मेधा पिछले साल स्कूल की टॉपर थी। उसे उम्मीद थी कि इस साल भी वही नंबर वन पर रहेगी। लेकिन मंच से उसे नहीं अनु को बुलाया गया। स्कूल टॉपर के रूप में अनु के लिए तालियां बज रही थीं। मेधा का नाम नहीं पुकारा गया तो वह वह फफक-फफक रोने लगी। प्रिंसिपल नाहिदा ने उसे इशारे से बुलाया। नजदीक पहुंचते ही मेधा की आंखों से आंसू झरने लगे। प्रिंसिपल नाहिदा ने पूछा, ‘मेधा, जानना चाहती हो कि तुम इस बार बेहतर प्रदर्शन क्यों नहीं कर पाई?’ ूमेधा ‘हां’ में अपना सिर ही हिला पाई। प्रिंसिपल ने कहा, ‘तुमने पिछले साल सर्वश्रेष्ठ अंक हासिल किए थे। वहीं तुम्हारी सबसे अच्छी सहेली राधिका इस बार भी टॉप इलेवन में नहीं आ पाई। सबसे बड़ी बात अनु की मेहनत रंग लाई। अनु मेरिट में कहीं भी नहीं थी। लेकिन आज वह इस स्कूल की सर्वश्रेष्ठ छात्रा बनकर उभरी है।’ मेधा ने सिसकते हुए कहा, ‘लेकिन मैम मैंने तो बहुत मेहनत की थी। फिर भी मैं…मेधा का गला भर आया। वह आगे कुछ भी न बोल पाई।

प्रिंसिपल ने मुस्कराते हुए उसे लाइन में खड़े होने को कहा। प्रिंसिपल ने अब सभी छात्राओं को संबोधित करते हुए कहा, ‘प्यारे बच्चों। सबसे पहले आप सभी को बधाई। यह खुशी की बात है कि आप सभी अच्छे नंबरों से पास हुए हैं। परीक्षा कोई हौवा नहीं है। परीक्षा न ही अखाड़ा है और न ही हार-जीत का मैदान। मैं मानती हूं कि आप सभी बच्चों में एक से बढ़कर एक प्रतिभाएं हैं। हुनर है। हौसला है। बिना रुके, बिना थके लगातार काम करने की ताकत आप में है। वैसे कोई भी परीक्षा किसी भी बच्चे का सही मूल्यांकन नहीं कर सकती। मूल्यांकन तो लगातार चलने वाली प्रक्रिया है। लेकिन फिर भी साल भर का आकलन एक लिखित परीक्षा से ही होता है। अव्वल तो हर कोई नहीं आ सकता। कोई एक ही रहेगा। लेकिन सबसे बड़ी बात यह है कि हमने हर दिन नया क्या सीखा। हम हर रोज अपना आकलन करें। विचार करें कि हम आज बीते कल से बेहतर हुए कि नहीं। परीक्षा हमें यही अवसर देती है। केवल पढ़ाई और लिखाई से आपका रिपोर्ट कार्ड पूरा नहीं होता। साल भर आपकी दैनिक गतिविधियां क्या थीं। उसका आकलन करने के बाद ही आपकी मेरिट बनी है।’

यह कहकर प्रिंसिपल ने नाहिदा को इशारा किया। नाहिदा फाइल लेकर मंच पर आ गई। नाहिदा ने कहना शुरू किया, ‘प्यारे बच्चों आज ही से अब आप नई कक्षा के छात्र बन गए हैं। अब बात करते हैं इस बार की सर्वश्रेष्ठ टॉपर अनु की। अनु ने बेहतर प्रदर्शन किया है। अनु साल के पहले ही दिन से अपने लक्ष्य का पीछा करती रही। इस छात्रा ने एक भी दिन अपने इस संकल्प को दिल और दिमाग से बाहर नहीं निकलने दिया। लगन, हौसला और आत्मविश्वास के चलते अनु ने यह स्थान प्राप्त किया है।’ सभागार तालियों की गड़गड़ाहट से गूंज उठा। अनु चहकते हुए मंच पर अपना पुरस्कार लेने आई।

नाहिदा ने फाइल पर नजर दौड़ाते हुए कहा, ‘अब बात करते हैं उन बच्चों की जो चाहते तो हैं कि वे अव्वल रहें। लेकिन परिणाम उनके मुताबिक नहीं आता। ऐसा क्यों होता है? इस पर हर छात्र को सोचना चाहिए। केवल नियमित स्कूल आना और कक्षा में बैठ जाना ही काफी नहीं होता। सबसे पहले हमें मायूसी को अपने मन से निकालना होगा। पिछले साल के प्रदर्शन को भूल कर नए सिरे से नई उपलब्धियां हासिल करने के लिए जुट जाना होगा। मायूसी ही हमें निराश करती है। हम अच्छा करने से पहले ही निराश हो जाते हैं। बहुत अच्छा कर सकने की क्षमता के बाद भी हम अच्छा नहीं कर पाते। हम उम्मीद करते हैं कि आप सभी आज ही से अपने आत्मविश्वास को बढ़ाएंगे और मायूस नहीं होंगे।’ सबने तालियां बजाकर नाहिदा की बात का समर्थन किया।

नाहिदा ने कहा, ‘अब मैं मंच पर मेधा को बुलाना चाहूंगी। मेधा पिछले साल टॉपर रही हैं।’ मेधा सुबकते हुए मंच पर आ गई। प्रिंसिपल नाहिदा ने मंच पर आकर कहा, ‘मेधा मेहनती है। यही कारण है कि इसने पिछले साल टॉप किया था। लेकिन मेधा कामयाबी को बरकरार नहीं रख पाई। शायद मेधा को लगा कि अब उससे बेहतर कोई नहीं हो सकता। बच्चों, याद रखो। सफलता की सबसे ऊंची सीढ़ी पर तुम आसानी से पहुंच सकते हो। लेकिन उस सीढ़ी पर बने रहना और टिके रहना इतना आसान नहीं है। मेधा ने पिछले साल जमकर मेहनत की थी। लेकिन इस बार उसे और अधिक मेहनत करनी थी। सचिन तेंदुलकर विश्व के महानतम बल्लेबाजों में गिने जाते हैं। वे ऐसा एक शतक से नहीं कर सके। उन्हें हर बार एक और शतक लगाना पड़ा। हर बार एक-एक बॉल को ध्यान से खेलना पड़ा होगा। हर बार शतक बनाने के लिए मेहनत की होगी। तभी तो वे शतकों का शतक लगा सके।’ बच्चों ने फिर से तालियां बजार्इं।

राधिका और मेधा जैसे कई बच्चे थे, जो इस साल के लिए फिर से और अधिक मेहनत करने का संकल्प मन ही मन मे दोहरा रहे थे।