संसद में तमाशे देख कर क्या आप भी थोड़ी-सी शर्मिंदगी महसूस करते हैं? मुझे शर्मिंदगी भी महसूस होती है और गÞुस्सा भी आता है, इसलिए कि इतनी बचकाना हरकतें होनी लगी हैं संसद परिसर में कि पिछले सप्ताह मुझे ऐसा लगा कि मैं स्कूली बच्चों का कोई नाटक देख रही हूं। नाटक के पहले भाग में देखा नेता प्रतिपक्ष को पत्रकार की भूमिका अदा करते हुए, दो ऐसे सांसदों के साथ इंटरव्यू करते हुए, जिन्होंने नरेंद्र मोदी और गौतम अडाणी के मुखौटे पहने हुए थे। राहुल गांधी अपने फोन पर वीडियो बनाते हुए उनसे पूछते हैं कि उनका आपस में रिश्ता क्या है। जवाब में अडाणी का मुखौटा पहने सांसद कहते हैं कि वे इतने करीब हैं प्रधानमंत्री के कि उनसे कुछ भी करा सकते हैं। इस पर बाकी कांग्रेसी सांसदों का झुंड बच्चों की तरह हंसने लगता है, बिल्कुल वैसे ही जैसे स्कूली बच्चे घटिया मजाक पर हंसते हैं।
नाटक के दूसरे भाग में अगले दिन कांग्रेसी सांसद दिखे ‘अडाणी-मोदी भाई भाई’ की टी-शर्ट पहने हुए और कंधों पर झोले उठाए हुए, जिन पर यही नारा लिखा हुआ है। प्रियंका गांधी से जब किसी पत्रकार ने पूछा इस तमाशे के बारे में, तो उन्होंने अकड़ कर जवाब दिया कि नाटक करने पर कांग्रेस सांसद मजबूर इसलिए हुए कि उनको अडाणी के मुद्दे पर संसद में बहस करने की इजाजत नहीं दी जा रही है। अब आप बताइए कि ये भी कोई जवाब हुआ? इसके बदले क्यों नहीं संसद के अंदर मुंह पर काली पट्टी बांधे दिखे ये लोग? कम से कम संसद का काम तो चलता रहता।
सबसे अजीब एक दूसरी बात लगी। राहुल गांधी दस वर्षों के प्रयास के बाद उस जगह कांग्रेस पार्टी को पहुंचा पाए हैं, जहां सीटें इतनी मिलीं लोकसभा में कि अपने आप को नेता प्रतिपक्ष कहला सकें, तो किस वास्ते संसद परिसर में नाटक करने पर उतर आए हैं? क्या उनका काम यह नहीं है कि संसद के अंदर अपनी बातें, अपनी शिकायतें रखें? माना कि उनकी नजर में अडाणी का मुद्दा सबसे ज्यादा अहमियत रखता है, लेकिन इसको संसद के अंदर अगर तमीज से रखते, तो शायद उनको बहस की इजाजत भी मिल जाती। संसद के अंदर रहते, तो थोड़े बहुत हमारे पैसे वसूल भी हो जाते। याद रखिए कि लोकसभा चलाने के लिए अनुमान यह है कि हर मिनट का खर्चा ढाई लाख रुपए है। जब किसी सत्र में न कानून बनते हैं और न बहस होती है, तो यह सारा पैसा जाया होता है।
विपक्ष ने अगर तमाशे किए लोकसभा परिसर में, तो सत्तापक्ष के सिपाहियों ने तमाशे किए सदन के अंदर ऐसे मुद्दे उठा कर जो ना सिर्फ बेमतलब हैं, बेकार भी हैं। अडाणी पर नाटक देख कर भारतीय जनता पार्टी ने वही जार्ज सोरोस वाला राग अलापना शुरू किया जो हम बहुत वर्षों से सुनते आ रहे हैं। इस बार भाजपाई सांसदों ने जार्ज सोरोस की तारें सोनिया गांधी और उनके बच्चों से जोड़ने की कोशिश की। बात शुरू हुई तो यहां तक चली कि किसी ने राहुल गांधी पर गद्दारी का आरोप लगाया। पहली बात, जो हमको समझनी चाहिए, तो यह कि सोरोस जितना भी चाहें, मोदी सरकार को नहीं गिरा सकते, इसलिए कि यह काम सिर्फ भारत के मतदाता कर सकते हैं।
लेकिन लगता है कि भारतीय जनता पार्टी के सांसद ऐसी चीजों के बारे में बहुत कम जानते हैं। सो, किसी दूसरे सांसद ने आरोप लगाया कि जार्ज सोरोस के पीछे अमेरिकी सरकार है, जो चाहती है कि मोदी की सरकार गिराई जाए और उसकी जगह वापस गांधी परिवार को लाया जाए। किसी मित्र देश पर इस तरह का गंभीर आरोप लगाना खतरे से खाली नहीं है, फौरन जवाब आया अमेरिका की तरफ से, जिसमें निराशा व्यक्त की गई कि ऐसे आरोप लग रहे हैं। क्या भाजपा सांसदों को इतना भी मालूम नहीं है कि इस तरह के गैर-जिम्मेदाराना आरोप लगा कर वे साबित सिर्फ यही कर रहे हैं कि भारत इतना निर्बल देश है कि अपने आपको हमेशा असुरक्षित महसूस करता रहता है। साथ में प्रधानमंत्री की भी बदनामी हो रही है, जिन्होंने अमेरिका के भावी राष्ट्रपति से खूब मेहनत करके गहरी दोस्ती का रिश्ता बनाया है।
संसद का समय बर्बाद करने के बदले अच्छा होता अगर सदन के अंदर बहस सुनने को मिलती उन किसानों की जो एक बार फिर अपनी शिकायतें लेकर दिल्ली आने की कोशिश कर रहे हैं। उनकी शिकायतों में दम न होता, तो इतने महीनों से प्रदर्शन न कर रहे होते शंभू बार्डर पर। मुद्दे और भी हैं बहुत सारे, जिन पर बहस होनी चाहिए संसद के अंदर। अर्थव्यवस्था में बहुत दिनों के बाद मंदी आई है, क्या यह अहम मुद्दा नहीं है संसद के अंदर बहस करने के लिए? बेरोजगारी बहुत बड़ा मुद्दा है देश भर में, जिस पर बहस लोकसभा के अंदर वर्षों से नहीं सुनी है।
हिंदू-मुसलिम तनाव बहुत बढ़ गया है पिछले कुछ महीनों से, जिसकी जड़ है हिंदुत्ववादियों की लगातार कोशिश मस्जिदों के नीचे प्राचीन मंदिर ढूंढ़ने की और उस कानून को बदलने की जिसके तहत ऐसी चीजें नहीं हो सकती हैं। फेहरिस्त लंबी है गंभीर मुद्दों की, जिन पर बहस होनी चाहिए संसद में। इसलिए हाथ जोड़ कर मैं आपकी तरफ से इल्तिजा कर रही हूं हमारे सांसदों से कि तमाशे बहुत हो गए हैं, जी भर गया है इन घटिया तमाशों को देख कर, अब बस करिए। और उस काम पर ध्यान देना शुरू करिए, जिसके लिए जनता ने आपको चुन कर भेजा है। जो आप कर रहे हैं वह जनता के साथ अन्याय है। घोर अन्याय। अब मेहरबानी करके उनके बारे में भी सोचिए, जिनके नुमाइंदे बन कर आप पहुंचे हैं लोकतंत्र के मंदिर में।
