हाथ में मोबाइल, कान में ईयरफोन, तेज संगीत की धुन पर थिरकते पैर, देर रात की पार्टियां, शराब, सिगरेट और लिव-इन को एक टशन मानती आज की युवा पीढ़ी, आधुनिकता और तकनीक दोनों की जकड़ में फंस चुकी है। दिल्ली, मुंबई, चेन्नई, हैदराबाद, बंगलुरू और पुणे समेत देश के कई प्रमुख शहरों में हुए अध्ययन बताते हैं कि फेसबुक, वाट्स ऐप्प, इंस्टाग्राम और ऐसी ही कई सोशल नेटवर्किंग साइटों की गुलाम बनती युवा पीढ़ी की जीवन-शैली और सोच में व्यापक रूप से बदलाव आ गया है। हर हाथ में तेजी से पहुंच रहे स्मार्टफोन और लगभग मुफ्त इंटरनेट सेवाओं ने जीवन-शैली में बदलाव की इस प्रक्रिया में तेजी ला दी है। अब युवा सुबह उठते ही अपने स्मार्टफोन पर सोशल साइटों को चेक करने को तरजीह देते हैं।
तल्लीन हैं सोशल मीडिया पर
इन दिनों युवा अपने मोबाइल फोन और सोशल मीडिया में इतने तल्लीन रहते हैं कि वे यह भूल गए हैं कि इसके बाहर भी एक जीवन है। मनोवैज्ञानिकों का मानना है कि आज का युवा स्वयं की छवि को लेकर बहुत चिंतित है, इसलिए सोशल मीडिया के माध्यम से वह उस चीज के बारे में दिखाना और बताना चाहता है, जो उसके पास है। उसकी जीवन-शैली पर जिस तरह से तकनीक हावी है, उसका ही सहारा लेते हुए, हर क्षण का आनंद लेने के बजाय वह यह दिखाना चाहता है कि उसका जीवन कैसा रहा है। वास्तव में वह खुश नहीं है, लेकिन वह बताना चाहता है कि उसका जीवन बेहद दूसरों की तुलना में बेहतर और सफल है।
मोबाइल फोन और सोशल मीडिया प्लेटफार्मों के अलावा जो आधुनिक युवाओं के जीवन पर बहुत बड़ा प्रभाव डाल रहे हैं वह है अन्य गैजेट्स और अन्य तकनीकी रूप से उन्नत उपकरण, जिन्होंने लोगों की जीवन-शैली में बहुत बड़ा बदलाव लाया है। आज के युवा सुबह पार्क में घूमने के बजाय जिम में कसरत करना पसंद करते हैं। आज का युवा पैदल चलने के बजाय थोड़ी-सी दूरी के लिए भी कार या बाइक का प्रयोग करता है। सीढ़ियों के बजाए लिफ्ट का इस्तेमाल किया जा रहा है, माइक्रोवेव और एयर फ्रायर्स में पका खाना पसंद कर रहा है और पार्क की जगह मॉल में घूमने जा रहा है।
आत्मकेंद्रिकता
यह सामाजिक बदलाव का दौर है, जिसमें विभिन्न माध्यमों से आज जहां एक ओर संपर्क का दायरा विस्तृत किया है, वहीं दूसरी ओर इसकी वजह से युवा अकेला और आत्मकेंद्रित होता जा रहा है। सिर्फ अपने बारे में सोचना- यह एक चलन का रूप ले रहा है। इट्स माई लाइफ की तर्ज पर बिना रुके आगे बढ़ती युवा पीढ़ी, अपनों को, रिश्तों को भी नकारने से गुरेज नहीं कर रही है। मैं और सिर्फ मैं- नया फलसफा है उनका, और उसके बीच में जो भी आता है, उसे छोड़ने में भी परहेज नहीं है। वे मानते हैं कि इस बदलती जीवन-शैली के साथ अगर ताल मिला कर चलना है तो इसे खुले मन से अपनाना भी जरूरी है।
