आमतौर पर सेवानिवृत्ति के बाद बहुत सारे लोगों के सामने समस्या आती है कि वे कैसे अपना समय बिताएं। अपनी सेहत का कैसे ध्यान रखें। ऐसे में बच्चों के साथ खेलना सबसे उत्तम गतिविध है। जिनके परिवार में पोते-पोतियां हैं, उनके लिए समय बिताने और स्वस्थ रहने का सबसे अच्छा तरीका यही है कि उनके साथ खेलना शुरू कर दें।
‘अमेरिकन एकेडमी आफ पीडियाट्रिक्स’ की ‘द पावर आफ प्ले’ शीर्षक एक रिपोर्ट में कहा गया है कि बच्चों के साथ खेलना न केवल बच्चों के लिए, बल्कि वयस्कों के लिए भी बहुत लाभदायक होता है। वयस्क अपने बचपन के आनंद को दुबारा अनुभव और खुद को तरोताजा कर सकते हैं। आज के महानगरीय जीवन में प्राय: अवकाश प्राप्त लोगों और बुजुर्गों के सामने सबसे बड़ी समस्या देखी जाती है कि वे अपना समय कैसे व्यतीत करें। ऐसे ज्यादातर लोग अक्सर घर में अकेला पड़ जाते हैं। इस तरह उनकी सेहत पर प्रतिकूल असर नजर आने लगता है।
सक्रिय पारिवारिक संस्कृति
बच्चों का अपने दादा-दादी से सहज लगाव होता है, इसलिए वे भी अपने माता-पिता की अपेक्षा दादा-दादी के साथ समय बिताना अधिक पसंद करते हैं। जिन परिवारों में पोते-पोतियां नहीं हैं, वे दादा-दादी से दूर रहते हैं, उन बुजुर्गों के भी आस-पड़ोस में ऐसे परिवार अवश्य मिल जाते हैं, जिनके छोटे बच्चे हों। वे उनके साथ घुल-मिल सकते हैं। इस तरह आस-पड़ोस में एक तरह की सक्रिय पारिवारिक संस्कृति का विकास होता है। बुजुर्गों की शारीरिक और मानसिक सेहत भी अच्छी रहती है।
कई ऐसे लोगों पर अध्ययन हो चुके हैं, जिसमें पाया गया है कि जो लोग बच्चों के साथ खेलने में अपना समय व्यतीत करते हैं, उनकी सेहत अन्य गतिविधियों में शामिल लोगों की अपेक्षा बेहतर होती है। इसलिए परिवार के साथ-साथ अगर मुहल्ले के बच्चों को शामिल करके ऐसी गतिविधियां चलाई जाएं, जिनमें खेल का आनंद लिया जाए, तो इससे सेहत और सौहार्द दोनों बढ़ते हैं।
संवेदनात्मक लाभ
पोते-पोतियों के साथ खेलने, समय बिताने से न केवल पारिवारिक संस्कृति मजबूत होती है, बल्कि इससे बच्चों और बुजुर्ग दोनों के संवेदनात्मक और संज्ञानात्मक विकास में भी मदद मिलती है। बच्चों को बुजुर्गों के अनुभव प्रेरक लगते हैं, जिससे वे अपने जीवन के मूल्य तय करने में सक्षम हो पाते हैं। इसी तरह बुजुर्गों को अपने बचपन के अनुभवों की स्मृतियों में लौटने से मानसिक ऊर्जा बढ़ती है।
साझेदारी का भाव
भारत में परिवार व्यवस्था पश्चिमी देशों की तुलना में अधिक मजबूत है, इसलिए यहां छोटे-बच्चों के साथ बुजुर्गों के लिए समय बिताना कोई मुश्किल काम नहीं है। सामाजिक व्यवस्था भी ऐसी है कि मुहल्ले के बच्चों को जोड़ कर गतिविधियां चलाई जा सकती हैं। इस तरह परिवार और समाज में साझेदारी का भाव बनता है। बच्चे बुजुर्गों के अनुभवों का लाभ उठाते हैं। तो बुजुर्ग अपने बचपन के दिनों में लौट पाते हैं। पर बच्चों से घुलने-मिलने के लिए बुजुर्गों को अपने स्वभाव में लचीलापन लाना होगा, हर समय बच्चों को अनुशासित करने का भाव मन से निकालना पड़ेगा। बच्चों की गतिविधियों में आनंद लेना सीखना पड़ेगा।