा किया कि इस बार ‘मिंटो ब्रिज’ नहीं डूबा। अभी अपनी पीठ थपथपाकर मुख्यमंत्री ने हाथ आगे भी नहीं किया था कि पूरे कनाट प्लेस के डूबने के वीडियो सोशल मीडिया पर तैरने लगे। लगा कि पूरी कोशिश सिर्फ ‘मिंटो ब्रिज’ को डूबने से बचाने के लिए की गई।
बरसात साफ तौर पर सबक दे गई कि मेरा मुकाबला चुनिंदा तैयारियों के साथ नहीं किया जा सकता। जब बरसात अपना काम ठीक से करती है तो अपना काम ठीक से नहीं करने वालों को डूबने से कोई नहीं बचा सकता है। बरसात का मकसद बरसना है, डुबाना नहीं। अब यह आप के कामों पर निर्भर करता है कि सावन की बारिश में भीगने का आनंद लेते हैं, या आपके डूब जाने की नौबत आती है।
बेबाक बोल के स्तंभ (शेर सुना कर) में बिहार में मतदाता सूची के गहन पुनरीक्षण के संदर्भ में हमने आयोग को आगाह किया था कि महाराष्ट्र की मतदाता सूची में गड़बड़ी का आरोप विपक्ष का खिसियानी बिल्ली ईवीएम नोचे वाला मामला भर नहीं है। जमीनी हालात, पूर्वानुमान आज तक इतने गलत साबित नहीं हुए थे, जितने गलत महाराष्ट्र में दिखे। महाराष्ट्र में तत्कालीन चुनाव आयुक्त राजीव कुमार की अगुआई में हुए चुनाव पर उठे सवालों का जवाब भी वर्तमान चुनाव आयुक्त को ही देना होगा।
मुकेश भारद्वाज का कॉलम बेबाक बोल: ये जो चिलमन है
वोट चोरी के आरोप को लेकर कांग्रेस पार्टी के द्वारा जुटाए गए ‘सबूतों’ को दिखाने के बाद राहुल गांधी ने कहा कि विपक्ष पहले इस मुद्दे पर झिझक कर बोल रहा था (नेता प्रतिपक्ष ने दावा किया कि वे उस वक्त भी बिना झिझके बोल रहे थे)। अब हम सबूतों के साथ आए हैं। प्रेस कांफ्रेंस में राहुल गांधी द्वारा दिए गए आंकड़े पहली नजर में चुनावी प्रणाली पर विश्वसनीयता का संकट तो ला रहे हैं। एक ही पते पर 10,452 मतदाता, 4,132 अवैध तस्वीरें और फार्म 6 के दुरुपयोग के 33,692 मामले के आरोप हैं। पत्रकार उस एक कमरे के घर तक भी पहुंच चुके हैं जहां अस्सी मतदाता दर्ज हैं, और वहां अभी मात्र एक व्यक्ति रह रहा है।
चुनाव आयोग से इन आरोपों का जल्द से जल्द जवाब पाने की उम्मीद के साथ थोड़ा पीछे चलते हैं। बिहार में मतदाता सूची के गहन पुनरीक्षण के वक्त जब आयोग ने खास दस्तावेजों की ही मांग की तो विपक्ष इस मामले को लेकर अदालत पहुंचा। उस वक्त अदालत और चुनाव आयोग के बीच हुई बहस का लब्बोलुआब यही था कि चुनाव आयोग भी अदालत की तरह स्वायत्त निकाय है। प्रधान न्यायाधीश ने चुनाव आयोग से कहा कि वह आधार कार्ड को वैध दस्तावेज मानने पर विचार करे। लेकिन अदालत सहित चहुं ओर से आई अपील के बावजूद चुनाव आयोग ने आधार कार्ड को वैध मानने का कोई भी लिखित आधिकारिक आदेश नहीं दिया। बिहार मतदाता सूची के संदर्भ में अदालत ने टिप्पणी भी की थी कि नागरिकों की नागरिकता तय करना गृह मंत्रालय का काम है।
मुकेश भारद्वाज का कॉलम बेबाक बोल: कोई शेर सुना कर
बिहार के संदर्भ में चुनाव आयोग लगातार यही तर्क देता रहा कि फर्जी मतदाताओं को वोट देने से रोकना चुनाव आयोग की जिम्मेदारी है। यानी महाराष्ट्र चुनाव के बाद बिहार विधानसभा चुनाव में आयोग ने अपने काम के दायरे का विस्तार किया। आपके इसी विस्तार पर महाराष्ट्र के संबंध में सवाल उठे। जब आप अपने काम को दोगुना विस्तार देंगे तो आपकी विश्वसनीयता भी दोहरे सवालों के दायरे में आएगी।
फिलहाल महाराष्ट्र में सब कुछ साफ-सुथरा होने के चुनाव आयोग के दावे के खिलाफ जो ‘सबूत’ आए हैं, उसे सीधे तौर पर खारिज करना संभव नहीं दिख रहा है। नेता प्रतिपक्ष ने जो भी आंकड़े दिए हैं वे चुनाव आयोग के ही हैं।
विश्वसनीयता के मामले में पिछले लेख में टीएन शेषन का उदाहरण दिया था। टीएन शेषन ने चुनाव प्रक्रिया में जनता की विश्वास बहाली के लिए एक ही काम किया था। उन्होंने मशीनरी को विश्वसनीय बनाया। आखिर शेषन को क्या जरूरत पड़ी थी मशीनरी को विश्वसनीय बनाने की?
