द्विपक्षीय व्यापार वार्ता के बीच अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने नया पैंतरा अख्तियार किया है। भारत पर दबाव डालने के लिए पहले तो 25 फीसद व्यापार शुल्क लगाने की घोषणा की। फिर रूस से तेल खरीद बंद करने की शर्त रख दी। खरीद जारी रखने पर और 25 फीसद शुल्क लगा दिया। इस तरह भारत पर दो भागों में ट्रंप 50 फीसद शुल्क लगा चुके हैं। तेल के खेल में इस तरह भारत अब सर्वाधिक शुल्क भुगतने वाला देश हो गया है। हालांकि ट्रंप ने इस अतिरिक्त 25 फीसद शुल्क से बचने के लिए 21 दिन की मोहलत दी है। उन्होंने साफ किया है कि शुल्क का मसला निपटे बिना भारत से व्यापार वार्ता का कोई मतलब नहीं है। इससे पहले अमेरिका ने भारत के पड़ोसी देशों में चीन पर 30 फीसद और पाकिस्तान पर 19 फीसद शुल्क लगाया था।

दुनिया के दो सबसे बड़े तेल आयातक हैं भारत और चीन, जो वैश्विक कच्चे तेल की मांग पर गहरा असर रखते हैं। अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रंप ने चेतावनी दी है कि अगर मास्को जल्द यूक्रेन के साथ शांति समझौते पर सहमत नहीं होता है, तो वे उन देशों पर 100 फीसद तक शुल्क लगा देंगे, जो रूसी तेल खरीदना जारी रखेंगे। वैसे ट्रंप और रूसी राष्ट्रपति पुतिन के बीच 15 अगस्त को यूक्रेन पर बातचीत होने वाली है।

इस बीच,स्थिति को और जटिल बनाते हुए अमेरिकी सीनेट में लाया गया एक नया द्विदलीय विधेयक उन देशों के उत्पादों पर 500 फीसद शुल्क लगाने का आह्वान करता है जो यूक्रेन का समर्थन करने से इनकार करते हुए रूसी तेल और गैस खरीदना जारी रखते हैं। रूस से चीन का आयात इसी दृष्टिकोण को दर्शाता है। अकेले अप्रैल 2025 में, रूस से चीन को तेल की आपूर्ति 20% बढ़कर 13 लाख बैरल प्रतिदिन को पार कर गई। अमेरिकी ऊर्जा सूचना प्रशासन के आंकड़ों के अनुसार चीन ईरान का सबसे बड़ा तेल ग्राहक भी है, जो तेहरान के 90 फीसद तक निर्यात में भागीदार है।

भारत शीर्ष खरीदार

रूस के तेल का भारत का एक प्रमुख खरीदार है। भारत विश्व का तीसरा सबसे बड़ा तेल आयातक और उपभोक्ता देश है। दुनिया की सबसे बड़ी जनसंख्या वाला देश बनने जा रहे भारत की कुल आपूर्ति का लगभग 35% हिस्सा रूस से आता है। आंकड़ों के अनुसार, इस वर्ष जनवरी से जून तक भारत ने प्रतिदिन लगभग 1.75 मिलियन बैरल रूसी तेल का आयात किया, जो एक वर्ष पहले की तुलना में एक फीसद अधिक है। यूक्रेन में युद्ध शुरू होने के बाद से रूस भारत का प्रमुख तेल आपूर्तिकर्ता बन गया है। हमले से पहले यह मात्रा लगभग 1,00,000 बैरल प्रतिदिन थी, जो कुल आयात का 2.7 फीसद थी। यह 2023 में बढ़कर 18 लाख बैरल प्रतिदिन हो गई, जो कुल आयात का 39 फीसद थी। अंतरराष्ट्रीय ऊर्जा एजंसी के अनुसार, 2024 में रूस से 70 फीसद कच्चा तेल भारत को निर्यात किया गया।

