पवन खेड़ा कांग्रेस के मीडिया और प्रचार विभाग के अध्यक्ष और पार्टी प्रवक्ता हैं। ये शीला दीक्षित के सशक्त समय से पार्टी का चेहरा रहे हैं। आज जब मीडिया मंचों पर तीखी बहस राजनीति का प्रमुख अंग बन गई है तो पार्टी प्रवक्ताओं की भूमिका अहम हो गई है। प्रवक्ताओं के शब्द माहौल बनाते और बिगाड़ते हैं। खेड़ा खुद कुछ शब्दों के इस्तेमाल को लेकर विवाद में फंस चुके हैं। 2014 से लेकर 2024 के दस साल के समय में जिस तरह पार्टी प्रवक्ताओं की अहम भूमिका बनती गई, उसका असर यह भी हुआ कि सत्ता का समीकरण बदलते ही प्रवक्ता भी इधर-उधर होते हैं। पिछले पांच साल के राजनीतिक माहौल का नतीजा निकल चुका है। अगले दो वर्षों में अहम विधानसभा चुनाव होने हैं। इन सभी मसलों पर बात करने के लिए खेड़ा से बेहतर और कौन होता? कांग्रेस प्रवक्ता पवन खेड़ा का कहना है कि 2024 के लोकसभा चुनाव में जनता ने भाजपा को संदेश दिया है कि ‘हुजूर इस कदर भी न इतरा के चलिए’। उन्होंने कहा कि जब खुद को भगवान कहने वाले व्यक्ति को थोड़ी भी चोट लगती है तो वह बड़ी जीत दिखती है। राहुल गांधी की छवि खराब करने में सत्ता पक्ष ने जो अरबों रुपए खर्च किए वे बर्बाद हो गए। राजनीतिक परिवर्तन धीरे-धीरे होता है और जनता कांग्रेस पर भरोसा कर रही है। उन्होंने दावा किया कि उत्तर प्रदेश में वह होगा जिसे अभी असंभव कहा जा रहा है। ‘इंडिया’ गठबंधन के बीच विरोधाभासों को उन्होंने सह-अस्तित्व कहते हुए इसे देश की ताकत बताया। दिल्ली में पवन खेड़ा के साथ कार्यकारी संपादक मुकेश भारद्वाज की विस्तृत बातचीत के चुनिंदा अंश।
’2024 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस ने उम्दा प्रदर्शन किया, यह पार्टी के साथ और लोग भी मान रहे हैं। इस सकारात्मक मोड़ पर क्या आपको लगता है कि सब कुछ बदल गया?
पवन खेड़ा: मैं नहीं मानता कि सब कुछ बदल गया। लेकिन, यह नतीजा ऐसा था कि वो जीत कर भी हार गए और हम हार कर भी जीत गए। ये नतीजे की सबसे बड़ी खूबसूरती थी। विस्तार में कहूं तो वे खुद को भगवान या भगवान से भी ऊपर मानने लग गए थे। जब ऐसे व्यक्ति को थोड़ी भी चोट लगती है तो वह बहुत बड़ी दिखती है। इसलिए वो जीत कर भी हार गए। हमें तो खारिज किया जा रहा था कि अरे 40 या 50 भी आ जाए तो बड़ी बात है। ये सब सुनते हुए राहुल गांधी, खरगे साहब और अन्य नेतृत्व के साथ पूरी कांग्रेस पार्टी लगी रही। लोगों के और कैडर के भरोसे के साथ कांग्रेस पार्टी पुनर्स्थापित हुई। यही नतीजे की खूबी है।
’इस सवाल का मकसद यह है कि भाजपा की तरफ देखने से लग रहा कि कुछ नहीं बदला है। भाजपा अपने दम पर बहुमत नहीं ला पाई, लेकिन सत्ता का चेहरा नहीं बदला। अमित शाह गृह मंत्री, राजनाथ सिंह रक्षा मंत्री, निर्मला सीतारमण वित्त मंत्री बनाए गए। अश्विनी वैष्णव तो ज्यादा ताकतवर हुए। नतीजों के बाद भी सत्ता की निरंतरता बरकरार है, जैसे कुछ नहीं हुआ हो।
पवन खेड़ा: यह निरंतरता उन्हें ज्यादा नुकसान पहुंचाएगी। कांग्रेस को बदलाव अनिवार्य लगा। हम बदलते नहीं तो और पीछे जाते। लोकसभा चुनाव में जनता का संदेश स्पष्ट है, ‘हुजूर इस कदर भी न इतरा के चलिए’। आपकी बात सही दिख रही है कि उन्होंने इस संदेश को ग्रहण नहीं किया। अगला चुनाव कब हो जाए यह कोई नहीं बता सकता। चुनाव कभी भी हो सकते हैं। चुनाव आने तक इन्होंने अपना रवैया नहीं बदला तो आगे का हाल होगा, ‘रहते थे कभी जिनके दिल में हम जान से भी प्यारों की तरह/बैठे हैं उन्हीं के कूचे में हम आज गुनहगारों की तरह’।
‘भाजपा के सहयोगी संगठन चाहे तेदेपा हो या जद (एकी) उनकी तरफ से भी ऐसा नहीं लग रहा कि कुछ बदला। सत्ता के सभी प्रमुख चेहरों के दोहराव से उन्हें कोई दिक्कत नहीं है, किसी खास तरह की वैचारिक मांग नहीं है। लोकसभा अध्यक्ष -उपाध्यक्ष के पद को लेकर भी चुप्पी रही। हालांकि विपक्ष अभी तक इन पर भरोसा कर रहा है कि वे बदल जाएंगे और उसके बाद बड़ा बदलाव होगा? आपको यह संभव लगता है?
