इस कोशिश के बाद जब गुजरात में आम आदमी पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष गोपाल इटालिया के बयानों की खुदाई शुरू हो गई है तो उसके मलबे से नया-नवेला हिंदूवादी चेहरा धूल-धूसरित हो चुका है। जो इटालिया कभी राम-कथा का विरोध कर कायदा-कथा शुरू करवा चुके हैं उनकी अगुआई में केजरीवाल गुजरात के लोगों को अयोध्या का तीर्थ मुफ्त करवाने का वादा कर रहे हैं। इटालिया के खिलाफ भाजपा के खुले मोर्चे से बने हालात के बाद भारतीय राजनीति में आम आदमी पार्टी के परजीवी रूप की पड़ताल करता बेबाक बोल।
Indian Politics And Parasitic Form Of Aam Aadmi Party: 2020 में जब पूरी दुनिया कोरोना की दहशत से अलगाव की जिंदगी गुजार रही थी निर्देशक बोंग जून-हो की फिल्म ‘पैरासाइट’ चार आस्कर पुरस्कार अपने नाम कर चुकी थी। ‘पैरासाइट’ दो परिवारों के बीच की कहानी है। एक धनी परिवार दूसरे परिवार की सेवाओं पर निर्भर है तो दूसरा परिवार अपने अस्तित्व के लिए धनी पर निर्भर है।
सेवक परिवार धनी परिवार के इर्द-गिर्द किसी और को फटकने नहीं देता है ताकि उसका अस्तित्व बचा रहे। इसके लिए लगातार कई झूठ गढ़े जाते हैं। खुद को जिंदा रखने की कोशिश में अपने झूठ को बचाए रखने के बीच जो विडंबना पैदा होती है वही ‘पैरासाइट’ की कहानी है।
परजीवी, यानी जिसे अपनी जिंदगी की निर्भरता के लिए किसी दूसरे के शरीर, जमीन या संपत्ति की जरूरत हो। 2014 से भारतीय राजनीति में विकल्प बनने का नारा किस तरह परजीविता पर सिमटता गया उसकी बानगी हाल ही में आम आदमी पार्टी के विधायक राजेंद्र पाल गौतम के दिल्ली मंत्रिमंडल से इस्तीफे में दिखती है।
राष्ट्रीय राजधानी के आंबेडकर भवन में हुए एक आयोजन में राजेंद्र पाल गौतम द्वारा हिंदू धर्म पर आपत्तिजनक बयान देने के आरोप के बाद अरविंद केजरीवाल परेशान हुए। गुजरात विधानसभा के चुनाव प्रचार में अपनी ऊर्जा झोंक रहे केजरीवाल पर हिंदू विरोधी होने के आरोप लगने लगे। केजरीवाल की छवि बचाने के लिए राजेंद्र पाल गौतम को अपना इस्तीफा सौंपना पड़ा।
11 अक्टूबर को पहाड़गंज थाने में पेश होने के बाद दिल्ली के पूर्व मंत्री राजेंद्र पाल गौतम। (पीटीआई फोटो)
गौतम के इस्तीफे के बाद दिल्ली प्रदेश कांग्रेस ने कहा कि अपने समाज कल्याण मंत्री राजेंद्र पाल गौतम का वाल्मीकि जयंती के दिन दबाव देकर इस्तीफा लेना केजरीवाल के दलित विरोधी रवैये को उजागर करता है जबकि उपमुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया और सत्येंद्र जैन जैसे भ्रष्ट मंत्रियों का आज तक इस्तीफा न लेना उनके भ्रष्टाचारी एजंडे को उजागर करता है।
आम आदमी पार्टी वैचारिकता को लेकर आरोपों के घेरे में रहती आई है। दिल्ली में बौद्ध सम्मेलन से उठे विवाद के बाद अरविंद केजरीवाल को लगा कि यह उनकी लोकप्रियता के लिए घातक सिद्ध हो सकता है। गुजरात में अभी हिंदू भावना पर वोट लेना है तो खुद को कृष्ण का अवतार घोषित कर दिया जो कंस के वंश का समूल नाश करने आया है।