वैसे कुछ देशों से अमेरिका ने द्विपक्षीय व्यापार शुल्क करार कर लिया है। लेकिन भारत से पेच फंसा हुआ है। अमेरिका ने बातचीत जारी रहने के बीच भारत पर कुल मिलाकर 50 फीसद व्यापार शुल्क ठोक दिया है जो काफी ज्यादा है। ट्रंप ने रूस से भारत के तेल खरीदने को अब एक बड़ा मुद्दा बना लिया है। उन्होंने धमकी दी है कि अगर भारत ने इसका जवाब देने की कोशिश की तो और शुल्क लगा दिया जाएगा। ट्रंप की दलील है कि भारत की खरीदारी से रूस-यूक्रेन युद्ध रुक नहीं रहा है। हालांकि 25 फीसद और शुल्क लगाए जाने से पहले भारत ने ट्रंप की धमकी का कड़े शब्दों में प्रतिकार किया था। तब भारत ने कहा था कि उसने अमेरिका के कहने पर ही रूस से तेल खरीदना शुरू किया था। अमेरिका पर दोहरे मापदंड अपनाने का आरोप लगाते हुए भारत ने कहा था कि वह खुद (अमेरिका) रूस से यूरेनियम और दूसरी चीजों का आयात करता है। ट्रंप के 25 फीसद और शुल्क लगाने पर भारत के विदेश मंत्रालय ने कहा कि अमेरिका का यह कदम अनुचित, अविवेकपूर्ण और दुर्भाग्यपूर्ण है। भारत अपने राष्ट्रीय हितों की खातिर सभी उचित कदम उठाएगा।

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जानकारों का कहना है कि हालांकि इस द्विपक्षीय व्यापार को लेकर भारत से बातचीत हो रही है, लेकिन कोई समाधान नहीं निकल रहा है। अमेरिका का एक प्रतिनिधिमंडल 25 अगस्त को भारत आने वाला है। इस बीच, ट्रंप ने साफ किया है कि शुल्क का मुद्दा निपटे बिना व्यापार वार्ता करने का कोई मतलब नहीं है।

विशेषज्ञों के मुताबिक अमेरिका कृषि और डेयरी क्षेत्र में भारत से बड़ी राहत चाहता है। पेच इसी पर फंसा हुआ है। भारत अपने किसानों और दूध उत्पादकों के लिए अमेरिका की शर्तें मानने को राजी नहीं है। लिहाजा अमेरिका ने पहले दबाव बनाने के लिए 25 फीसद शुल्क लगाया और अब वह रूस के तेल के बहाने और 25 फीसद शुल्क लगाकर भारत को दबाव में लाना चाहता है। इस कदम के खिलाफ रूस, चीन और ब्राजील ने मोर्चा खोल दिया है। चीन का कहना कि कोई भी देश अमेरिका का उपनिवेश नहीं है। वहीं प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अमेरिका का नाम लिए बिना कहा कि भारत किसानों और पशुपालकों का अहित नहीं कर सकता। इसके लिए वे व्यक्तिगत कीमत चुकाने को तैयार हैं।

ट्रंप की धमकी के बाद जिस तरह से विदेश मंत्रालय ने विज्ञप्ति जारी कर अमेरिका पर पलटवार किया था, उससे जानकारों को लगता है कि रूसी तेल पर अमेरिकी शुल्क और यूरोपीय संघ के प्रतिबंधों का सामना करने के लिए भारत अपना रुख बदल सकता है। जिन उपायों पर दिल्ली विचार कर सकता है, उनमें आसियान और अन्य देशों के साथ एफटीए समझौते, ईरान और वेनेजुएला से तेल आयात पुन: शुरू करना शामिल हैं। समझा जाता है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का अगस्त के आखिर में चीन का होने वाला दौरा भारत के लिए नई रणनीति का हिस्सा हो सकता है।

