मेरठ से भाजपा के सांसद अरुण गोविल ने कहा कि राम की भूमिका में लोकप्रिय होने के बाद उन्हें इस बात का पूर्ण अहसास था कि जनता उन्हें नहीं, अपनी आस्था को प्रणाम करती है। राम-मंदिर का निर्माण होना किसी भी तरह राजनीति का मसला नहीं होना चाहिए। उन्होंने आरोप लगाया कि अयोध्या में विपक्ष के असत्य के कारण भाजपा हारी। जनता को डराया गया कि भाजपा आई तो संविधान बदल देगी और आरक्षण खत्म कर देगी। भाजपा नेतृत्व ने जिस स्तर का विकास किया वह संदेश जनता तक नहीं पहुंच पाया। उम्मीद जताई कि भाजपा जल्द ही इस स्थिति से निकल कर अपने प्रचंड जनाधार की ओर वापसी करेगी। मेरठ में अरुण गोविल से कार्यकारी संपादक मुकेश भारद्वाज की विस्तृत बातचीत के चुनिंदा अंश।

पूरे देश में आपकी आध्यात्मिक पहचान भगवान राम के प्रतिनिधि के रूप में हुई। आज आप जनता के लोकतांत्रिक तरीके से चुने हुए प्रतिनिधि हैं। रामनीति से राजनीति के इस फर्क को कैसा महसूस कर रहे हैं?
अरुण गोविल:
दोनों का अलग-अलग अनुभव है। तब जनता से प्रत्यक्ष संबंध नहीं था, अब प्रत्यक्ष संबंध है। टेलीविजन या फिल्म करते थे तो बाद में नतीजा आता था कि हमारा काम अच्छा है या नहीं। अभी तो आपको तुरंत नतीजे मिलते हैं। बहुत ही ज्यादा फर्क है। लोगों की भावनाओं का आमने-सामने तुरंत अंदाजा लग जाता है। यहां आप अभिनय नहीं कर सकते हैं। अगर करना भी चाहते हैं तो थोड़ी ही देर में आपका असली रूप सामने आ जाता है।

हिंदू धर्म के वरिष्ठ प्रतीक के रूप में जब आप लोगों के सामने जाते थे तो आपके प्रति आस्था थी। पहले लोग आपको हाथ जोड़ते थे और अब आपको भी हाथ जोड़ने पड़ते हैं। अब सबकी सुननी है। इस बदले रिश्ते को कैसे देखते हैं?
अरुण गोविल:
मेरा लोगों के सामने हाथ जोड़ने का मतलब यह नहीं है कि मुझे उनसे कुछ चाहिए या मैं बहुत नम्र दिखना चाहता हूं। मैं अपने बड़ों को हाथ जोड़ता ही हूं। हाथ जोड़ना और नमस्ते करने में फर्क है। यह मेरे अभिवादन का तरीका है।

रामायण में आपके दो सह-कलाकार दीपिका चिखलिया और अरविंद त्रिवेदी नब्बे के दशक में भाजपा की तरफ से राजनीति में आ गए थे। आपका आगमन अयोध्या में मंदिर निर्माण के बाद हुआ। राजनीतिक भूमिका में इस देरी की वजह?
अरुण गोविल: हर चीज को करने का अपना समय होता है और अपना ढंग भी होता है कि आप क्या और कैसे करना चाहते हैं। यही मेरा समय और यही मेरा ढंग था।

राजनीतिक रूप से क्या भाजपा आपकी पहली पसंद थी? इसके पहले आप कांग्रेस के मंचों पर देखे जाते थे।
अरुण गोविल: सच कहूं तो मेरा उस समय किसी राजनीतिक पार्टी की तरफ झुकाव था ही नहीं। न किसी से कोई खास लगाव था और न किसी से दुराव। कुछ लोगों से आप मिलते-जुलते रहते हैं तो आपकी पहचान उनके साथ जुड़ जाती है। उस समय इत्तफाकन कांग्रेस के लोग मेरे दोस्त थे।

उस दौर को देखें तो सभी सिनेमा कलाकारों की प्राथमिकता कांग्रेस ही होती थी। अमिताभ बच्चन से लेकर सभी मकबूल चेहरे।
अरुण गोविल:
उन दिनों कांग्रेस ही प्रमुख राजनीतिक वर्चस्व की पार्टी थी। यह बहुत स्वाभाविक था। उन लोगों का राजनीतिक झुकाव रहा होगा कांग्रेस या किसी और पार्टी के साथ। मेरा किसी के तरफ झुकाव नहीं था।