पवन खेड़ा: ऐसा नहीं कि है कि विपक्ष सिर्फ इन दोनों की बाट जोह रहा है। हम अपना काम बदस्तूर कर रहे हैं। लेकिन, राजनीति एकरैखिक नहीं होती है। नायडू साहब बहुत समझदार नेता हैं। राजनीति में समय सबसे अहम होता है। नीतीश जी के लिए मैं ज्यादा नहीं बोलूंगा। वे बुजुर्ग हैं। लेकिन, समय के हिसाब से नायडू जी जो भी निर्णय लेंगे वह इतिहास में दर्ज होगा। अभी इससे ज्यादा कुछ भी बोलना उचित नहीं।
’देश में दो प्रमुख राष्ट्रीय दल हैं-भाजपा और कांग्रेस। भाजपा की सांगठनिक छवि में एक अनुशासन दिखता है। इसकी तुलना में कांग्रेस की उठा-पटक अक्सर सामने आती है। क्या आपको लगता है कि ताजा दौर में सांगठनिक अनुशासन में भाजपा बाजी मार लेती है?
पवन खेड़ा: कांग्रेस पार्टी हमारे समाज का आईना है। यहां बड़े-बड़े आक्रांता आए और मिट गए। हमारी पार्टी इसी समाज से उपजी है। कृत्रिम अनुशासन हमारे यहां नहीं चलता। जो आपके मन में है, बोलिए। लोगों के मन की बात सुनना हमारी सभ्यता है। जो लोकतंत्र देश की जड़ में है, वही हमारी पार्टी की बुनियाद में है। जिस दिन हमारे यहां खुलकर बोलने की आजादी खत्म हो जाएगी तो पार्टी खत्म हो जाएगी। हमारी पार्टी ने इतना लंबा सफर इसी तरह तय किया है कि हम एक-दूसरे की सुनते हैं, एक-दूसरे को बोलने देते हैं। भाजपा में ऐसा नहीं होता। जनसंघ खत्म हुआ, भारतीय जनता पार्टी आई, भारतीय जनता पार्टी खत्म होगी, फिर किसी और अवतार में आएंगे। लेकिन, ये लोग चल नहीं सकते। एक दौर था जब उमा भारती जी क्या बोलीं, किसके खिलाफ बोलीं खुल कर सबके सामने आता था। टीवी पर अटल जी और आडवाणी जी के बीच खटास की चर्चा होती थी। आज की भाजपा और कल की भाजपा में बहुत फर्क है। कृत्रिम तरीके से असहमति को दबाने पर विस्फोट होता है। किस दिन, कहां से विस्फोट हो जाए, नागपुर से हो, लखनऊ से हो नहीं मालूम। लेकिन कई जगह विस्फोट की तैयारी हो रही है। कम दबाव क्षेत्र के चक्रवात जैसा है। अब किस क्षमता का चक्रवाती तूफान आएगा हमें नहीं पता, लेकिन आएगा जरूर।
’पार्टी के अंदरूनी लोकतंत्र का दावा राहुल गांधी ने भी लोकसभा में जी-23 के नेताओं के जरिए किया। एक पहलू यह भी है कि कांग्रेस में नेताओं की कमी तो नहीं? इसलिए आपको आनंद शर्मा से लेकर मनीष तिवारी पर निर्भर रहना पड़ता है?
