तीन दिन अमेरिका अमेरिका… मोदी मोदी..! लेकिन सवाल वही कि वे अमेरिका जा सकते हैं, मणिपुर नहीं..! फिर आए कुछ अनमोल वचन कि हमने उनकी ‘साइकोलोजी’ को तोड़ दिया है… वे कानून लाते हैं, हम खड़े हो जाते हैं, वे वापस ले लेते हैं। कैसा ‘फासिज्म’ है कि विपक्ष तक से डरा-मरा रहता है! एक कुर्सी भरी है, दूसरी ‘खाली कुर्सी की आत्मा’ है। भक्त कहिन कि राम की ‘खड़ाऊं’ शासन कर रही हैं। एक कहिन कि ‘खड़ाऊं मुख्यमंत्री’ हैं। सौ वचन तोड़ने वाले राम कैसे हुए? भक्त कहिन कि हमारे राम जी हमारे, खड़ाऊं राम जी के! हम जानें, राम जी जानें… तुम कौन? फिर आई बदलापुर की ‘बदला खबर’ कि बदलापुर के ‘बलात्कार के आरोपी’ को पुलिस ने रास्ते में ‘मुठभेड़’ में मारा। एक ‘मुठभेड़’ और दसियों मानी कि खुदकुशी की, कि चलती बस में बंदूक छीन पुलिस पर गोली चलाई, दो-तीन पुलिस घायल, फिर आत्मरक्षा में पुलिस की गोली सीधे ‘बलात्कार के आरोपी’ के माथे के बीच और वह ढेर! एक कहिन कि बदलापुर का ‘बदला’ हो गया। वह ‘उन्मादी’ था! कुछ भी कर सकता था। लेकिन विपक्ष के सवाल उठते रहे… आखिर ‘मुठभेड़’ का संज्ञान लेते हुए अदालत की ‘फटकार’ आई कि इसे ‘मुठभेड़’ नहीं माना जा सकता।
‘फूड सेफ्टी’ पर आदेश ध्रुवीकरण विवाद में फंसा
फिर एक दिन आया उत्तर प्रदेश सरकार का आदेश कि ‘फूड सेफ्टी’ के लिए सभी दुकानदारों, रेस्तरां और रेहड़ी, ठेली के मालिक द्वारा आईडी, पता, मोबाइल नंबर, सब प्रदर्शित करना जरूरी। और शाम होते-होते यह आदेश भी विवाद में फंसा कि यह ध्रुवीकरण की कोशिश है… कि, नहीं यह आदेश सभी के लिए है… कि कुछ लोग नाम पहचान छिपाना क्यों चाहते हैं… ऐसा कानून तो पहले से मौजूद है..!
अब पता नहीं कि यह विचार मिलावटी घी के ‘प्रसादम्’ से आया या कांवड़ के दौरान के ‘रुके हुए फैसले’ से आया, लेकिन इस बार इसका असर हिमाचल तक में दिखा। एक दिन वहां के मंत्री जी भी कह दिए कि उत्तर प्रदेश की तरह अपने यहां भी ‘आइडी शो’ की जाए, लेकिन बुरा हो ‘कमान’ का कि अगले ही दिन कहने लगे के ये सरकार का आदेश नहीं है।
‘तिरुपति प्रसादम्’ यानी ‘लड्डू प्रकरण’ ने पीछा न छोड़ा
फिर एक दिन एक सांसद जी ने कह दिया कि किसान कानून फिर से लाए जाएं… झोंक में कुछ नेता भी कह दिए कि कानून लाने चाहिए, लेकिन तभी आधिकारिक प्रवक्ता कहिन कि वे अधिकृत प्रवक्ता नहीं… तो अगले दिन कह दिया गया कि माफी जी! लेकिन हाय कर्नाटक के मुख्यमंत्री पर ‘मुदा जमीन स्केम’ का आरोप और अदालत द्वारा मुकदमा चलाने के लिए आदेश दे देना। ये कैसे दिन हैं कि हर बंदे पर मुकदमा है, फिर भी हर बंदे का गर्वीला ‘चेहरा’ है! ऐसे हर मुकदमे में ‘आरोप’ होते हैं, ‘प्रत्यारोप’ होते हैं और दोनों के बीच बेचारा सच ‘त्राहि-त्राहि’ करता रह जाता है!लेकिन मिलावटी घी के ‘तिरुपति प्रसादम्’ यानी ‘लड्डू प्रकरण’ ने पीछा न छोड़ा और फिर से लौटा!
एक दिन एक नेता जी कहिन कि जब लड्डू के प्रबंधन में कोई ‘गैर भक्त’ नहीं हो सकता तो ‘वक्फ बोर्ड’ में कोई ‘गैर’ क्यों हो। एक एंकर देर तक इस तुलना को ‘असंभव’ कहता रहा, लेकिन ‘वक्फ’ वालों ने एक न मानी। इन दिनों हर ‘बहस’ ऐसी ही ‘जिच’ में फंस जाती है और कभी-कभी तो ‘नियंत्रण के बाहर’ ही हो जाती है। जैसा कि एक चैनल ने बताया कि शुक्रवार की दोपहर ‘वक्फ’ पर विचार करने वाली संसदीय समिति में बहस के दौरान कुछ सदस्यों के बीच हाथापाई की नौबत तक आ गई। हम तो कहेंगे कि ओम शांति: शांति: शांति:!
फिर एक दिन सबको हिला देने वाली खबर आई कि देश में तिरपन दवाएं नकली/ मिलावटी हैं, जैसे कि ‘पैरासिटामोल’, विटामिनों की गोलियां, जिनके ‘दुष्परिणाम’ गंभीर हो सकते हैं। इसके बाद चैनल फौरन ले आए बड़े अस्पतालों के कुछ बड़े डाक्टरों को, जो बताते रहे कि इनको कई कंपनियां बनाती हैं। कई मानकों का खयाल नहीं रखतीं, दाम सस्ते रखती हैं, इसलिए ऐसा होता है। तब एक बहस में एक नागरिक प्रवक्ता ने दो टूक कहा कि आप अब तक कहां थे? आपकी ‘मेडिकल एसोसिएशन’ क्या कर रही थी? सबकी मिलीभगत लगती है, लेकिन सरकार क्या सो रही है? जांच कराए, अपराधियों से सख्ती से निपटे, नहीं तो सरकार की ‘आयुष्मान योजना’ भी गई पानी में।
एक पूर्व मुख्यमंत्री ‘तिरुपति दर्शन’ की कहे, तो कह दिया गया पहले तिरुपति जी के प्रति आस्था की घोषणा करनी होगी, तभी जा सकते हैं!
और अंत में, एक मंत्री से जब एक एंकर ने बार-बार पूछा कि लोकसभा के चुनाव में आपको हराने की कोशिश की गई, तो मंत्री गुस्से में एंकर को कस के डांट दिए कि आप झूठे हो… आप बिल्कुल झूठ बोल रहे हो। और एंकर जी की बोलती बंद!