ट्रंप कहिन: मोदी आते क्या अमेरिका? आएंगे जाएंगे, खाना खाएंगे, बात करेंगे और क्या? मोदी कहिन: मुझे बुलावा आया है… महाप्रभु की धरती ने बुलाया है। अथ एक ‘फील्ड मार्शल’ उवाच: ट्रंप का बुलावा आया था। दोपहर के भोजन पर बुलाया था… हमने खाया खाना, हमारा पेट भर गया… ट्रंप ने युद्ध दिया रोक, उन्हें मिले ‘नोबेल शांति शांति शांति’!

फिर शुरू हुआ ‘युद्ध राग…’। इजराइल कहे कि ईरान में हमने ये मारा, वो मारा… जवाब में ईरान कहे कि हमने भी इजराइल में ये मारा वो मारा…। फिर बोले ट्रंप कि असली तो हमारे ‘बी 2’ के पायलटों ने ‘परमाणु’ ठिकाने ध्वस्त किए।

‘बी 2’ के पायलटों को धन्यवाद। ईरान करे आत्मसमर्पण… न करेगा, तो होगा बवंडर… बंद करो ‘गोलीबारी’, करो ‘युद्ध विराम’। फिर भी कोई न माना तो ट्रंप इतने नाराज कि मुखारविंद से निकल पड़ा एक ‘सुभाषित’… फिर ‘कतर ब्योंत’ से बनाई गई ‘युद्ध विराम’ की खबर!
विशेषज्ञ बोले कि सबको सब पता रहा।

क्या सच, क्या झूठ, किसी को नहीं मालूम

सबको बता दिया गया था कि ‘परमाणु ठिकानों’ पर हमला होगा, इसलिए ईरान ने पहले ही साजो-सामान को अलग जगह पर भेज दिया था। ट्रंप कहिन कि सारे ठिकाने तबाह किए, तो ईरान कहे ‘सब ठिकाने सुरक्षित..!’ क्या सच, क्या झूठ, किसी को नहीं मालूम!

फिर एक दिन शुरू हुआ विपक्ष का ‘वीडियो उपहास युद्ध’। पहले रोमन में ‘नरेंदर सरेंडर’ लिखा दिखा। पक्ष प्रवक्ता कहिन कि एक विपक्षी दल मोदी की सिर्फ खिल्ली उड़ाता है और हारता रहता है..! फिर एक दिन शुरू हुआ पुराना रोना कि चुनाव फिक्स… चुनाव फिक्स। पक्ष प्रवक्ता कहिन: ये जीतें तो चुनाव ठीक, नहीं तो गलत! गलत है तो अदालत जाइए। विपक्ष का जवाब: अदालत जाने से क्या होगा? कोई सुनता नहीं और आयोग भी सुनता नहीं..!

Ayatollah Ali Khamenei: ‘अपना लहजा ठीक करें ट्रंप…’, ईरान ने खामेनेई पर दिए बयान को लेकर अमेरिकी राष्ट्रपति को चेताया

एंकर बोला: मीठी ‘गप’ और कड़वी ‘थू’! ये कैसा तर्क? इसी बीच चैनल ने एक ‘तुरंता आनलाइन’ सर्वे करा डाला। उसने पूछा कि चुनाव आयोग पर मिथ्यारोप लगाने वालों को ‘दंडित’ किया जाना चाहिए, तो 75 फीसद ने कहा: हां ‘दंडित’ किया जाना चाहिए! चुनाव आयोग कहिन: पहले भी जवाब दिया हैै, आएं तो समझा देंगे।

फिर, ‘आपातकाल’ के ‘पचास वर्ष’ हुए और सत्तादल ने मनाया ‘संविधान हत्या दिवस’! विपक्ष कहिन कि वह ‘घोषित आपातकाल’ था, लेकिन आज ‘अघोषित आपातकाल’ है! फिर चैनलों पर देर तक होता रहा ‘आपातकाल’ बरक्स ‘अघोषित आपातकाल’! एक कहे कि आपातकाल में जनतंत्र का गला घोंट दिया गया था।