चुनाव आयोग की विश्वसनीयता पर उस समय उठे सवालों को वे भी खारिज कर सकते थे। सवालों की एक प्रवृत्ति होती है। सवाल को जितना दबाया जाएगा वो उतने शबाब पर आएगा। तब अगर शेषन आयोग की विश्वसनीयता की बहाली नहीं करते तो सवालों का सैलाब लोकतंत्र की शुचिता के सभी बांध तोड़ देता।
मुकेश भारद्वाज का कॉलम बेबाक बोल: ऐ ‘मालिक’ तेरे बंदे हम
पिछले लंबे समय से ‘बैलेट बनाम मशीन’ से लेकर जितने सवाल उठे सभी विश्वसनीयता को लेकर थे। महाराष्ट्र चुनाव के बाद सवालों का दायरा बढ़ा और इसके घेरे में मतदाता सूची आई। राहुल गांधी ने कहा कि मतदाता सूची राष्ट्रीय संपत्ति होती है। जिस सूची से किसी राष्ट्र का स्वरूप तय होगा वह राष्ट्रीय संपत्ति होनी ही चाहिए। राष्ट्रीय संपत्ति के साथ आप मनमाना व्यवहार कर भी नहीं सकते हैं।
डिजिटल मशीन ईवीएम आपके लिए इतनी पूजनीय है कि इसकी विश्वसनीयता पर उठे हर सवाल को खारिज करते रहे हैं। वहीं, डिजिटल डेटा को आप नष्ट करने की हड़बड़ी दिखाते हैं। डिजिटल के संदर्भ में आपके इस दोहरे रवैए पर भी सवाल उठ रहे हैं।
इसके पहले चुनाव आयुक्त की नियुक्ति भी सवालों के घेरे में आ चुकी थी। चुनाव आयुक्त की नियुक्ति से सुप्रीम कोर्ट के जज के बाहर होने, पक्ष के दो और विपक्ष का एक नुमाइंदा रहने से इस समीकरण के पूरी तरह सत्ता पक्ष की तरफ झुके रहने के आरोप लगाए गए। इसलिए अब आपकी जिम्मेदारी ज्यादा बनती है खुद को निष्पक्ष दिखाने की।
बिहार में मतदाता सूची के गहन पुनरीक्षण में आयोग ने जिस तरह की हड़बड़ी दिखाई उसने पूरे विपक्ष को सतर्क कर दिया। कम समय में दुर्लभ दस्तावेजों के साथ खुद को मतदाता साबित करने की शर्त ने पूरे सूबे में अफरातफरी का माहौल ला दिया। राहुल गांधी जब बड़े पर्दे पर नाम और फोटो के साथ फर्जी मतदाताओं को दिखा रहे थे तभी लोगों को याद आ रहा था कि इस तरह की सभी शिकायतें बिहार में सही पाई जा रही हैं।
नेता प्रतिपक्ष के सवालों की झड़ी का आपने पुख्ता जवाब नहीं दिया तो याद रखिए, भविष्य में आप अकेले खड़े रह कर भीगेंगे। कोई भी छाता लेकर आपको बचाने नहीं आएगा। तब आप यह भी कहने की स्थिति में नहीं होंगे कि हम तो डूबेंगे…तुमको भी ले डूबेंगे। भीगना-डूबना अकेले ही होता है। राहुल गांधी के उठाए गए सवाल, मुहैया कराए गए ‘सबूत’ पूरे लोकतंत्र के लिए चुनौती बन कर सामने खड़े हैं। सवाल करना संवैधानिक अधिकार है। सवाल से संवाद किए बिना आगे नहीं बढ़ा जा सकता है। फिर देर किस बात की? शुभस्य शीघ्रम।