पवन खेड़ा: यह बात नहीं है। जिनके आपने नाम लिए मनीष तिवारी, आनंद शर्मा ये बहुत योग्य नेता हैं। सिर्फ इसलिए कि इन्होंने कोई पत्र लिखा, अपनी बात रखी, इन्हें सजा नहीं दी जाएगी। ऐसा कांग्रेस पार्टी में नहीं होता। लक्ष्मण रेखा तो हर पार्टी में होती है। अपनी बात कहने का अधिकार छीन लें तो हममें और आरएसएस में फर्क क्या रहेगा?
’आपका अगला अहम शक्ति-परीक्षण हरियाणा में है। किरण चौधरी के कांग्रेस छोड़ने के बाद रणदीप सुरजेवाला जैसे नाम भी उछाले जा रहे हैं, जिनकी पार्टी से नाराजगी है। आपने लोकसभा चुनाव में भाजपा को आधी सीटों पर ला दिया। लोकसभा में इतने अच्छे प्रदर्शन के बाद क्या यह आंतरिक कलह हरियाणा विधानसभा चुनाव की अहम लड़ाई में नुकसान नहीं पहुंचाएगी?
पवन खेड़ा: हरियाणा में आंतरिक कलह बिल्कुल नहीं है। यह एक स्तर तक की आजादी है जो एक संगठन में, एक परिवार में होनी चाहिए। मैं अपनी बात कह सकूं यह आजादी होनी चाहिए। आलाकमान सबसे बातचीत कर ही सामूहिकता से कोई फैसला करता है। वो निर्णय सबको स्वीकार होता है। जिसको नहीं होता फिर वो लक्ष्मण रेखा पार करे और चला जाए तो फिर उसे कैसे रोका जा सकता है?
’आपको लगता है कि हरियाणा में पार्टी सिर्फ अपनी योग्यता और मेहनत से जीती है? इसमें व्यवस्था विरोधी माहौल का कोई योगदान नहीं कि लोग भाजपा को हराना चाहते थे?
पवन खेड़ा: मैं पलट कर आपसे एक बात पूछना चाहता हूं कि 2014 में कांग्रेस हारी है या भाजपा जीती? इसका उत्तर कभी नहीं मिल सकता। एक पार्टी हारती है, दूसरी जीतती है। अब लोगों ने किसी को हराने के लिए किसी को जिताया या किसी को जिताया इसलिए दूसरा हारा? इसका उत्तर तो मैं नहीं दे पाऊंगा। हम अपनी पार्टी की बात जरूर कर सकते हैं कि हम अपनी पूरी तैयारी कर रहे हैं। हरियाणा में भी और महाराष्टÑ में भी। दूसरे खेमे में क्या हो रहा है, वो कमजोर है या मजबूत है, यह सोच कर न हम घर बैठ जाएंगे, न ज्यादा प्रफुल्लित होंगे। अपनी कोशिश कम कर देंगे, यह नहीं होगा।
’बीते चुनावों को लेकर आपने अपनी तयशुदा भूमिका में बेहतर प्रदर्शन किया। एक बात की सबसे ज्यादा चर्चा है कि राहुल गांधी ने अपनी छवि का कायापलट कर लिया। इसके पहले तक राहुल गांधी को कांग्रेस की कमजोरी बताया जा रहा था। इस कायांतरण पर आपका क्या कहना है?
पवन खेड़ा: मैं इस कायापलट शब्द से साफ इनकार करूंगा। राहुल गांधी में उतना ही परिवर्तन आया है, जितना समय के साथ सब में आता है। बुनियादी तौर पर राहुल गांधी वही हैं जो आज से दस या बीस साल पहले होते थे। राहुल गांधी का कांग्रेस की जिस कमजोर कड़ी के रूप में दुष्प्रचार किया गया अब वह ध्वस्त हो चुका है। राहुल गांधी के लिए दुष्प्रचार करने में जो अरबों रुपए खर्च किए गए वे बर्बाद हो गए। असली राहुल गांधी वैसे ही हैं जैसे भारत जोड़ो यात्रा में दिखे, लोगों के आंसू पोछते, उनका दर्द बांटते। लोगों ने असली राहुल गांधी को अब देखना शुरू किया है। जब लोगों की आंखों से पर्दा हटा तो पता चला कि कितना महंगा पर्दा था।
’नि:संदेह राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा देश की राजनीति में अहम मोड़ रही। लेकिन, इतनी कोशिशों के बाद भी कांग्रेस भाजपा को सत्ता में लौट आने से रोकने में नाकामयाब क्यों रही?
