तनाव और अनिद्रा आधुनिक जीवनशैली की देन हैं। कोरोना काल में इस तरह की समस्याएं और बढ़ गई हैं। इस दौरान खासतौर पर हर उम्र के लोगों में अवसाद के लक्षण देखने को काफी मिल रहे हैं। इस बारे में कई अध्ययन भी सामने आए हैं। विशेषज्ञों की सलाह है कि ऐसे में लोगों को अन्य एहतियात के साथ यह भी ध्यान रखना चाहिए कि उनकी नींद पूरी हो। नींद नहीं आना या कम आना सेहत के लिहाज से अच्छा संकेत नहीं है। लिहाजा हमें इस बारे में सावधान तो रहना ही चाहिए, हर वो कोशिश भी करनी चाहिए जिससे अनिद्रा की समस्या न पैदा हो।
काम और आराम
कोरोना महामारी ने लोगों के काम करने के अभ्यास को पूरी तरह बदलकर रख दिया है। इसमें घर और कार्यस्थल का एक हो जाना सबसे बड़ा बदलाव है। इससे घर और दफ्तर की दूरी या अंतर मिट गया है। ऐसा लंबे समय तक चलना एक तनावपूर्ण अनुभव है और इसी कारण अनिद्रा की समस्या बढ़ी भी है। इसके पीछे बड़ी वजह यह है कि दफ्तर में काम करने के घंटे तय हैं जबकि घर में ज्यादा देर तक काम करना पड़ता है। इसके अलावा बहुत लोगों की मजबूरी है कि उन्हें बहुत ज्यादा काम करना पड़ता है तो कुछ लोगों को लगता है कि ज्यादा से ज्यादा काम करना ही आगे बढ़ने का एकमात्र तरीका है। लेकिन यह आपकी मजबूरी हो या चुनाव, इसका हल तो आपको निकालना ही होगा। अन्यथा इसका असर यह होगा कि आप नाहक की तनाव और अनिद्रा के शिकार होंगे।
नौकरी और तनाव
कुछ लोगों को सात से आठ घंटे सोना समय की बर्बादी लगती है। लेकिन आप देखेंगे कि अगर काफी दिनों तक आप ढंग की नींद नहीं लेते हैं तो आपका शरीर किसी न किसी बीमारी का शिकार हो जाता है और डॉक्टर आपकी पर्ची पर बिस्तर पर आराम लिख देते हैं। फिर आपको मजबूरी में बिस्तर पकड़ना पड़ता है। ऐसी स्थिति न आए इसके लिए जरूरी है कि आप अनावश्यक खुद को न थकाएं और शरीर को जरूरी आराम दें।
नींद शरीर को आराम देने का सबसे उत्तम तरीका है। नौकरी के तनाव का भी बहुत असर नींद पर पड़ता है। हाल के सालों में कई ऐसे अध्ययन भी सामने आए हैं जिसमें कुछ खास क्षेत्रों में काम करने वाले लोगों में तनाव और अनिद्रा की समस्या ज्यादा देखने को मिली है। लिहाजा यह समझ लेना चाहिए कि तनाव लेने भर से कोई काम आसान नहीं हो जाता है। एक समय नौ से पांच की नौकरी का मजाक उड़ाने वाली पीढ़ी आज चौबीस गुणे सात के जाल में उलझ गई है। इस तरह की जीवनशैली में अनिद्रा जैसी समस्या आम बात है।
नींद और इंटरनेट
सुबह की सैर करते हुए ईयरफोन लगा कर गाना सुन रहे हैं तो गाड़ी चलाते हुए पॉडकास्ट पर राजनीतिक बहस, खाना खाते वक्त फेसबुक पर इसका जवाब दे रहे हैं कि ‘आपके दिमाग में क्या है’ तो दफ्तर जाने के पहले इंस्टाग्राम को भी अद्यतन करना ही है। बीच में टीवी देखना और ऑनलाइन खबरें पढ़ना। बिस्तर पर जाने के बाद सोशल मीडिया की किसी बहस में उलझ जाना। हमने अपने दिमाग को एक मिनट के लिए भी खाली छोड़ा ही नहीं है। ऐसे में जो सबसे ज्यादा प्रभावित होता है वह है नींद। सेहत के लिए यह अच्छी स्थिति नहीं है।
हिदायत और एहतियात
-सोशल मीडिया के हर मंच पर हमेशा मौजूदगी दर्ज करानी जरूरी नहीं है। बिस्तर पर सोने जाने के एक घंटा पहले किसी भी तरह के स्क्रीन और सोशल मीडिया से दूरी बना लें। सोने से पहले अपनी मनपसंद कोई हल्की-फुल्की किताब पढ़ें और किसी भी तरह की विवादित बातें न सोचें।
-अच्छी नींद के लिए शरीर का थकना बहुत जरूरी है। अपनी सेहत और रुचि के हिसाब से कोई भी शारीरिक गतिविधि चुन लें। अगर वक्तनिकाल सकते हैं तो सुबह और शाम दोनों वक्त सैर करें।
-अगर आपको अनिद्रा की शिकायत है तो किसी भी तरह के नशे से दूर रहें। नशा करके नींद लाना सेहत के लिए सबसे नुकसानदेह है। शाम होने के बाद ज्यादा चाय-कॉफी से दूर रहें तो बेहतर होगा। ’सोने जाने के एक घंटे पहले रात का खाना जरूर खा लें। रात को हल्का और सुपाच्य भोजन लें। नींद की समस्या ज्यादा परेशान कर रही है तो डॉक्टरी सलाह जरूर लें क्योंकि यह किसी और बीमारी का भी लक्षण हो सकता है।
(यह लेख सिर्फ सामान्य जानकारी और जागरूकता के लिए है। उपचार या स्वास्थ्य संबंधी सलाह के लिए विशेषज्ञ की मदद लें।)