मैं आजकल अमेरिका में हूं। जिस दिन केंटकी पहुंचा, उसी दिन अमेरिका में चल रहे राष्ट्रपति पद के लिए डेमोक्रेटिक और रिपब्लिकन पार्टियों के उम्मीदवारों के नामांकन की प्रक्रिया का एक अहम फैसला होना था। केंटकी राज्य के एक बड़े शहर लुइविल से जुड़ा इंडिआना प्रदेश है। उस दिन यानी तीन मई को दोनों डेमोक्रेट और रिपब्लिकन पार्टी के उमीदवारों का चुनाव अभियान अपने चरम पर था। पार्टी नामांकन पाने के लिए हिलेरी क्लिंटन और बर्नी सांडर्स डेमोक्रेटिक पार्टी के मंच पर जूझ रहे थे और रिपब्लिकन पार्टी की तरफ से डोनाल्ड ट्रंप और टेड क्रूज आखिरी लड़ाई लड़ रहे थे। शाम होने तक ट्रंप ने अपनी उम्मीदवारी स्थापित कर ली, जबकि बर्नी सांडर्स ने क्लिंटन को एक और झटका दिया। उनके पक्ष में क्लिंटन से ज्यादा वोट पड़े। विशेषज्ञ मानते हैं कि हिलेरी क्लिंटन ही अंत में नामांकित होंगी, पर इस चुनाव में जीरो से हीरो बनने का सेहरा सांडर्स के सिर पर ही बंधा।
हीरो से ज्यादा विलेन बनाने या विलेन बनने की होड़ है। अमेरिका के इतिहास में आज तक ऐसा कभी नहीं हुआ है कि चुनाव प्रक्रिया इतनी दूषित हो जाए कि प्रमुख उम्मीदवार एक ही पार्टी के होते हुए भी एक-दूसरे का चेहरा देखना भी पसंद न करें। डेमोक्रेट हों या रिपब्लिकन, शीर्ष से लेकर आम कार्यकर्ता तक दोनों पार्टियां इस कदर विभाजित हैं कि अपशब्दों का प्रयोग आम हो गया है। रिपब्लिकन पार्टी की प्राइमरी के वोटिंग के समय ट्रंप के प्रतिद्वंद्वी टेड कू्रज ने उनको जन्मजात झूठा कह दिया। ट्रंप ने भी कोई कसर नहीं छोड़ी और उनकी वंशावली तक पर सवाल उठा दिए।
रिपब्लिकन और डेमोक्रेट पार्टियों की वोटिंग एक ही दिन इंडिआना में होनी थी। कई दिन पहले से कार्यकर्ता और नेता यहां जमा हो रहे थे और तीन मई को वोटिंग के समय ऐसा लग रहा था कि गाली-गलौच से लेकर मारपीट तक हो सकती है, शुक्र है कि हिंसा नहीं हुई, पर अभद्र आरोप खूब लगे। इंडिआना की सड़कों पर जो चुनावी सामान बिक रहा था या बांटा जा रहा था, वह हर तरह के अलंकारों से विभूषित था। हिलेरी क्लिंटन और ट्रंप दोनों के खिलाफ एक से एक भद्दे नारे इन पर लिखे हुए थे।
मुझे याद नहीं पड़ता कि मैंने कब ऐसा चुनाव देखा होगा। भारत में भी 2014 का आम चुनाव काफी गरम माहौल में हुआ था। भाजपा और कांग्रेस के बीच वार और पलटवार का घमासान हुआ था, पर राजनीतिक नाले की गंदगी इस तरह सड़क पर नहीं उछाली गई थी। नरेंद्र मोदी के नामांकन पर उन्हीं की पार्टी के वरिष्ठ नेता नाराज हुए थे। कांग्रेस में भी राहुल गांधी को लेकर नाराजगी थी। मोदी, सोनिया-राहुल गांधी ने एक-दूसरे पर सवाल उठाए थे और कुछ शब्द आपत्तिजनक भी कहे थे, पर ट्रंप और हिलेरी क्लिंटन पर जो हमले हो रहे हैं वे गटर पॉलिटिक्स की श्रेणी में आते हैं।
