
आलोचनाहीनता के बावजूद हिंदी गजल में कुछ अच्छे काम हो रहे हैं। प्राय: हर लघु पत्रिका देवनागरी में लिखी जा…
सच है कि आलोचकों से लेखकों की नींद हराम होने की हिंदी साहित्य में लंबी परंपरा रही है।
‘मेरे यारों, यह हादसा हमारे ही समयों में होना था, कि मार्क्स का सिंह जैसा सिर सत्ता के गलियारों में…
प्रासंगिकता का सवाल साहित्य और समाज के संबंध का सवाल नहीं है। यह साहित्य की सामाजिक उपयोगिता का सवाल है।
मैं ठंड पी गया और सोचने लगा कि साहित्यिक गोष्ठी में क्योंकर आया? आलोचक को देखा तो उनका व्याख्यान जारी…
इस वक्त हिंदी में कई पीढ़ियों के रचनाकार सक्रिय हैं। सुखद है कि सभी की संवेदना अलग-अलग तरह से सरोकार…
समाज सामुदायिक भावनाओं की वह इकाई है, जिसके व्यापकता ग्रहण करने पर राष्ट्रीय स्वरूप सामने आता है। सामाजिक संदर्भों में…
आज के मीडियाग्रस्त समाज में जिस तरह भोगवादी सरोकारों को बढ़ावा दिया जा रहा है, वह लोगों के ‘सहृदय सामाजिक’…