कुर्सी बचाने के लिए हजारों विपक्षी नेता जेलों में डाल दिए गए। उन पर अत्याचार किए गए। लेकिन सन 1975 के ‘आपातकाल’ के शिकार बने कुछ विपक्षी नेता ही कहते दिखे कि आज तो ‘अघोषित आपातकाल’ है! इतना ही नहीं, विपक्ष के एक नेता ने तो ‘आपातकाल’ का भी ‘सौंदर्यीकरण’ करते हुए कह दिया कि इतना भी बुरा नहीं था आपातकाल!

‘क्या हम अपना कृषि क्षेत्र खोलने जा रहे हैं?’, जयराम रमेश ने पूछा – ट्रंप के साथ कौन सी बड़ी डील करने जा रहे हैं पीएम नरेंद्र मोदी

फिर एक शाम एक चैनल ने बिहार के चुनाव को एजंडे पर ला दिया। जब लोगों से पूछा गया कि मुख्यमंत्री के लिए सबसे चहेता चेहरा कौन है तो ‘रेंटिग’ ने आंकड़ों से बताया कि 40 फीसद से अधिक लोग तेजस्वी को मुख्यमंत्री के रूप में पसंद करते हैं, जबकि वर्तमान मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को सत्रह फीसद से कुछ ही अधिक पसंद करते हैं… उनसे तो ज्यादा यानी 18 फीसद से कुछ ज्यादा तो प्रशांत किशोर को मुख्यमंत्री के रूप में चाहने वाले हैं।

फिर ‘रेटिंग’ ने सवाल किया कि राज्य सरकार के कामकाज से संतुष्ट रहने वाले कितने फीसद हैं, तो आंकड़े बोले कि 34.4 फीसद बहुत संतुष्ट और 27 फीसद से अधिक ‘कुछ संतुष्ट’। जब ‘रेटिंग’ ने पूछा कि नीतीश के काम से लोग कितने संतुष्ट हैं तो आंकड़े बोले कि 34.4 फीसद बहुत संतुष्ट और 25 फीसद से अधिक ‘कुछ संतुष्ट’। रेटिंग विशेषज्ञ ने स्पष्ट किया कि चुनाव में मुख्यमंत्री के चेहरे का महत्त्व होता है, लेकिन सिर्फ चेहरा ही काफी नहीं होता। चुनाव में सरकार के ‘कामकाज’ और ‘प्रदर्शन’ का भी महत्त्व होता है।

जब नीतीश सरकार के कार्यकाल में ‘आम जनता के रहन-सहन में सुधार’ के बारे में पूछा गया तो आंकड़े बताने लगे कि 25 फीसद ने कहा कि बहुत हुआ और 40 फीसद ने कहा कि जैसा था वैसा ही रहा! तब जद(एकी) के प्रवक्ता कहिन कि बिहार में कोई सत्ता-विरोधी लहर नहीं है… नीतीश के नेतृत्व में ही राजग चुनाव लड़ेगा और जीतेगा!

सप्ताह की सबसे ‘सकारात्मक’ खबर आई अमेरिका से प्रक्षेपित किए जाते ‘एक्सिम 4’, अंतरिक्ष यान में बैठकर अंतरिक्ष में जाने वाले भारतीय अंतरिक्ष यात्री शुभांशु शुक्ल की, जिन्होंने इस यात्रा में शामिल होकर भारत का गौरव बढ़ाया। और अंत में आई दो कथावाचकों की ‘इटावा कथा’, जिसने एक बार फिर ‘जाति युद्ध’ का खतरा पैदा कर दिया। फिर नेताओं का कूद पड़ना। एक ओर ‘मनुवाद’, ‘ब्राह्मणवाद’ की कुटाई, दूसरी ओर ‘धर्मशास्त्र’ में कथावाचन की व्यवस्थाएं!