तो अब आपका झुकाव जनता की तरफ रहेगा या पार्टी की तरफ?
अरुण गोविल:
अब तो मैं भारतीय जनता पार्टी का सदस्य, कार्यकर्ता और सांसद हूं। जाहिर सी बात है कि पार्टी और उसकी विचारधारा मेरी प्राथमिकता है। पार्टी और उसकी विचारधारा को प्राथमिकता देना, जनता को ही प्राथमिकता देना है। भारतीय जनता पार्टी की ओर से जनता का प्रतिनिधि होना मेरे लिए गर्व की बात है।

आप ऐसे समय में भाजपा के प्रतिनिधि बने जब उसका प्रचंड जनाधार कम हो रहा है।
अरुण गोविल:
मैं कोई अब और तब की योजना बना कर भाजपा में नहीं आया था। हां, इस बार लोकसभा चुनाव के नतीजे 2019 जैसे नहीं थे। लेकिन, मुझे पूरा विश्वास है कि पार्टी जल्द ही इस स्थिति से उबर जाएगी।

भगवान राम और उनके प्रतीकों से किसी का कोई विरोध नहीं। लेकिन, बीते चुनावों में भाजपा नेताओं को प्रचार के दौरान भी जनता का खूब विरोध झेलना पड़ा? आपका कैसा अनुभव रहा?
अरुण गोविल:
सच कहूं तो मेरा ऐसा कोई अनुभव नहीं रहा। अब जब आप जनप्रतिनिधि के रूप में खड़े होंगे तो लोग आपके सामने समस्या लेकर आएंगे ही।

मेरठ आपकी पहली पसंद थी या पार्टी ने आपको यहां के लिए चुना?
अरुण गोविल: मेरी तो पसंद कुछ भी नहीं थी। मुझे बाहर से पता चला कि मेरा नाम चल रहा है इस सीट के लिए। फिर मुझे पार्टी की तरफ से पूछा गया कि क्या आप मेरठ सीट से चुनाव लड़ना चाहेंगे और मैंने स्वीकार किया।

मेरठ में आपके लिए चुनाव अगर थोड़ा मुश्किल हुआ तो उसकी वजह थी कि आपको टिकट मिलने के बाद पार्टी में अंदरूनी कलह हुई। आप इसे कैसे देखते हैं?
अरुण गोविल: देखिए, यह मानव स्वभाव है कि आप किसी चीज के लिए प्रयत्नशील रहें और किसी वजह से आपको नहीं मिले तो नाउम्मीदी होती है। एक चुनाव क्षेत्र में कई लोग मेहनत करते हैं, टिकट मिलने की उम्मीद करते हैं। मुझे टिकट मिलने के बाद कितना बड़ा तबका इसके खिलाफ हुआ मुझे इसका अंदाजा नहीं। लेकिन, यह स्वाभाविक है।

अपने एक साक्षात्कार में आपने कहा था कि भगवान राम की भूमिका के बाद आपकी व्यावसायिक सिनेमा से दूरी हो गई। आज इसके नफे-नुकसान को कैसे देखते हैं।
अरुण गोविल: व्यावसायिक संदर्भ तो एक अलग मसला है। जिंदगी में नफे-नुकसान के गणित को समझने बैठता हूं तो क्या जमा किया, क्या ऋण है तो अंतत: आज जो मिला उसी वजह से मिला। मैं कोई भी फिल्म कर लेता, किरदार निभा लेता लेकिन यह जो सम्मान है, प्यार है, नहीं मिलता।

क्या कभी खुद के प्रति दिव्य होने की अनुभूति होती है?
अरुण गोविल:
मेरे पास सिर्फ कृतज्ञता की अनुभूति है। मुझे पता है कि कोई मुझे नहीं, अपनी आस्था को प्रणाम कर रहा है। मैं उसके लिए आस्था का प्रतीक हूं। कोई मेरी आरती उतार रहा है तो वह अपने आराध्य का स्मरण कर रहा है। मैं अपने को एक आम इंसान ही मानता हूं और अपने आराध्य के प्रति लोगों की आस्था की कद्र करता हूं।