असल में उनके जीने का अंदाज बिल्कुल नया है। रहन सहन और खानपान की शैली हो या फिर उनके काम करने या सोचने का तरीका, बदलाव बड़ी तेजी से आया है। वह फास्ट लाइफ जीना चाहता है, वह शार्टकट रास्ते पर बहुत जल्दी कामयाबी हासिल कर लेना चाहता है। इस जीवन-शैली ने युवा की सोच के साथ-साथ उसकी सहनशीलता, उसके मोरल वैल्यूज में भी सेंध लगाई है। घर के खाने की जगह पिज्जा, बर्गर और मोमोज उनकी पसंद बन गए हैं। इस बात का असर यह हो रहा है शारीरिक ही नहीं, युवा मानसिक रोगों का भी शिकार हो रहे हैं।
निराशा की गिरफ्त में
हाईटेक जीवन-शैली ने जहां युवाओं के लिए सब कुछ बदल कर रख दिया है, वहीं कई बीमारियों ने भी उन्हें घेर लिया है। हाईपरटेंशन की बीमारी अब युवाओं को ज्यादा चपेट में ले रही है। नेशनल हार्ट इंस्टीट्यूट के एक सर्वे से यह बात सामने आई है कि तीस फीसद युवा खतरनाक रूप से हाईपरटेंशन की चपेट में है। फिटनेस के लिए जिम और हेल्थ ड्रिंक का सहारा लेने वाली यह युवा पीढ़ी, जंक फूड संस्कृति के चलते मोटापा के वर्ग में कदम रख चुकी है।
वैश्वीकरण और उपभोक्तावाद संस्कृति के दौर में युवा पीढ़ी ब्रांडेड लाइफ को ही जीने का ढंग मानती है। प्रतियोगिता और जैसे भी हो, आगे निकलना ही है, इस बदलती जीवन-शैली का एक और परिणाम है। प्रतिस्पर्धा जब निराशा की ओर धकेलती है तो विफलता सहन न करने पर आत्महत्या जैसा कदम उठाने से भी नहीं हिचकती है यह पीढ़ी।
आंकड़े बताते हैं कि पिछले दस वर्षों में पंद्रह से चौबीस साल के युवाओं में आत्महत्या के मामले सौ प्रतिशत से ज्यादा बढ़े हैं। विश्व स्वास्थ्य संगठन के आंकड़े बताते हैं कि 2020 तक पूरी दुनिया में युवा पीढ़ी में मौत की बड़ी वजह तनाव हो सकता है। पिछले कुछ सालों से युवा पीढ़ी में लगातार बदलती जीवन-शैली के कारण तनाव बढ़ रहा है। निराशा और खालीपन के हावी होने की वजह से उनकी जीवन-शैली पर नकारात्मक प्रभाव पड़ रहा है, जो तनाव की बड़ी वजह है। पहले चालीस वर्ष की आयु के बाद लोग इसकी गिरफ्त में आते थे, लेकिन अब बीस वर्ष की आयु के युवक-युवतियां यहां तक कि स्कूली बच्चे भी तनाव का शिकार हो रहे हैं। आजकल की युवा पीढ़ी पर काम का बढ़ता दबाव जो उसकी जीवन-शैली का अहम हिस्सा है, उसके लिए जानलेवा साबित हो रहा है। असंतोष, आत्मविश्वास की कमी, बढ़ती महत्त्वाकांक्षाएं, और सुख-सुविधाओं को जल्दी से पाने की चाहत, से युवा वर्ग के तनाव की गिरफ्त में आने की आशंकाएं कई गुना बढ़ी हैं।
इस जीवन-शैली को अपनाने को मजबूर युवा पीढ़ी के लिए इस समय जरूरी है एक से मार्ग की तलाश करना, जो उनकी आकांक्षाओं की पूर्ति तो करे, पर साथ ही भटकाव से दूर रखे। इसमें समाज और अभिभावकों को सकारात्मक भूमिका निभाने की जरूरत है। अधिकतर युवाओं की जीवन-शैली इसलिए भी बिगड़ रही है कि उन्हें माता-पिता का ठीक से मार्गदर्शन नहीं मिल पा रहा। इसलिए इसमें अभिभावकों की भूमिका ज्यादा महत्त्वपूर्ण है। उन्हें सकारात्मकता की ओर प्रेरित करने में उनका सहयोग जरूरी है।