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चार अगस्त और छह अगस्त को जारी विदेश मंत्रालय का बयान, जिसमें भारत द्वारा रूसी तेल की खरीद का बचाव किया गया है, 2022 में यूक्रेन पर रूस के आक्रमण और उसके बाद पश्चिमी देशों द्वारा लगाए गए जवाबी प्रतिबंधों के बाद से उसका सबसे स्पष्ट बयान है। इससे साफ होता है कि विदेश मंत्रालय अपने हितों की रक्षा के लिए सभी आवश्यक उपाय करेगा। विदेश मंत्रालय का यह गुस्सा डोनाल्ड ट्रंप की नई धमकियों के बाद आया है, जिसमें उन्होंने सात अगस्त से दुनिया भर में लागू हो गए शुल्क के रूप में भारतीय वस्तुओं पर अमेरिका द्वारा लगाए जाने वाले 25 फीसद के भारी-भरकम पारस्परिक शुल्क के अलावा दंडात्मक शुल्क लगाने की बात कही थी। इसके साथ ही जुलाई में यूरोपीय संघ द्वारा रोसनेफ्ट की आंशिक स्वामित्व वाली वाडिनार रिफाइनरी और रूसी तेल के पुनर्प्रसंस्करण में लगी अन्य भारतीय कंपनियों पर प्रतिबंध लगाए जाने के बाद यह बयान जारी किया गया है।

चार अगस्त को ट्रंप ने अपने सोशल मीडिया पोस्ट में कहा था कि भारत खुले बाजार में बड़े मुनाफे के लिए भारी मात्रा में रूसी तेल बेच रहा है, बिना इस बात की परवाह किए कि रूसी युद्धक मशीनों द्वारा यूक्रेन में कितने लोग मारे जा रहे हैं। यही कारण है कि वे शुल्क काफी हद तक बढ़ाएंगे।
विदेश मंत्रालय के बयान में अमेरिका और यूरोपीय संघ, दोनों को उनके दोहरे मानदंडों के लिए आड़े हाथों लिया गया है। बयान में कहा गया है कि ये दोनों स्वयं रूसी ऊर्जा, महत्त्वपूर्ण खनिज, उर्वरक, लोहा और इस्पात आदि खरीदते रहे हैं। हालांकि जब यह सवाल अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रंप से पूछा गया तो उन्होंने कहा कि उन्हें इसकी जानकारी नहीं है। वे पता करेंगे।

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उल्लेखनीय है कि भारत ने 2022 के बाद रूस से तेल खरीदना शुरू किया था, जब वहां के यूराल से उसके तेल आयात का एक फीसद से भी कम था। यह 2023 तक बढ़कर 40 फीसद हो गया। हालांकि, विदेश मंत्रालय के बयान के मुताबिक भारत की खरीदारी वैश्विक बाजार और सस्ती ऊर्जा लागत की आवश्यकता के कारण हो रही है। इसमें कहा गया है कि इसकी तुलना में अमेरिका और यूरोपीय संघ का रूस से आयात महत्त्वपूर्ण राष्ट्रीय बाध्यता भी नहीं है और भारत को निशाना बनाना अनुचित है।

विदेश मंत्रालय के बयान में अमेरिका व यूरोप द्वारा अपनाए जा गए अन्य दोहरे मानदंडों का जिक्र नहीं किया गया है। इनमें अमेरिका और यूरोप द्वारा गाजा में इजराइल के युद्ध को लगातार वित्तपोषित और हथियार प्रदान करना शामिल है। इसके परिणामस्वरूप कम से कम 60,000 फिलिस्तीनी मारे गए। इनमें 18,000 बच्चे भी शामिल हैं। इस बीच, कुछ महीने पहले ट्रंप स्वयं रूसी युद्ध की बहुत कम आलोचना कर रहे थे और उन्होंने तो यूक्रेन के राष्ट्रपति व्लोदोमीर जेलेंस्की को रूस के साथ बातचीत न करने के लिए सीधे तौर पर धमकी भी दी थी।

विदेश मंत्रालय ने जारी एक बयान में कहा, किसी भी बड़ी अर्थव्यवस्था की तरह, भारत अपने राष्ट्रीय हितों और आर्थिक सुरक्षा की रक्षा के लिए सभी आवश्यक कदम उठाएगा। यह बयान पिछले कुछ वर्षों की तुलना में एक स्पष्ट बदलाव दर्शाता है, जब रूसी लेनदेन के लिए भारतीय कंपनियों पर अमेरिका और यूरोपीय संघ द्वारा लगाए गए कई कम प्रभाव वाले प्रतिबंधों के प्रति नई दिल्ली की प्रतिक्रियाएं विनम्र रही थीं। साल 2017 में, राजग सरकार ने पिछले ट्रंप प्रशासन की धमकियों के बाद, ईरान और वेनेजुएला से अपने सभी तेल आयात को शून्य करने पर भी सहमति व्यक्त की थी, भले ही वे सस्ते और उच्च गुणवत्ता वाले थे। साल 2022 में, भारत ने बाइडेन प्रशासन की धमकियों के आगे झुकने से इनकार कर दिया था। इसके पीछे शायद यह विश्वास था कि बाइडेन प्रशासन उन धमकियों पर अमल नहीं करेगा, जैसा कि ट्रंप स्पष्ट रूप से करने में सक्षम हैं और उन्होंने 50 फीसद शुल्क लगाकर किया भी है।

