कई साल हो गए स्कूल छोड़े। जब पीछे मुड़ कर देखती हूं तो आज भी स्कूल का वह पहला दिन…
कई साल हो गए स्कूल छोड़े। जब पीछे मुड़ कर देखती हूं तो आज भी स्कूल का वह पहला दिन…
बेहद अपनी-सी लगती है यह सड़क, पर यह बुनता हुआ खयाल एकदम से टूट जाता है। जैसे ही यह भान…
जल्दबाजी में होने वाले इन बदलावों के प्रति सचेत रहने और यह सोचने की जरूरत है कि मुक्ति और समानता…
विचार की दुनिया में जब राजनीति का दखल होता है तो अमूमन हर पक्ष के लिए जगह धीरे-धीरे सिकुड़ने लगती…
आजकल अक्सर मेरे पैर छिल जाते हैं। दरअसल, मैंने भाई के साथ अपनी स्कूटी से जाना शुरू किया है।
दुनिया में कितना कुछ होता रहता है एक ही समय पर! कितने विचार, कितनी ही निराशा और आशाएं, कितने ही…
अब छह साल हो गए हैं मुझे इस रास्ते से आते-जाते। रास्ता, जो संकरा है बहुत…! रास्ता, जो उम्मीद है…
मैं तब खुद भी नहीं जान पाई कि ऐसा क्या था उनमें जो मेरी दृष्टि रुक गई थी उन पर।…
आमतौर पर विद्यार्थी उन किताबों या नोट्स की जुगत में लगे रहते हैं जो उस विषय से संबंधित हैं जिसे…
पूंजीवादी सिद्धांत का विवेचन करते हुए रामविलास शर्मा ने लिखा है कि ‘कोई भी वाद या व्यवस्था अपने उत्थान में…
‘मुक्ति कभी उपहार में नहीं मिलती, उसके लिए संघर्ष करना पड़ता है।’ पाउलो फ्रेरे की यह उक्ति खासतौर पर महिलाओं…
‘अचानक’ एक अजीब शब्द है! अक्सर जो घटनाएं हमें अचानक लग रही होती हैं, कोई और उन घटनाओं को अंजाम…