छबिल कुमार मेहरे रमेश दवे स्थितप्रज्ञ आलोचक हैं। वादों-विवादों, खेमेबाजी, नारेबाजी और विचारधारागत पूर्वग्रहों, पुरस्कार-सम्मानों की आकांक्षा से हमेशा दूर…
प्रताप दीक्षित कथाकार शैलेंद्र सागर के संग्रह ब्रंच तथा अन्य कहानियां में वर्तमान के कोलाहल के बीच उगे-फैलते मरुथल में…
तरुण विजय अलका छठी कक्षा में पढ़ती है। अपने पिता की शहादत पर रुलाई को बहुत कड़ाई से थामते हुए…
सय्यद मुबीन ज़ेहरा गणतंत्र दिवस के मौके पर अमेरिकी राष्ट्रपति ने राजपथ पर भारत की स्त्रीशक्ति को देखा, प्रभावित हुए…
जसविंदर सिंह जो समाज अपने सोच की खिड़कियां बंद कर लेता है, वह न तो स्वस्थ समाज हो सकता है…
कुलदीप कुमार पेरिस में व्यंग्य पत्रिका ‘शार्ली एब्दो’ पर हुए आतंकी हमले के बाद हिंदुत्व की प्रयोगशाला चलाने वालों को…
अपूर्वानंद जनवरी में सवाल किया जाना चाहिए कि आखिर हम किस गांधी को याद करना चाहते हैं। या कि उन्हें…
प्रभु जोशी यह अत्यंत विचारणीय तथ्य है कि भारत के अलावा दुनिया के किसी भी देश में ऐसा दुर्भाग्यपूर्ण उदाहरण…
राजकुमार केंद्र सरकार हो या राज्य सरकारें, अब उनकी निगाह में शिक्षा का उद्देश्य आर्थिक और सामाजिक विकास करना है।…
कुमार अंबुज किसी भी समस्या के निदान के लिए समन्वयवादी तरीका एक आसान रास्ता है, पर वह कितना सही है,…
विनीत कुमार वीरेंद्र यादव के लेख ‘पार्टनर, तुम्हारी पालिटिक्स क्या है’ (21 दिसंबर) पर बात करने से पहले उन्हें औपचारिक…
सय्यद मुबीन ज़ेहरा नए वर्ष के आगमन पर सबने थोड़ा-बहुत जश्न मनाया होगा। उसके बाद घर का कूड़ेदान कुछ अधिक…