मानस मनोहर

बाजरे की खिचड़ी

बाजरा ऊर्जा बहुत अच्छा स्रोत है। यह कोलेस्ट्रॉल नियंत्रित करने में मदद करता है, जिससे दिल संबंधी बीमारियों के होने का खतरा कम हो जाता है। इसके अलावा यह मैग्नीशियम और पोटेशियम का भी अच्छा स्रोत है, जो रक्तचाप को नियंत्रित रखने में मददगार है। बाजरे में भरपूर मात्रा में रेशे यानी फाइबर होते हैं, जो पाचन क्रिया को दुरुस्त रखने में सहायक हैं। बाजरा खाने से कब्ज की समस्या नहीं होती। कई अध्ययनों में पाया गया है कि इसके नियमित सेवन से डायबिटीज का खतरा भी कम हो जाता है। बाजरे की रोटी खाने वालों को हड्डियों में कैल्शियम की कमी से पैदा होने वाले रोग आस्टियोपोरोसिस और खून की कमी यानी एनीमिया नहीं होता।  तो फिर क्यों न खाएं बाजरा! बाजरे की रोटी तो सर्दी के मौसम में बहुत सारे लोग खाते हैं, पर इसकी खिचड़ी या फिर भात कम लोग खाते और पसंद करते हैं। गांवों में गरीब परिवारों के लोग इस मौसम में प्राय: बाजरे का भात खाते हैं।  बाजरे का भात और खिचड़ी बनाने के लिए प्राथमिक तैयारी समान होती है, पर खिचड़ी बनाते समय इसमें थोड़ी अलग प्रक्रिया अपनानी पड़ती है।

बाजरे का भात या खिचड़ी बनाने के लिए पहले साबुत बाजरे को साफ करके उस पर हल्का पानी छिड़क कर थोड़ी देर के लिए रख दीजिए। फिर ओखली या इमामदस्ते में डाल कर हल्के हाथों से तब तक कूटिए जब तक कि उसका छिलका न उतर जाए। ध्यान रखें कि बाजरे का टुकड़ा नहीं बनाना है, बस उसका छिलका उतारना है। फिर उसके छिलके को फटक या धो कर साफ कर लीजिए। अगर इस बाजरे का भात बनाना है, तो उसे चावल के भात की तरह पका लीजिए। बाजरे का भात कढ़ी या फिर मूंग-बथुए की दाल के साथ खाएं, मजेदार स्वाद आएगा।  बाजरे की खिचड़ी बनाने के लिए कुछ और सामग्री की जरूरत पड़ती है। इसके लिए जितना बाजरा लिया है, उसकी चौथाई मात्रा में मूंग की धुली या छिलके वाली दाल लें और पकाने से एक घंटा पहले भिगो कर रख दें।
एक कुकर में दो-तीन चम्मच देसी घी गरम करें। उसमें जीरा, आधा बारीक कटे प्याज और लहसुन का तड़का लगाएं। तड़का तैयार हो जाए तो एक या दो हरी मिर्चों को बीच से फाड़ कर तड़का लें। फिर उसमें हींग, हल्दी और थोड़ा-सा सब्जी मसाला डालें। ऊपर से बाजरा और भिगोई हुई मूंग दाल डाल कर इन सबका चार गुना पानी डालें और जरूरत भर का नमक डाल कर ढक्कन बंद कर दें। धीमी आंच पक दो से तीन सीटी तक पकने दें।
खिचड़ी पक जाए तो ऊपर से बारीक कटा हरा धनिया पत्ता और अदरक डाल कर गरमागरम परोसें।

बथुआ-मूंग की दाल

बथुआ एक ऐसा साग है जो गुणों की खान है। इसकी पत्तियों में सुगंधित तेल, पोटाश और कई गुणकारी तत्त्व पाए जाते हैं। यह त्रिदोष (वात, पित्त, कफ) को शांत करने वाला है। आयुर्वेदाचार्यों ने बथुए को भूख बढ़ाने वाला पित्तशामक, मल-मूत्र को साफ और शुद्ध करने वाला माना है। यह आंखों के लिए उपयोगी और पेट के कीड़ों का नाश करने वाला है। यह पाचनशक्ति, भोजन में रुचि बढ़ाने और कब्ज मिटाने वाला है। गुणों में हरे से ज्यादा लाल बथुआ अधिक उपयोगी होता है। लाल बथुए के सेवन से बूंद-बूंद पेशाब आने की तकलीफ में लाभ होता है।

बथुए का पंराठा, रोटी, साग तो बनता ही है, कई प्रकार की दालों में मिला कर भी इसे पकाया जाता है। मगर धुली मूंग दाल के साथ इसका साग खाने में अलग ही आनंद देता है। मूंग दाल के साथ बथुआ बनाने के लिए सबसे पहले मूंग दाल को आधे से एक घंटे के लिए भिगो कर रख दें। फिर बथुए की पत्तियों को उसके डंठल से अलग कर लें। पत्तियों को दो-तीन बार पानी से धो लें। पत्तियों को साग की तरह काट लें। अब एक कड़ाही में दो बड़े चम्मच देसी घी गरम करें। उसमें जीरा और बारीक कटा प्याज और लहसुन का तड़का लगाएं। ध्यान रखें कि प्याज और लहसुन सिर्फ आधा पके, काला न पड़ने पाए। फिर उसमें हींग पाउडर डालें। अब बथुए को उसमें डाल कर चला लें और करीब पांच मिनट के लिए आंच धीमी करके कड़ाही को ढंक दें। बथुआ पानी छोड़ने लगे, तो उसमें भिगोई हुई मूंग की दाल डालें। ऊपर से हल्दी पाउडर और नमक मिलाएं। आधा छोटा चम्मच लाल मिर्च पाउडर और उतनी ही मात्रा में सब्जी मसाला डाल दें। आधा गिलास पानी डालें और कड़ाही पर ढक्कन लगा दें।  मूंग की दाल पक कर फट जाए जो आंच बंद कर दें और चम्मच से हिला कर दाल और बथुए को एकसार कर लें। ध्यान रहे कि मूंग की दाल पक कर सिर्फ फटे, गले नहीं। अब इसमें ऊपर से बारीक कटा अदरक और हरी मिर्च डालें और गरमागरम परोसें। इस दाल को ठंडा होने के बाद भी खाएं, तो स्वाद लाजवाब बना रहेगा।