परिणामस्वरूप, विदेश मंत्रालय का नवीनतम बयान इस बात का संकेत देता हुआ दिख रहा है कि वह तीसरे रास्ते पर जाने के लिए तैयार है। ट्रंप द्वारा लगाए गए किसी भी अतिरिक्त शुल्क के विरुद्ध उपायों पर विचार करना शामिल है। हालांकि भारतीय तेल कंपनियों ने जोखिम के मद्देनजर रूस से तेल लेना कम कर दिया है। ट्रंप अपने रवैये पर अड़े हुए हैं और वे कह रहे हैं कि भारत पर अभी और अतिरिक्त प्रतिबंध लग सकते हैं।

रूस के साथ भारत के संबंध

भारत और रूस का एक-दूसरे का समर्थन करने का दशकों पुराना इतिहास रहा है। पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति रिचर्ड निक्सन ने 1971 के भारत-पाकिस्तान युद्ध के दौरान भारत को धमकाने के लिए एक युद्धपोत भेजा था, तब रूस (सोवियत संघ) ने अपनी नौसेना हिंद महासागर में भेज दी थी। दिसंबर 2021 में, मोदी और पुतिन ने कई व्यापार और हथियार समझौतों पर हस्ताक्षर किए, जबकि रूसी तेल उत्पादक कंपनी रोसनेफ्ट भारत में अपने निवेश का विस्तार कर रही है। भारत ने यूक्रेन पर रूस के आक्रमण की निंदा करने वाले संयुक्त राष्ट्र के प्रस्तावों पर मतदान से भी बार-बार परहेज किया है ।
जानकारों का कहना है कि रूसी तेल खरीदने के मामले में भारत मूलत: चीन के बराबर है। यह एक आश्चर्यजनक तथ्य है।

न्यूयार्क टाइम्स के अनुसार, भारत रूस से प्रतिदिन लगभग दो मिलियन बैरल कच्चा तेल आयात करता है, जिससे यह चीन के बाद रूसी तेल का दूसरा सबसे बड़ा खरीदार बन गया है। भारतीय तेल आयात में रूस की हिस्सेदारी युद्ध से पहले के एक फीसद से बढ़कर एक तिहाई से भी अधिक हो गई है।
रूस वर्षों से भारत का सबसे बड़ा हथियार आपूर्तिकर्ता भी रहा है। हालांकि यूक्रेन युद्ध ने रूस के हथियारों के निर्यात को कम कर दिया, जिसका एक कारण उसकी अपनी युद्धभूमि में हथियारों की जरूरत थी, फिर भी भारत 2020 और 2024 के बीच रूस का सबसे बड़ा हथियार खरीदार बना रहा।

स्टाकहोम इंटरनेशनल पीस रिसर्च इंस्टीट्यूट की 2024 की एक रपट के अनुसार उसने रूसी हथियारों के निर्यात का 38 फीसद हिस्सा खरीदा।
दुनिया की शीर्ष अर्थव्यवस्थाओं का प्रतिनिधित्व करने वाले सात देशों के समूह द्वारा दिसंबर 2022 में रूसी तेल निर्यात को 60 डालर प्रति बैरल तक सीमित कर दिया गया था, जबकि यूरोपीय संघ ने जुलाई में मूल्य सीमा को घटाकर 47 डालर प्रति बैरल से थोड़ा अधिक कर दिया था।
एक जानकार का कहना है कि भारत को कठिन विकल्प का सामना करना पड़ेगा। ट्रंप गंभीर हैं। वे पुतिन से निराश हैं… हालांकि दोनों बातचीत के लिए राजी हो गए हैं।भारत के सामने एक कठिन विकल्प होगा, लेकिन अगर ट्रंप इस मुद्दे पर पूरे रिश्ते को दांव पर लगाने का फैसला करते हैं, तो भारत को डेढ़ लाख बैरल रूसी कच्चे तेल का आयात जारी रखना मुश्किल हो सकता है।

