सृष्टि के सृजनकाल से ही समस्त जीवों में अनेक शारीरिक क्रियाएं संचालित हो रही हैं। आहार, वायु और जल के अभाव में किसी भी जीव का जीवित रहना संभव नहीं है। इन तीन तत्त्वों के साथ-साथ मानव और अन्य जीवों के शरीर के लिए निद्रा भी एक अति महत्त्वपूर्ण प्राकृतिक प्रक्रिया है, जिससे शरीर और मन को विश्राम मिलता है। निद्रा की भरपूर खुराक लेकर व्यक्ति फिर दूसरे दिन भरपूर ऊर्जा से अपने काम में लग जाता है। यह हमारी दिनचर्या का एक आवश्यक अंश है जो हमारे शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य के लिए महत्त्वपूर्ण है।
हर जीव में निद्रा की अलग-अलग अवस्था है। एक ओर वन्य प्राणी के निद्रा की विविध अवस्था है, जिसमें कुछ जीव रात में नींद लेते हैं, जबकि कुछ दिन में। एक स्वस्थ शरीर को औसतन सात से आठ घंटे तक नींद की जरूरत होती है। युवा और प्रौढ़ स्तर के व्यक्ति अपनी शारीरिक मांग के अनुरूप निद्रा उतने घंटे ही ग्रहण करते हैं, जिससे वे अगले दिन अपने को तरोताजा महसूस करते हुए अपने कार्यों का सफलतापूर्वक संपादन करते हैं। बुजुर्ग अपने उम्र के पड़ाव और अकेलेपन के कारण कई शारीरिक व्याधियों से ग्रस्त रहते हैं, जिससे उनकी निद्रा में खलल पड़ती है।
जिंदगी की भागदौड़ के कुप्रभाव से निद्रा भी अछूती नहीं
हालांकि इसमें व्यक्ति की मानसिक स्थिति के अवयव भी एक अति विशिष्ट कारक हैं, जो निद्रा के लिए बहुत हद तक उत्तरदायी हैं। जिंदगी की भागदौड़ के कुप्रभाव से निद्रा भी अछूती नहीं रह पाई है। नींद में कमी की भारी कीमत समाज के एक बड़े समूह को चुकाने की स्थिति आ गई है। आज एक औसत भारतीय वयस्क प्रत्येक सप्ताह करीब तीन रात की अधूरी नींद ले रहा है, जिसका प्रत्यक्ष प्रभाव उसके शारीरिक-मानसिक स्वास्थ्य और दायित्व पालन पर पड़ रहा है।
तेरह देशों में एक सर्वेक्षण में पाया गया कि अड़तालीस फीसद भारतीयों को सप्ताह में न्यूनतम तीन दिन नींद लेने में कठिनाई हो रही है, जिस कारण इसमें अधिकांश लोग बीमारी के शिकार हो रहे हैं। भारतीय पुरुषों की अपेक्षा महिलाओं की नींद कम हो रही है। कोविड के दुष्परिणाम स्वास्थ्य के कई हिस्सों में उजागर हुए हैं, जिसमें अवसाद के कारण निद्रा भी प्रभावित हुई है। ‘घर से काम के निपटान’ यानी ‘वर्क फ्राम होम’ के सिलसिले ने भी नौकरी वाले लोगों की दिनचर्या सीमित कर दी थी और वे व्यायाम और सामाजिक गतिविधियों से मुक्त हो घरेलू तनाव की स्थिति से जुड़ गए थे।
इसका कुप्रभाव यह हुआ कि वे मानसिक अवसाद के कारण अनिद्रा के आगोश में चले गए। ऐसी हालात में व्यक्ति का चिड़चिड़ापन, मोटापा, थकान, मधुमेह, रक्तचाप आदि ने उसे असामान्य जीवन जीने को विवश कर दिया।
अब भले लोग पहले से अधिक समय तक काम कर रहे हैं, लेकिन कम सो रहे हैं। निद्रा में कमी वैसे बच्चों में भी देखी जा रही है, जो सुबह स्कूल आंख मलते हुए जाते हैं, क्योंकि विद्यालय से वापसी के बाद भारी बस्ते में ‘होम वर्क’ का भय उन्हें ठीक से सोने नहीं दे रहा है। फिर मोबाइल की लत भी नींद उड़ा रही है।