पवन खेड़ा: मुझे यह बताइए कि जब 1984 में भाजपा की दो सीटें आई थीं तो क्या उसके बाद 1989 में 200 सीटें आ गईं, या सौ सीटें आ गईं। नहीं आई थी न? समय लगा 200 तक पहुंचने में। पहले 80 हुई, 120 हुई फिर जाकर 200 के आसपास आए और 303 तक पहुंचे। बड़ी हार के बाद दूसरे ही चुनाव में वापसी हो गई थी क्या? अभी लोग देख रहे हैं कि क्या कांग्रेस को सौंप दिया जाए, थोड़े समय में रही-सही शंका भी खत्म हो जाएगी। फिलहाल यही कह सकता हूं कि विकल्प के सवाल का कांग्रेस ही उत्तर है। अगले चुनाव में आप देखिएगा। वो अगला चुनाव कब होगा मैं नहीं जानता, अभी कोई नहीं जानता। लेकिन बहुत जल्दी हो सकता है।
’कांग्रेस को सबसे ज्यादा नुकसान वंशवाद के मुद्दे ने पहुंचाया। राहुल गांधी के साथ पार्टी को वंशवाद का प्रतीक बना दिया। प्रियंका गांधी सक्रिय रूप से मैदान में हैं। तो क्या अब पार्टी इस मुद्दे पर सावधानी से आगे बढ़ेगी?
पवन खेड़ा: परिवारवाद की बात करते हुए थोड़ी अपनी बात करनी होगी, थोड़ी संघ के बारे में भी कर लेनी पड़ेगी। संघ के सिर्फ प्रमुख 12 लोगों के परिवारों का ब्योरा निकाल कर देखिए। एक छोटा समूह है 12-15 लोगों का जो ‘रेशिम बाग’ पर नियंत्रण रखता है और ‘रेशिम बाग’ के जरिए पूरे देश की राजनीति पर नियंत्रण रखता है, बिना किसी जिम्मेदारी के। मैं अभी अनुराग ठाकुर, दुष्यंत चौटाला जैसे लोगों के नाम नहीं लूंगा। जिन्हें हमसे भी लेकर गए, ज्योतिरादित्य सिंधिया, जितिन प्रसाद, आरपीएन सिंह, मिलिंद देवड़ा सब परिवारवादियों को ले गए। परिवारवाद के खिलाफ होते तो उन्हें नहीं लेते। इनकी बातें दोगली होती हैं। अब राजनाथ सिंह जी के बेटे को बार-बार टिकट कैसे मिल जाता है? आप कारण बताइए हमें कोई आपत्ति नहीं है। ये हमारी पार्टी में हस्तक्षेप करते हैं। हमारा नेता कौन होगा ये हम तय करेंगे न? इतना तो लोकतंत्र है इस देश में कि अपना नेता मैं खुद चुनूं। अपनी पार्टी में मैंने मल्लिकार्जुन खरगे को चुनने के लिए वोट दिया। पहली बार मुझे मौका मिला अपनी पार्टी का अध्यक्ष चुनने का। मेरे लिए गौरव का पल था वह। भारतीय जनता पार्टी में किसी को कभी ऐसे गौरव के पल की अनुभूति हुई? मुझे नहीं लगता वहां किसी ने ऐसा गौरव महसूस किया होगा।
’वह कौन सी रणनीति थी कि राहुल गांधी ने अमेठी की जगह रायबरेली से चुनाव लड़ा? पार्टी का निर्णय था या कथित बहुप्रचारित खौफ?