अयोध्या में मंदिर के तीर्थ करवाने का वादा तो था ही। गुजरात की रैली में केजरीवाल ने कहा कि कांग्रेस को वोट देना बेकार है, आम आदमी पार्टी को दीजिए। लेकिन, अब तक केजरीवाल ने यह नहीं कहा है कि भाजपा को वोट देना बेकार है। इसलिए लोग बहुत पहले आम आदमी पार्टी को भाजपा की ‘ब’ टीम कहने लगे थे।
भाजपा ने लंबे समय से हिंदुत्ववादी मंच तैयार किया, जिसके जरिए सबसे पहले धर्मनिरपेक्षता को खारिज किया गया। धर्मनिरपेक्षता का आशय अब तुष्टीकरण से है। धर्मनिरपेक्षता यानी मुसलिम तुष्टीकरण को कांग्रेसियों व वामपंथियों के साथ नत्थी कर दिया गया। आजादी के बाद कांग्रेस की राजनीति के समांतर हिंदुत्व की इतनी बड़ी इमारत खड़ी हो गई कि कांग्रेस के वजूद पर ही संकट सा आ गया।
भाजपा के इसी मंच का इस्तेमाल अण्णा आंदोलन ने भी किया और भ्रष्टाचार को केंद्रीय सवाल बना कर मनमोहन सिंह के जरिए जो कांग्रेस का बचा-खुचा अस्तित्व था उसे भी समाप्त कर दिया। कांग्रेस के केंद्रीय परिदृश्य से गायब होते ही एक तरफ आगमन होता है भाजपा का तो दूसरी तरफ अरविंद केजरीवाल का। धर्मनिरपेक्षता और भ्रष्टाचार से मुक्त राजनीति का वादा कर भाजपा और आम आदमी पार्टी दोनों आगे बढ़े।
दिल्ली में चुनाव जीतने के बाद केजरीवाल ने सबसे पहले प्रशांत भूषण और योगेंद्र यादव जैसे उन चेहरों से किनारा किया जो वामपंथी, समाजवादी, उदारवादी गुट की मुहर के साथ थे। दूसरी बार मिली बड़ी जीत के बाद उसे राम की कृपा बता कर रामलीला मैदान में शपथ ली। भारतीय राजनीति में सिर्फ कांग्रेस खत्म नहीं हुई थी, बल्कि धर्मनिरपेक्ष राजनीति की बुनियाद ही खत्म हो गई थी।
आम आदमी पार्टी ने अपनी कोई जमीन तैयार नहीं की है
केजरीवाल समझ गए थे कि भाजपा के तैयार किए राजनीतिक मैदान में धर्मनिरपेक्षता के लिए कोई जगह नहीं है। मुश्किल यह है कि आम आदमी पार्टी ने अपनी कोई जमीन तैयार नहीं की है। किसी खास राज्य का भूगोल बदलते ही उनकी राजनीति भी बदल जाती है। आम आदमी पार्टी ने बहुत ही सधे तरीके से जेएनयू से लेकर अनुच्छेद-370 के खात्मे, दिल्ली दंगों से लेकर किसान आंदोलन जैसे मुद्दे पर चुप्पी साधे रखी।
कभी कुछ बोला भी तो ऐसी जलेबी बनाई जो सिर्फ धर्म की चाशनी में भिगोई हुई होती। कांग्रेस के विरोध में जुटाई गई आम आदमी पार्टी की फौज के पास चुनाव के मैदान में लड़ने के लिए अपना बनाया कोई औजार नहीं है। इसलिए कांग्रेस की जमीन पर ही सेंध लगा सकती है। राजनीतिक विचारधारा की बात करें तो आम आदमी पार्टी लेख के शुरू में वर्णित परजीवी की तरह है। कभी संघ के आधार पर तो कभी कांग्रेस के आधार पर खड़ी होकर अपनी जमीन बनाती है।
गुजरात में आम आदमी पार्टी को सियासी ऊर्जा धार्मिक भावना से मिलेगी!
