दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल की गिरफ्तारी और छह दिन की प्रवर्तन निदेशालय की हिरासत की खबर ने चैनलों को कई दिन व्यस्त रखा। ‘आप’ के प्रदर्शन और भाजपा के जवाबी प्रदर्शनों ने भी कैमरों को व्यस्त रखा। ‘आप’ प्रवक्ता कहते रहे कि केंद्र, दिल्ली सरकार को काम नहीं करने देना चाहता। उधर भाजपा प्रवक्ता कहते रहे कि वे शराब घोटाले के मुख्य साजिशकर्ता हैं, कि कब, कैसे, कहां और किन-किन के बीच करोड़ों रुपए का लेन-देन हुआ। ‘मनी ट्रेल’ भी साफ है।…

हर बहस में ‘आप’ प्रवक्ता पूर्व परिचित दलीलें देते दिखते कि इतने छापे मारे, लेकिन एक पैसा न मिला। ‘मनी ट्रेल’ कहीं नहीं है। पीएम केजरीवाल से डरते हैं।… फिर, ‘गिरफ्तारी’ को लेकर एक ‘आप’ प्रवक्ता ने सारे कांड को एक ‘दार्शनिक अंदाज’ दे दिया कि केजरीवाल ‘व्यक्ति’ नहीं, एक ‘विचार’ हैं। आप व्यक्ति को गिरफ्तार कर सकते हैं ‘विचार’ को नहीं। इस ‘विचार’ का मर्म न भाजपा प्रवक्ता समझे, न एंकर। वे इसी पर लगे रहे कि जेल से सरकार चलाना गलत है, नैतिक दृष्टि से केजरीवाल को इस्तीफा दे देना चाहिए।

फिर एक शाम एक चैनल ‘पोलिटिकल स्टाक एक्सचेंज’ के आंकड़ों से बताने लगा कि 48 फीसद लोग बोले कि केजरीवाल की गिरफ्तारी से भाजपा को फायदा होगा, तो 39 फीसद ने कहा कि नहीं। ‘गिरफ्तारी से किसे हमदर्दी मिलेगी’ के जवाब में 52 फीसद ने कहा, ‘हां’ मिलेगी, जबकि 35 फीसद ने कहा कि नहीं। चैनल हमेशा यही करते हैं! गत सात दिन हर चैनल पर एक ही बहस रही कि ‘दिल्ली सरकार जेल से कैसे चलेगी?’ ‘आप’ प्रवक्ताओं का एक ही जवाब रहता कि जेल से चलेगी, इस बारे में कानून कुछ नहीं कहता।

इस तरह, एक ‘विचार’ सरकार चलाता रहा और सरकार चलती रही। मुख्यमंत्री के पत्र आते। कभी एक मंत्री और कभी केजरीवाल की पत्नी उनको चैनलों पर पढ़तीं। पढ़ने में एक भावुक स्वर रहता कि ‘…केजरीवाल कहीं भी रहें, वे दिल्ली की जनता की सेवा करते रहेंगे। वे सच्चे देशभक्त हैं… उनका स्वास्थ्य ठीक नहीं… पीएम उनसे डरते हैं… इकतीस की महारैली में सब साथ दें…’

कुछ एंकर कहते कि ईडी ने अपनी कार्रवाई से कहीं विपक्ष को ‘एकजुट’ तो नहीं कर दिया, तो जवाब आता कि सरकार भ्रष्टाचार से समझौता नहीं कर सकती। फिर एक बहस में दो चुनाव विश्लेषक बताते रहे कि इससे ‘सहानुभूति लहर’ तब होती, जब केजरीवाल को अचानक पकड़ा जाता। उनको नौ समन दिए गए, वे न आए तो गिरफ्तार किए गए… ऐसे में सहानुभूति कहां? तो भी कुछ चर्चक यही कहते रहे कि जेल से सरकार चलाना गलत है।

अरे सर जी! समझिए न कि जिस तरह घोटाला ‘सगुण’ है, लेकिन ‘मनीट्रेल’ ‘निर्गुण’ है, उसी तरह जो ‘सगुण’ है वह ‘अंदर’ है, लेकिन जो ‘निर्गुण’ (विचार) है, वह ‘बाहर’ है और वही सरकार चला रहा है! लगता है कि आम आदमी पार्टी ने गिरफ्तारी से पहले ही तैयारी कर ली थी कि बाद में कैसे क्या ‘विचार खेल’ करना है, जबकि भाजपा वाले अभी तक ‘सगुण’ पर ही अटके हैं। सच! ‘आप’ का यह ‘निर्गुण’ विचार हमें तो ‘क्वांटम’ के ‘श्रोडिंगर कैट’ के विचार और ‘मल्टीवर्स’ से भी सवाया लगता है कि बंदा ‘है भी’ और ‘नहीं भी’! एकदम ‘अस्ति-नास्ति’ की तरह!

इसे कहते हैं सगुण का ‘निर्गुण निर्माण’…‘बिनु पग चलहिं सुनहिं बिनु काना, कर बिनु कर्म करहिं बिधि नाना’… ऐसे ‘निर्गुण’ को कौन रोक सकता है? साफ है: ‘भाजपा’ डाल-डाल तो ‘आप’ पात-पात! इसीलिए हे प्राणी! ‘निर्गुन के गुन गा…’ फिर एक दिन उपराज्पाल की मार्फत ‘बाइट’ आई कि सरकार चलाने का ‘ये माडल ठीक नहीं’ लेकिन बहसों में सारा खेल ‘कानून’ बरक्स ‘सहानुभूति लहर’ के बीच झूलता दिखा।

बहरहाल, एक एंकर अपने ‘शो’ में केजरीवाल की गिरफ्तारी पर कुछ हमदर्द भाव से कहता दिखा कि वे एक ‘नेशनल फेस’ हैं, आप एक राष्ट्रीय चेहरे को गिरफ्तार करेंगे तो ‘इंडी’ गठबंधन का क्या होगा… एक दल के बैंक खाते ‘फ्रीज’ कर दिए… ‘समतल जमीन’ कहां है… हम किस तरह के चुनाव में जा रहे हैं… क्या यह विपक्ष को कुचलना है? क्या उनको सहानुभूति मिलेगी? भारत का मतदाता क्या महसूस करता है?

फिर एक दिन छह सौ वकीलों ने मुख्य न्यायाधीश को एक पत्र लिखकर बड़ी अदालत पर बनाए जाते ‘दबावों’ की आलोचना की, जिस पर कुछ चैनलों ने चर्चा भी की। लेकिन सप्ताह की सबसे ‘हिट’ कहानी, भाजपा द्वारा कंगना रानौत को ‘मंडी’ से टिकट देने और कांग्रेस की एक बड़ी प्रवक्ता के सोशल मीडिया पर लिखे ‘मंडी के भाव’ वाली टिप्पणी ने दी और केजरीवाल के आसपास घूमती बातों से हटाकर, बहसों में नई जान डाल दी। कांग्रेस प्रवक्ता कहिन कि उनके ‘हैंडिल’ को कई इस्तेमाल करते हैं, इस टिप्पणी के बारे में जैसे ही मालूम हुआ, उन्होंने हटा दिया। किसने ऐसा किया उसका पता करेंगे।…