पवन खेड़ा: खौफ कितना था यह तो नतीजों में दिखा। कौन, कहां से लड़ेगा यह पार्टी का निर्णय होता है। पूरी कमेटी बैठती है जो निर्णय लेती है। कई ऐसे उदाहरण भी हैं कि शीर्ष नेतृत्व ने कहा कि नहीं ये उचित रहेगा, इसको यहां से टिकट मिलनी चाहिए। कमिटी ने फैसला दिया कि नहीं साहब आप गलत बोल रहे हैं, यहां से जीत नहीं सकता वहां जीतेगा या वहां ज्यादा अच्छा रहेगा।
’राजनीतिक प्रवक्ता पार्टी का चेहरा होते हैं। पिछले समय में कांग्रेस को इस स्तर पर नुकसान पहुंचा और काफी लोग छोड़ कर गए। आपकी ‘आइटी सेल’ पर तानाशाही व्यवहार के आरोप लगे।
पवन खेड़ा: अब आइटी सेल तो मैं नहीं देखता। मुझे नहीं लगता कि इसमें कोई सच्चाई है क्योंकि हम साथ काम करते हैं, तो मालूम पड़ ही जाता है एक-दूसरे के बारे में। पार्टी प्रवक्ता के तौर पर कहना चाहता हूं कि पिछले दस साल से टीवी पर जा रहा हूं। मैं अपने साथियों को भी बोलना चाहूंगा कि इस कारण हमारा चेहरा जाना-पहचाना हो जाता है। सड़क पर लोग पहचानते हैं, हवाई अड्डे पर साथ में सेल्फी लेते हैं। इसका मतलब यह नहीं कि जो लोग पार्टी में 30-40 साल से काम कर रहे हैं, संगठन को समझ रहे हैं, हम उनसे ज्यादा समझ लेते हैं। कभी-कभी हमारे मन में भी एक अजीब सी बात आ जाती है, साहब हम ही चला रहे हैं। लेकिन इससे बड़ा भ्रम कुछ भी नहीं है। इसके पहले पार्टी बिना प्रवक्ताओं के भी बहुत अच्छे से चलती थी। हां, हमें टीवी व अन्य सार्वजनिक मंचों पर ज्यादा दिखने का फायदा मिलता है। लेकिन सबसे अहम वो लोग हैं जो संगठन को अच्छी तरह समझते हैं, राजनीति का अच्छा अनुभव रखते हैं।
’आइटी सेल की लड़ाई में भाजपा कांग्रेस से आगे दिखती है। स्मृति ईरानी के मसले पर राहुल गांधी की दखल के बाद भाजपा का आरोप था कि नुकसान पहुंचाने के बाद बोले। आपको लगता है कि सोशल मीडिया पर अभी भी भाजपा हावी है?
पवन खेड़ा: स्मृति ईरानी को हमने कोई नुकसान नहीं पहुंचाया। जो कुछ भी चला उसमें कांग्रेस पार्टी की कोई भूमिका नहीं थी। ‘एक्स’ पर मेरा खाता देखिए। मैं कैसे ट्रोल होता हूं। हर नेता रोज ट्रोल हो रहा है। अगर हम राजनीति में आए हैं तो छुई-मुई बन कर नहीं रह सकते हैं। अब यह विलासिता तो कुछ लोगों को है कि उनसे कोई सवाल नहीं पूछा जाए, उन पर कोई छींटाकशी नहीं की जाए। हम तो छुई-मुई नहीं कि बरसात में नहाना भी है, बरसात में नाचना भी है लेकिन भीगना नहीं है।
’कभी-कभी बहस में भाषा का ख्याल नहीं रहता। आप भी इस विवाद में फंस चुके हैं। इसके साथ ही राजनीतिक बहस का स्तर कैसे ठीक हो?
पवन खेड़ा: अपने विवाद पर मैंने सफाई दे दी थी। बात रही माहौल की तो माफ कीजिएगा, जैसा राजा होगा वैसी ही प्रजा होगी। राजा बदल दीजिए, प्रजा ठीक हो जाएगी।
’अगले दो साल के अंतराल में हरियाणा, झारखंड, महाराष्ट्र और उत्तर प्रदेश में चुनाव होने वाले हैं। इन जगहों पर आपकी तैयारी कैसी है?
पवन खेड़ा: ’’ हरियाणा, महाराष्टÑ, झारखंड कांग्रेस हर जगह पूरी तरह तैयार हैं। उत्तर प्रदेश में वह होगा जो अभी तक किसी ने नहीं सोचा है। जिसे अभी असंभव कहा जा रहा है। वहां कांग्रेस सरकार बनाने जा रही है। 2024 में भाजपा की हार का जो सिलसिला शुरू हुआ है, वह बढ़ता जाएगा। निकट भविष्य में इस स्थिति में कोई बदलाव नहीं होगा।
’इंडिया’ गठबंधन में बंगाल से लेकर दक्षिण तक बहुत ही विरोधाभास है। इन विरोधाभासों के साथ आप कैसे आगे बढ़ेंगे।
पवन खेड़ा:आप जिसे विरोधाभास कह रहे वह विविधता है। विविधता हमारे देश की ताकत है, ‘इंडिया’ ब्लाक की ताकत है। यह विविधता राजनीतिक क्षेत्र में सह-अस्तित्व की भावना के साथ चलने के लिए प्रशिक्षण देती है। ‘इंडिया’ गठबंधन अपनी तय प्रतिबद्धताओं के साथ एकजुट है। हमारा आगे का प्रदर्शन बहुत अच्छा होगा।