इसलिए, आम आदमी पार्टी के अगुआ एक साथ कई भाषा बोलते हैं। फिलहाल औपनिवेशिक गुलामी के खिलाफ लड़े स्वतंत्रता सेनानियों को आम आदमी पार्टी से स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति देकर कृष्णावतार को लाया गया है। गुजरात का चुनाव आम आदमी पार्टी के लिए वह वैचारिक द्वीप है जहां गांधी, आंबेडकर से लेकर भगत सिंह तक कोई अपनी पहुंच नहीं बना सके हैं। गुजरात में आम आदमी पार्टी अपनी पूरी राजनीतिक ऊर्जा हिंदू धार्मिक भावना से ही लेगी, गौतम के इस्तीफे से वह इसकी तस्दीक कर चुकी थी।
दिल्ली में राजेंद्र पाल गौतम के दिए इस्तीफे पर गुजरात में गोपाल इटालिया के विवाद ने फिलहाल पूरी तरह पानी फेर दिया है। जिस तरह गुजरात में आम आदमी पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष गोपाल इटालिया के पुराने बयानों की खुदाई शुरू हो गई है, उसके मलबे में आम आदमी पार्टी का गुजरात के लिए बना नया-नवेला हिंदूवादी चेहरा धूल-धूसरित हो चुका है।
गोपाल इटालिया की अगुआई में आम आदमी पार्टी ने सूरत नगर निगम की 27 सीटों पर सीट दर्ज की थी। इटालिया एक युवा व ऊर्जावान नेता हैं। एक समय वे सुर्खियों में इसलिए आए थे क्योंकि गुजरात विधानसभा के बाहर भाजपा नेता पर जूता फेंका था। जिस तरह दिल्ली में पी चिदंबरम पर जूता फेंकने के आरोपी को आम आदमी पार्टी ने गले लगाया था, उसी तरह इटालिया से उन्हें काफी उम्मीदें हैं। इटालिया शुरू से ही हिंदू धर्म की जाति और मंदिर व्यवस्था को लेकर मुखर थे।
गुरुवार, 13 अक्टूबर को नई दिल्ली में पार्टी कार्यालय में प्रेस कांफ्रेंस में बोलते गोपाल इटालिया। (फोटो पीटीआई)
इटालिया ने गुजरात में राम-कथा के विरोध में कायदा-कथा की शुरुआत की थी। लेकिन, केजरीवाल जब जय श्रीराम के नारे लगाते और अयोध्या में तीर्थ कराने के वादों के साथ आए हैं तो यह इटालिया के खिलाफ जा रहा है या अब इटालिया का होना ही आम आदमी पार्टी के खिलाफ जा सकता है इसके आकलन में वक्त लगेगा। जहां तक केजरीवाल भाजपा की ‘ब’ टीम के आरोप के तहत कांग्रेस की जमीन हथिया रहे थे, तब तक तो ठीक था। लेकिन गुजरात में भाजपा खुद टीम ‘अ’ है। जाहिर सी बात है कि वह अपनी स्थिति बनाए रखने के लिए कोई कसर नहीं छोड़ेगी।
केजरीवाल जब भाजपा की ‘अ’ वाली जगह पर अपनी ‘ब’ वाली हिंदूवादी छवि लाएंगे तो फिर ‘अ’ से मात भी खा सकते हैं। अपनी बनाई हिंदूवादी जमीन पर भाजपा आम आदमी पार्टी को हिंदू विरोधी घोषित करने में पूरी तरह जुट गई है। इसके बाद भाजपा की जमीन पर आम आदमी पार्टी बिना खाद-पानी के वैचारिक रूप से मूर्छित हो सकती है।
एक लोकोक्ति है, ‘कोस-कोस पर बदले पानी, चार कोस पर बानी’। आम आदमी पार्टी ने इस कहावत को अपनी राजनीति में उतार दिया है। एक राज्य में चुनाव जीतने के बाद हर दूसरे राज्य में उसकी वाणी बदल जाती है। कहीं कांग्रेस की जमीन तो कहीं भाजपा की जमीन पर अपने पनपने की जुगाड़ की परजीवी राजनीति उसे गुजरात में कितना आगे ले जा सकती है, यह देखने की बात होगी।