मानस मनोहर
बथुआ मूंग दाल
थुआ सहज उग आने वाला अत्यंत गुणकारी साग है। यह इस मौसम में खेतों में अपने आप उग आता है। किसान के लिए इसकी कोई उपयोगिता नहीं होती, इसलिए इसे उखाड़ दिया जाता है। इस तरह गांवों में यह मुफ्त का साग है। जो चाहे, जिसके खेत से चाहे उखाड़ कर खा सकता है। मगर शहरों तक पहुंचाने में इस पर ढुलाई वगैरह का खर्च लगता है, इसलिए महंगा बिकता है। पर शहरों में भी हर कहीं आसानी से मिल जाता है। सारी पत्तेदार सब्जियों में बथुआ सबसे गुणकारी साग है। यह रक्ताल्पता को दूर करता, खून साफ करता, शरीर में लौह तत्व को बढ़ाता और पाचन को दुरुस्त करता है। इसे कई तरह से बनाया और खाया जा सकता है। इसे चाहें तो उबाल कर जीरा और लहसुन का हल्का तड़का देकर दही के साथ फेंट कर रायता बना सकते हैं। परांठा बना सकते हैं। आलू के साथ मिला कर सब्जी बना सकते हैं। यों ही साग की तरह खा सकते हैं। किसी भी दाल में मिला कर खा सकते हैं। मगर मूंग दाल के साथ इसका मजा ही अलग होता है।
मूंग दाल के साथ बथुए का मेल जबर्दस्त होता है। इसका स्वाद निराला होता है। इसे बनाना बहुत आसान है। देसी व्यंजन बनाना यों भी बाजार के किसी व्यंजन की अपेक्षा काफी आसान होता है। मूंग दाल बथुआ बनाने के लिए पहले छिलके वाली मूंगदाल को अच्छी तरह धोकर कम से कम एक घंटे के लिए भिगो कर रखें। बथुए के कड़े डंठल को अलग कर दें। अगर लाल पत्ते वाला बथुआ मिले, तो वही लेना चाहिए। हरे बथुए का डंठल थोड़ा कड़ा होता है, उसे सावधानी से अलग कर दें। अगर हो सके, तो सिर्फ पत्ते लें। बथुए को तीन-चार बार धोकर अच्छी तरह साफ कर लें। फिर छोटा-छोटा काट लें।
अब एक कड़ाही में दो खाने के चम्मच बराबर घी डालें। उसमें जीरा, अजवाइन, हींग, बारीक कटी हरी मिर्च और लहसुन का तड़का दें। बथुए के साथ लहसुन का तड़का बहुत अच्छा लगता है। अगर आप लहसुन से परहेज करते हैं, तो इसे छोड़ भी सकते हैं। फिर उसमें कटा हुआ बथुआ डालें और ढक्कन लगा कर पांच मिनट के लिए पकने दें। फिर ढक्कन खोल कर उसमें जरूरत भर का नमक, हल्दी पाउडर, आधा चम्मच धनिया पाउडर, आधा चम्मच गरम मसाला डालें और अच्छी तरह मिला लें।
अब भिगोई हुई मूंग दाल डालें और आधा गिलास पानी डाल कर अच्छी तरह मिला लें। कड़ाही पर ढक्कन लगा दें और आंच मध्यम कर दें। करीब बीस मिनट तक पकने दें। फिर ढक्कन खोल कर देखें। दाल फट कर मुलायम हो गई है, तो आंच बंद कर दें। ध्यान रखें कि दाल सिर्फ फट जानी चाहिए, गलनी नहीं चाहिए। अब दाल को चम्मच से अच्छी तरह घोंट लें। इस पर अदरक का लच्छा और कटा हरा धनिया डाल कर परोसें। इसे दाल और सब्जी दोनों रूपों में रोटी, परांठा, चावल किसी के भी साथ खा सकते हैं।
मूली की भाजी
ली खरीदने के बाद प्राय: लोग उसके पत्ते तोड़ कर फेंक देते हैं। मगर मूली के पत्तों में बड़े गुणकारी तत्त्व होते हैं। यह तो सभी जानते हैं कि अगर किसी को पीलिया यानी जोंडिश हो जाए, तो उसे मूली खाने को कहा जाता है, क्योंकि मूली का रस लिवर को बहुत जल्दी स्वस्थ कर देता है। फिर स्वाभाविक रूप से मूली के पत्तों में भी वह तत्त्व होता ही है। इसके अलावा इसके पत्तों में विटामिन सी और लौह तत्त्व होता है। अगर किसी को पथरी की समस्या है, तो वह रोज खाली पेट मूली के पत्तों का रस पीए, तो वह गल कर जल्दी निकल जाती है। मूली के पत्ते पेट को साफ रखने, लीवर को ताकत देने में काफी मददगार होते हैं। इसलिए जब भी मूली खरीदें, उसके पत्ते कभी न फेंकें, उसकी भाजी बना लें। मूली के पत्तों की भाजी बहुत स्वादिष्ट होती है।
मूली के पत्तों की भाजी बनाने के कई तरीके हैं। कुछ लोग इसमें प्याज भी डालते हैं, पर उसकी जरूरत नहीं होती। यों भी पत्तेदार सब्जियों के साथ प्याज का मेल नहीं बैठता। लहसुन अवश्य डालें, उससे उसका गुण बढ़ जाता है। मूली की भाजी बनाने के लिए मूली के मुलायम पत्तों को तीन-चार बार धोकर अच्छी तरह साफ कर लें। उसके डंठल के कड़े हिस्से को अलग कर दें। फिर बारीक-बारीक काट लें। इसमें चाहें तो एक मूली भी छील कर बारीक-बारीक टुकड़ों में काट कर डाल सकते हैं। अब एक कड़ाही में दो चम्मच तेल गरम करें। उसमें पहले एक से दो चम्मच धुली मूंग की दाल या उड़द की दाल डाल कर हल्का सुनहरा होने तक तलें। फिर जीरा, सौंफ, अजवाइन, हींग और बारीक कटे लहसुन और हरी मिर्च का तड़का लगाएं।
अब कटे मूली के पत्तों को छौंक दें। आंच मध्यम कर दें।
कड़ाही पर ढक्कन लगा दें और करीब पंद्रह मिनट तक पकने दें। इसमें पानी डालने की जरूरत नहीं होती। मूली के पत्ते पानी छोड़ते हैं और वे उसी से पक जाते हैं। अब कड़ाही का ढक्कन खोलें। उसमें जरूरत भर का नमक, हल्दी पाउडर डालें और अच्छी तरह मिला लें। देखें कि पानी अच्छी तरह सूख गया है या नहीं। अगर पानी अभी बचा है, तो थोड़ी देर ढक्कन खुला रख कर पकाएं। पानी पूरी तरह सूख जाए तो ऊपर से आधा चम्मच धनिया पाउडर और आधा चम्मच गरम मसाला डाल कर अच्छी तरह मिलाएं। मूली की भाजी तैयार है। इसे चावल-दाल या रोटी किसी के भी साथ खा सकते हैं। हफ्ते में कम से कम एक बार मूली के पत्तों की भाजी अवश्य खाएं, सेहत के लिए बहुत लाभदायक होती है।