क्या हैं भारत के लिए विकल्प

पहला विकल्प यह होगा कि रूस से प्रतिस्पर्धी कीमतों पर ऊर्जा खरीदना जारी रखा जाए और यहां तक कि उसे दोगुना भी किया जाए। साथ ही, अमेरिका और यूरोपीय संघ द्वारा लगाए गए प्रतिबंधों का सामना किया जाए और दोनों के साथ मुक्त व्यापार समझौते जारी रखे जाएं। इस उम्मीद में कि इससे ऐसे दंड कम होंगे। सरकार ने अब तक यही रणनीति अपनाई थी।

दूसरे विकल्प के तौर परअमेरिकी-यूरोपीय यूनियन प्रतिबंधों को दरकिनार करने के लिए व्यापार के वैकल्पिक विकल्पों की खोज करना, जीसीसी, ईएईयू, आस्ट्रेलिया, न्यूजीलैंड आदि के साथ चल रही अन्य एफटीए वार्ताओं को जल्द समाप्त करने के लिए आगे बढ़ना शामिल हो सकता है। यह आसियान-भारत वस्तु व्यापार समझौते (एआइटीआइजीए) को संशोधित करने पर बातचीत को भी समाप्त कर सकता है या यहां तक कि 15 राष्ट्रों के आसियान के नेतृत्व वाले क्षेत्रीय व्यापक आर्थिक भागीदारी (आरसीईपी) में शामिल होने पर फिर से विचार कर सकता है। इससे भारत 2019 में मुख्य रूप से चीन के बारे में चिंताओं के कारण बाहर आ गया था। हालांकि यह कुछ हफ्ते पहले तक भी संभव नहीं था, जब वाणिज्य और उद्योग मंत्री पीयूष गोयल ने आसियान को चीन की ‘बी-टीम’ और एआइटीआइजीए को ‘गलती’ के रूप में संदर्भित किया था। लेकिन लगता है कि ट्रंप के अथक तीखे हमलों को देखते हुए सरकार का दृष्टिकोण बदल सकता है।

तीसरा विकल्प हो सकता है जवाबी उपायों का। बीटीआइए पर यूरोपीय संघ के साथ बातचीत को निलंबित करना और व्यापार, परमाणु ऊर्जा, रक्षा खरीद और अन्य पर अमेरिका के साथ बातचीत को निलंबित करना शामिल हो सकता है, जब तक कि वे इस मुद्दे पर अधिक उचित साबित न हों। ईरान और वेनेजुएला से भारत तेल की आपूर्ति को फिर से शुरू करने पर भी विचार कर सकता है। ऐसा कदम किफायती साबित हो सकता है, लेकिन इस कारण अमेरिका और यूरोपीय यूनियन नए सिरे से भारत पर प्रतिबंध लगा सकते हैं।
विशेषज्ञ यह भी बताते हैं कि रूसी दंड वाशिंगटन की कार्रवाइयों की बौछार में से एक है, जो नई दिल्ली को अन्य क्षेत्रों में भी अमेरिका के साथ अपने संबंधों पर पुनर्विचार करने के लिए प्रेरित कर सकता है। व्यापार और निवेश पर मतभेद उभरने, प्रौद्योगिकी हस्तांतरण पर नतीजे, आतंकवाद-रोधी रणनीति (ट्रंप के पाकिस्तान के साथ कदमों और आपरेशन सिंदूर पर जवाबी बयान को देखते हुए) पर अमेरिकी रवैया भारत को रास्ता बदलने पर मजबूर कर सकता है।


अब सभी की निगाहें इस बात पर टिकी हैं कि क्या यह उथल-पुथल पिछले दशक में भारत-अमेरिका संबंधों के सबसे मजबूत स्तंभ-उनकी साझा हिंद-प्रशांत रणनीति और क्वाड शिखर सम्मेलन, जिसकी मेजबानी भारत इस वर्ष करने वाला है, पर कितना असर डालेगी।