कोरोना महामारी का खतरा अभी टला भी नहीं है कि बरसात में होने वाली कई जानलेवा संक्रामक बीमारियों ने देश के कई हिस्सों में दस्तक दे दी है। इसकी चपेट में सबसे ज्यादा नवजात या कम उम्र के बच्चे आ रहे हैं। ऐसे में जरूरी है कि हम कुछ ऐसे एहतियातों पर ध्यान दें, जिससे मासूमों को सेहत के इन जानलेवा खतरों से बचाया जा सके। दरअसल, बरसात के दिनों में प्रदूषित पानी की वजह से संक्रमण और उससे जुड़े गंभीर रोग के होने का खतरा बढ़ जाता है। गौरतलब है कि नवजात शिशु की रोग प्रतिरोधक क्षमता ज्यादा नहीं होती है, जिस कारण वे जल्दी बीमार हो जाते हैं। इसलिए उनकी देखभाल में खासी सतर्कता की जरूरत है।
स्नान और पहनावा
तेज गर्मी के बीच अचानक बारिश के कारण तापमान जल्दी-जल्दी कम-ज्यादा होता रहता है। इस दौरान मौसम में नमी काफी बढ़ जाती है, जिस कारण बच्चों में बुखार, खांसी, जुकाम, बैक्टीरियल एलर्जी, फंगल इंफेक्शन, दाद-खाज आदि का खतरा बढ़ जाता है। ऐसे मौसम में आप बच्चों को पानी से ज्यादा से ज्यादा दूर रखें। नवजात शिशु को बारिश के मौसम में हफ्ते में 2-3 बार नहलाना उचित रहेगा। आमतौर पर नवजात शिशु बिस्तर पर लेटे रहते हैं और ऐसे में उनका शरीर ज्यादा गंदा नहीं होता है। खासकर अगर आप मल-मूत्र के बाद उनकी अच्छे तरीके से सफाई करते हैं तो फिर बच्चे को अलग से बार-बार नहलाना कतई सही नहीं है।
बारिश के मौसम में नवजात शिशु को हमेशा सूती के पूरे बदन को ढकने वाले कपड़े पहनाएं। इससे बच्चे का शरीर ठंड और गर्मी के बीच अपेक्षित रूप से संतुलित रहता है। यही नहीं, पूरे बदन के कपड़े से बच्चों का मच्छरों से बचाव होता है। बच्चों के कपड़े रोजाना जरूर बदलें। ऐसा करने से संक्रमण से होने वाली बीमारियों से उनका बचाव होगा।
जरूरी है मालिश
बड़ों के साथ ही नवजात शिशु के लिए भी तेल की मालिश बेहद फायदेमंद होती है। मालिश से जहां बच्चे की हड्डियां और मांसपेशियां मजबूत होती हैं। वहीं बारिश के ठंड वाले मौसम में तेल की मालिश से शरीर को गरमाहट महसूस होती है, जिससे उनके बीमार होने का खतरा कम हो जाता है।
मालिश के लिए सरसों का तेल पारंपरिक तौर पर प्रचलन में है और इसे स्वास्थ्य कारणों से भी बेहतर माना गया है। वैसे शिशुओं की मालिश के लिए कई आयुर्वेदिकतेल भी उपलब्ध हैं, आप चिकित्सकीय सलाह पर इनमें से किसी का भी उपयोग कर सकते हैं। वैसे तो नवजात बच्चों की मालिश रोज होनी चाहिए। पर अगर ऐसा संभव न भी तो हो हफ्ते में कम से कम 2-3 बार उनकी अच्छे से मालिश तो जरूर करें।
खानपान का ध्यान
सर्दी और गर्मी की ही तरह ही बरसात में भी नवजात शिशु के आहार का खास ध्यान रखना चाहिए। आमतौर पर छह महीने तक के नवजात शिशु मां का दूध ही पीते हैं, जिसमें पानी की भरपूर मात्रा पहले से होती है। जबकि उससे बड़े बच्चों को गर्मी लगने या पसीना आने पर उन्हें पानी पिला सकते हैं। यह भी कि बच्चों को स्वच्छ पानी ही पिलाएं। इसके लिए सबसे अच्छा विकल्प है कि आप पानी उबाल लें और उसे सामान्य तापमान पर आ जाने के बाद पिलाएं। बेहतर होगा कि बच्चों के अलावा घर के दूसरे सदस्य भी कम से कम इस मौसम में इसी तरह पानी पिएं।
एहतियात और हिदायत
-बारिश के मौसम में शाम से ही मच्छर परेशान करने लगते हैं। ऐसे में शिशु को मच्छरों से बचाने के लिए दिन से ही घर के खिड़की-दरवाजों को बंद रखें और घर में पानी न जमा होने दें।
-अगर आपके आसपास मच्छर हैं, तो शिशु के लिए मच्छरदानी का प्रयोग करें। ध्यान रखें कि शिशु के कमरे में कॉइल या मॉस्कीटो रिपलेंट का प्रयोग न करें।
-इस मौसम में नमी के बढ़ने से संक्रमण का खतरा बहुत बढ़ जाता है। इसलिए घर के बिस्तर, कपड़े, फर्श आदि को गीला होने से बचाएं। थोड़े-थोड़े समय में शिशु की नैपी/लंगोट चेक करते रहें और जरूरी होने पर उसे तत्काल बदलें।
-किसी भी तरह की असामान्य स्थिति होने पर तत्काल चिकित्सक की मदद लें।
(यह लेख सिर्फ सामान्य जानकारी और जागरूकता के लिए है। उपचार या स्वास्थ्य संबंधी सलाह के लिए विशेषज्ञ की मदद लें।)