वास्तव में आज की तारीख में अमेरिका बुरी तरह बंटा हुआ है और बहुत गुस्से में है। ट्रंप नामांकित हो चुके हैं, पर रिपब्लिकन पार्टी के दिग्गज उनको स्वीकार करने के लिए तैयार नहीं हैं। बुश परिवार इस पार्टी से लंबे अरसे से जुड़ा हुआ है। जॉर्ज बुश और उनके बेटे जॉर्ज डब्लू बुश अमेरिका के राष्ट्रपति रह चुके हैं। बुश परिवार अपनी पार्टी में बहुत शक्तिशाली हैं, पर उसके विरोध के बाद भी ट्रंप नामांकन जीत गए हैं। फैसला होते ही जेब बुश ने एलान कर दिया कि वे अपनी पार्टी के उम्मीदवार को वोट नहीं देंगे, बल्कि विरोधी पार्टी के उम्मीदवार को वोट देंगे। जेब अकेले नहीं हैं। उनकी पार्टी का एक बड़ा धड़ा ट्रंप के खिलाफ है और यह विरोध रिपब्लिकन पार्टी को टूट के कगार पर ले आया है।
पर आम रिपब्लिकन कार्यकर्ता ट्रंप के पक्ष में है। उनको एक के बाद एक राज्यों में इसलिए सफलता दिला रहा है, क्योंकि ट्रंप वही कह रहे हैं, जो वहां के लोग सुनना चाहते हैं। चाहे ट्रंप का वादा हो कि वे अमेरिका को फिर से महान देश बनाएंगे या फिर मुसलमानों और मेक्सिकन का विरोध, हर मुद्दे पर वे कहते हैं कि मुझे राष्ट्रपति बनने दीजिए, मैं सब ठीक कर दूंगा। रोचक बात यह है कि ट्रंप समर्थक ज्यादातर वे लोग हैं, जो मानते हैं कि देश उनका है, पर पिछली सरकारें अल्पसंख्यक तुष्टीकरण में लगी रहीं, जिसकी वजह से न तो उनका हक मिल पाया और न ही अमेरिका सुरक्षित रह सका। ट्रंप इस भावना ज्वर की देन हैं। अच्छे दिनों के लिए अमेरिका के लोग बेचैन हैं।
दूसरी तरफ हिलारी क्लिंटन हैं। डेमोक्रेटिक पार्टी के ज्यादातर समर्थक उनको नापसंद करते हैं। हिलेरी को लोग एक नेचुरल कैंडिडेट नहीं मानते। उनको लगता है कि पार्टी के कुछ प्रभावशाली नेताओं और पूंजीपतियों ने उनको मत्थे मढ़ दिया है। हिलेरी का संपर्क आम लोगों से बहुत कम है और अमेरिका की स्थापित व्यवस्था से नजदीकी बहुत ज्यादा। लोगों का मानना है कि वे जीत नहीं रही हैं, बल्कि व्यवस्था उनको जितवा रही है। उनकी पार्टी के राष्ट्रपति बराक ओबामा तक भी उनके साथ पूरी तरह से नहीं हैं। हिलेरी क्लिंटन जीत तो जरूर रही हैं, पर उनके नामांकन के खिलाफ सड़क पर रोष है।
वास्तव में अमेरिकी लोकतंत्र ऊहापोह की स्थिति में है। ट्रंप को बहुसंख्यक आम अमेरिकी चाहते हैं, क्योंकि वे अमेरिका को फिर से विश्व-विजेता बनाएंगे। उनकी जुबानी पहलवानी लोगों को सम्मोहित कर रही है, पर उनकी पार्टी विभाजित हो चुकी है। हिलेरी लोगों को पसंद नहीं हैं, पर व्यवस्था की प्रिय हैं। अमेरिका इस भयंकर अंतर्विरोध में फंसा हुआ है। देश इससे कैसे निकलेगा, यह तो वक्त ही बताएगा। फिलहाल नवंबर तक यह अप्रत्याशित राजनीतिक लठमारी जारी रहेगी।