मेरठ के सांसद के रूप में लोगों की आपसे जो उम्मीदें थीं तात्कालिक तौर पर कितनी पूरी हो पाईं?
अरुण गोविल:
मेरठ में औद्योगिक क्षेत्र को लेकर काम शुरू हो चुका है। इसके साथ ही 250 हेक्टेयर में जो प्रयागराज एक्सप्रेसवे बनना है उसे 500 हेक्टेयर यानी दुगुना करवाया गया। रोजगार का क्षेत्र प्राथमिकता है। 421 महिलाओं को रघुनाथ कालेज में नियुक्ति पत्र मिला। लोन मेले में उद्योगपतियों की समस्या का निस्तारण किया। मेरठ को सौर ऊर्जा से चालित शहर के रूप में विकसित करने के लिए कदम उठाए गए हैं। यहां के लिए वंदे भारत ट्रेन परियोजना दो साल से लटकी हुई थी। रेल मंत्री अश्विनी वैष्णव जी से मुलाकात के बाद यह भी शुरू हो गई।

आज व्यावसायिक सिनेमा का पैमाना सिनेमा घरों में टिकट खिड़की की बिक्री का नहीं रहा। ओटीटी मंचों ने पूरा परिदृश्य बदल दिया है। क्या आपको लगता है इससे सिनेमा को नुकसान पहुंचा?
अरुण गोविल: सच कहिए तो इस संदर्भ में फायदा या नुकसान जैसी कोई चीज नहीं होती है। यह एक उद्योग है जो समय के साथ बदला, जिसके कारण काम और अवसर भी बढ़ गए। समय के साथ विषयवस्तु बदल गए हैं। पहले पारिवारिक मनोरंजन की चीजें बनती थीं अब नहीं बनती हैं। फायदे या नुकसान के बरक्स यह देखने की जरूरत है कि काम के अवसर कितने बढ़ चुके हैं।

रामानंद सागर के बाद रामायण पर आधारित बहुत सारे धारावाहिक और सिनेमा बने, लेकिन अरुण गोविल जैसी सफलता किसी को नहीं मिली। अभी एक बड़े बजट की फिल्म आने वाली है जिसमें रणवीर कपूर भगवान राम की भूमिका निभा रहे। आपने उन्हें शुभकामना भी दी है। रणवीर कपूर ने जिस तरह ‘एनिमल’ जैसी हिंसा प्रधान फिल्म में भूमिका निभाई है तो क्या लोग उन्हें भगवान राम की सौम्य छवि के रूप में स्वीकार पाएंगे?
अरुण गोविल:
इसका बेबाक जवाब है, किसी भी फिल्म या किरदार की सफलता की भविष्यवाणी कोई भी नहीं कर सकता है।

कोरोना के समय भी रामानंद सागर के रामायण का पुनर्प्रसारण हुआ। यानी राम की भूमिका के पर्याय के रूप में आप ही रहने वाले हैं?
अरुण गोविल:
रामायण और राम आस्था के सवाल हैं और लोगों की आस्था इससे जुड़ चुकी है।

भाजपा पर एजंसियों के उग्र इस्तेमाल के आरोप लगते हैं। विपक्ष का आरोप है कि भ्रष्टाचार के मामलों में सिर्फ उसे ही लक्षित किया जाता है।
अरुण गोविल:
देखिए, हम लोकतंत्र में रहते हैं। यहां हर कोई ईमानदार तो नहीं है। गलत चीजों को ठीक करने के लिए कोई तो आगे आएगा ही। बिना कानूनी प्रक्रिया के इस्तेमाल किए एजंसियों का इस्तेमाल किया ही नहीं जा सकता है। अगर पहले भ्रष्टाचार पर बेपरवाही थी, सुस्ती थी तो इसका मतलब यह नहीं कि वही सब सही था और आज गलत हो रहा है।

आज की राजनीति में वंशवाद एक बड़ा मुद्दा है। आपका क्या कहना है?
अरुण गोविल:
राजनीति में ऐसा माहौल बनना चाहिए कि हर योग्य को मौका मिले। एक ही परिवार का वर्चस्व होने से लोकतंत्र प्रभावित होगा। आपका योग्य होना ही राजनीति में आने की योग्यता होनी चाहिए।

