आगामी 25 जून को देश में आपातकाल थोपे जाने के चालीस साल पूरे हो जाएंगे। लोकतंत्र को झकझोर देने वाले उस स्याह दौर को याद करते हुए भारतीय जनता पार्टी के संस्थापक अगुवा और अब मार्गदर्शक मंडल के सदस्य लालकृष्ण आडवाणी आज भी आपातकाल के अंदेशे को स्वीकार करते हैं।

इंडियन एक्सप्रेस से खास बातचीत में उन्होंने कहा कि भारतीय राजनीतिक प्रणाली अब भी आपातकाल की शब्दावली से मुक्त नहीं हुई है और उसी तरह भविष्य में नागरिक स्वतंत्रता के हनन की आशंका से इनकार नहीं किया जा सकता। आडवाणी ने कहा कि इस समयबिंदु पर संवैधानिक और कानूनी संरक्षण के बावजूद, जनतंत्र को कुचल सकने वाली ताकतें ज्यादा ताकतवर हैं।

बुजुर्ग भाजपा नेता का कहना है कि मैं नहीं समझता कि आपातकाल के दौर के बाद ऐसा कुछ किया गया हो जिससे मुझे यह आश्वासन मिल सके कि नागरिक स्वतंत्रता का फिर से हनन नहीं हो सकता। बेशक, यह कोई आसानी से नहीं कर सकता… लेकिन यह मुमकिन है। मैं यह नहीं कहना चाहता कि मूल अधिकारों और स्वतंत्रता में फिर से कटौती कर दी गई है।

इस सवाल पर कि आप को किस बात से लगता है कि देश में आपातकाल जैसे हालात का खतरा आसन्न है, उन्होंने कहा कि मैं अपनी राज्य व्यवस्था में ऐसा कोई संकेत नहीं देखता जिससे मुझे भरोसा हो सके। लोकतंत्र के लिए प्रतिबद्धता और जनतंत्र से संबंधित विभिन्न पक्षों में कमी दिख रही है। उन्होंने कहा कि आज मैं यह नहीं कहना चाहता कि राजनीतिक नेतृत्व परिपक्व नहीं है। लेकिन कमियों के कारण भरोसा नहीं होता। मुझे इस बात पर विश्वास नहीं है कि आपातकाल का दौर फिर नहीं लौट सकता।

आपातकाल को इंदिरा गांधी और उनकी सरकार का अपराध बताते हुए आडवाणी ने कहा कि यह फिर हो सकता है, भले ही देश को सवैंधानिक संरक्षण प्राप्त है। उन्होंने कहा कि 2015 में पर्याप्त सुरक्षा उपाय नहीं हैं। यह संभव है कि आपातकाल देश को एक और आपातकाल से बचा सके।