इसके अलावा, विभिन्न प्रकार के परीक्षार्थी को उच्च अंक पाने की होड़ में देर रात तक तैयारी करने से उनकी निद्रा कम हो रही है। नतीजतन, विद्यार्थियों की स्मरण शक्ति का आंशिक लोप भी हो रहा है। उनके भीतर पाचन तंत्र कमजोर, आलस्य भाव और थकान के लक्षण दिख रहे हैं।
एक अध्ययन के मुताबिक, करीब सत्तर फीसद भारतीय अच्छी नींद नहीं सो पा रहे हैं। जापान के नागरिक अपने कामकाज में अधिक संजीदा और परिश्रमी हैं। वे प्रकृति के अधिक नजदीक रहकर अपने खान-पान को भी अनुशासित रखते हैं। वे रात में जल्दी सोते हैं और भरपूर नींद लेकर प्रात: जल्द जागते हैं। अपनी दिनचर्या के प्रति बेहद सख्ती उन्हें हमेशा ऊर्जान्वित किए रहती है।
हर रिश्ते में स्वाभाविक हैं मतभेद, सहनशीलता और धैर्य के साथ सुलझाने में ही होती है समझदारी
हमें याद रखना चाहिए कि भारत गांवों का देश है जहां कुल आबादी का सत्तर फीसद लोग वहीं रहते हैं। उनकी जीवन शैली में आधुनिकता के कुछ रंग अवश्य प्रवेश कर गए हैं, लेकिन अभी भी उनका स्वास्थ्य नगरीय जीवन जीने वाले नागरिकों की अपेक्षा ज्यादा अनुकूल है। शुद्ध आबो-हवा से आच्छादित ग्रामीण परिवेश में कुछ क्षरण के बावजूद आपसी भाईचारे का ताना-बाना बना हुआ है। मानसिक तनाव के आंकड़े ग्रामीण क्षेत्रों में कम देखे जाते हैं, जबकि शहरों में अधिक।
निद्रा हमारे संज्ञानात्मक कार्य को बेहतर बनाने में मदद करती है, जैसे कि स्मृति, ध्यान और समस्या-समाधान की प्रवृत्ति को सदा सक्रियता प्रदान करना। ऐसी धारणा पर बल दिया गया है कि शयन कक्ष में आरामदायक वातावरण बनाने से निद्रा की गुणवत्ता में सुधार हो सकता है, जबकि व्यायाम और पोषणयुक्त आहार से निद्रा में अनुकूलता लाई जा सकती है। महत्त्वपूर्ण यह है कि निद्रा के समय हमारी मन:स्थिति कैसी है। अगर दिन भर के भागमभाग दिनचर्या की परेशानी से हम मुक्त हो शयन कक्ष के मद्धिम प्रकाश में विश्राम के लिए तैयार हैं तो निश्चित हमारी निद्रा शीतल होगी।
कई शोध प्रबंधों ने बताया है कि सोने के पूर्व हल्के संगीत का श्रवण हो या पुस्तक के कुछ पन्नों को पलटा जाए तो नींद ठीक से आ सकती है। डिजिटल युग में मोबाइल संस्कृति के जुड़ाव तरंग से कम से कम शयन के एक घंटे पूर्व निवृत्ति भी अच्छी नींद में सहायक मानी गई है। आज भी ग्रामीण क्षेत्रों में खेत-खलिहान में हर मौसम में काम करने वाले हमारे किसान भरी दुपहरी में किसी वृक्ष के नीचे चटाई या गमछे बिछाकर थोड़ी देर ही सही गहरी नींद का स्वाद चखकर फिर से अपने शरीर को ऊर्जान्वित कर लेते हैं। उचित तो यही है कि जब नींद के उचाटपन के तानेबाने को हमने बुना है तो शरीर की इस संजीवनी को अपनी दिनचर्या में सम्मान देने के लिए हर चेष्टा करनी होगी।