2014 में भाजपा के प्रचंड बहुमत में आने के बाद कांग्रेस सहित हर दल के लोग इसमें शामिल हो रहे हैं। जिन पर भ्रष्टाचार के आरोप हैं उन्हें भी पार्टी शामिल कर रही है। आरोप लगे कि भाजपा की धुलाई मशीन में आते ही भ्रष्टाचार के आरोप का दागी बेदाग हो जाता है। इस स्थिति को आप कैसे देखते हैं।
अरुण गोविल:
देखिए, मैं उस स्तर पर बात नहीं करना चाहता। मैं एक बुनियादी समझ के साथ कहता हूं कि इन मुद्दों को तय करने के लिए पार्टी के शीर्ष पदों पर लोग हैं। आज मैं मेरठ का सांसद क्यों हूं? क्योंकि पार्टी के लोगों ने तय किया। इसके बाद अगर मैं अपना काम ईमानदारी से नहीं करूंगा तो भला जनता मुझे क्यों रहने देगी? मैं पूरी ईमानदारी से बेदाग रहते हुए काम करना चाहता हूं।

’मेरठ में आपकी मौजूदगी लगातार रहेगी?
अरुण गोविल:
आप देख ही रहे हैं। भविष्य तो नहीं जानता, अगले पांच साल तक यहां के लोग मुझे अपने साथ हमेशा पाएंगे। जो लोग सवाल उठा रहे थे कि चुनाव जीतने के बाद मैं अदृश्य हो जाऊंगा उन्हें जवाब मिल चुका है।

किसान आंदोलन एक बड़ा मुद्दा रहा और अभी आपकी समकक्ष सांसद के कारण पार्टी को इसे लेकर परेशानी झेलनी पड़ रही है। इस मुद्दे को आप कैसे देखते हैं।
अरुण गोविल:
राजनीति में यह बहुत आम है कि कुछ लोग अपने हितों को देख कर एक साथ होते हैं। लेकिन हमें तो किसानों ने भी वोट दिया है। मुझे पूरा यकीन है कि भाजपा इस मुद्दे को हल कर लेगी।

बेरोजगारी का संकट आज बड़ा सवाल है। इसे लेकर क्या हो सकता है?
अरुण गोविल:
बेशक, यह बड़ा सवाल है। हमारी जनसंख्या में तेजी से इजाफा हो रहा है। हमारे विकास की गति तेज है तो रोजगार की जरूरत वाली जनसंख्या में भी तेजी से इजाफा हो रहा है। इस पर जल्द काबू पाने की रणनीति है और सफलता भी मिलेगी।

क्या राजनीति में सेवानिवृत्ति की कोई उम्र होनी चाहिए?
अरुण गोविल:
राजनीति या किसी भी क्षेत्र में जब तक कोई इंसान शारीरिक व मानसिक रूप से कार्य करने में सक्षम है तब तक उसे मौका मिलना चाहिए।

आपने राम की भूमिका अदा की और जनता के बीच एक अलग ही दर्जा पाया। आज राम के नाम पर राजनीति को कैसे देखते हैं?
अरुण गोविल: कहां हो रही है राम के नाम पर राजनीति? अपने आराध्य देव का मंदिर बनाना राजनीति कैसे हो सकती है? मंदिर बनना ही था, अदालत ने फैसला दिया।

अयोध्या में जनता ने भाजपा को स्वीकार क्यों नहीं किया?
अरुण गोविल: विपक्ष ने बेसिर-पैर का आरोप लगाया कि भाजपा संविधान बदल देगी, आरक्षण खत्म कर देगी। विपक्ष के असत्य ने अयोध्या में भाजपा की छवि खराब की।

आरक्षण के मुद्दे पर आपका क्या मानना है?
अरुण गोविल:
आरक्षण वृहत्तर स्तर पर संवैधानिक मुद्दा है। यह एक बड़े राजनीतिक बहस का विषय है, जिस पर सावधानी और सतर्कता से बात करनी होती है। मेरी चिंता यह है कि राजनीति में धर्म का अतिरेक हो रहा है। जातिगत राजनीति बुरी तरह हावी है। ऐसी राजनीति हमारी लोकतांत्रिक संस्थाओं का क्षरण करेगी।

तो क्या वक्त आ गया है कि इस तरह की राजनीति पर रोक लगाई जाए।
अरुण गोविल:
इस पर रोक तभी लगेगी जब हम विकास के मुद्दे पर जनता की चेतना को जागृत कर सकेंगे। भाजपा के नेतृत्व ने देश का जितना विकास किया वह भी लोगों के पास नहीं पहुंच सका।

क्या आपको लगता है, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की लोकप्रियता में कमी आई है?
अरुण गोविल:
देखिए, इस तरह की किसी बात पर मेरा भरोसा नहीं है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी अपने शब्दों के पक्के हैं। वे जो कहते हैं उसे कर दिखाते हैं। कर्मयोगी हैं।