दुनिया मेरे आगेः सुनहरी धूप में ऊंघता देश हजारों वर्ष पुरानी सभ्यता और संस्कृति के हमारे दंभ को दो सौ वर्षों की गुलामी ने चूर-चूर कर दिया था।… By अरुणेंद्र नाथ वर्माFebruary 10, 2018 04:03 IST
दुनिया मेरे आगे- उजाले अपनी यादों के कोमल हरे पत्तों के बीच सहेज कर रखा हुआ नन्हा दीया गंगा आरती में घंटे-घड़ियाल और शंख ध्वनि की धूमधाम… By अरुणेंद्र नाथ वर्माSeptember 25, 2017 05:33 IST
दुनिया मेरे आगे- रक्त के आंसू किसी साल उनके अभिसार को प्रतीक्षारत धरती सूनी आंखों से आकाश को निहारती रह जाती है तो किसी साल वे… By अरुणेंद्र नाथ वर्माJuly 27, 2017 05:38 IST
ताक पर तहजीब रोज बदलते समाज के मूल्यों के बीच अच्छे और बुरे की परिभाषा भी तेजी से बदलती जा रही है। शुचिता… By अरुणेंद्र नाथ वर्माJune 13, 2017 05:43 IST
दुनिया मेरे आगेः आत्मपीड़न का साहित्य अगर साहित्य वास्तव में समाज का दर्पण है तो उसे दर्पण का धर्म निभाना चाहिए। यथार्थ का ईमानदारी से बयान… By अरुणेंद्र नाथ वर्माUpdated: January 6, 2017 02:33 IST
सेना की परंपरा का प्रश्न प्रश्न जरूर उठेंगे कि सरकार को वरिष्ठता क्रम में ले. जन. रावत से ऊपर रहे ले. जन. प्रवीन बक्शी और… By अरुणेंद्र नाथ वर्माDecember 20, 2016 00:57 IST
दुनिया मेरे आगे: आंसुओं से उभरती मुस्कान जोहान्सबर्ग के गांधी स्क्वायर को दिखाते हुए हमारी गाड़ी के अश्वेत ड्राइवर की आंखों में अपार श्रद्धा दिखी। By अरुणेंद्र नाथ वर्माNovember 21, 2016 02:48 IST
राजनीतिः किसके हित में है यह आत्म बलिदान आखिर क्यों फौजी अब भी पूरी तरह संतुष्ट नहीं हैं। असहमति के स्वर कहां से उपज रहे हैं? समझने का… By अरुणेंद्र नाथ वर्माNovember 5, 2016 01:48 IST
दुनिया मेरे आगे: डिजिटल भक्ति इस जीवन के लिए शक्ति और अगले के लिए भक्ति का समन्वय हमारी देशज डिजिटल क्रांति की यूएसपी या अनूठी… By अरुणेंद्र नाथ वर्माOctober 4, 2016 06:05 IST
दुनिया मेरे आगेः पत्थर पे घिस जाने के बाद जीवन में विषम परिस्थितियों से जब भी संघर्ष करना पड़ा, बड़े-बुजुर्गों से सुनी हुई इन पंक्तियों ने धीरज बंधाया- ‘रंग… By अरुणेंद्र नाथ वर्माSeptember 2, 2016 03:11 IST
हंसमुख बेगम फगुनहटी पवन का स्पर्श उसके अंग-अंग में भी गुदगुदी कर सकता था जैसे केदारनाथ अग्रवाल की ‘बसंती हवा’ कभी गेहूं… By अरुणेंद्र नाथ वर्माApril 11, 2016 00:12 IST
दुनिया मेरे आगेः मौसम की तरह बदलना थोड़ी देर भी धूप में बैठने पर शीतल छांव की चाहत जाग उठती है, लेकिन छाया का स्निग्ध शीतल स्पर्श… By अरुणेंद्र नाथ वर्माMarch 10, 2016 03:00 IST
श्राद्ध कर्म में जौ, तिल, अक्षत और कुशा का क्या है महत्व, जिसके बिना अधूरा रह जाता है पितरों का तर्पण
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