कभी-कभी समझना मुश्किल है कि राहुल गांधी मदद करते हैं मोदी सरकार की या मोदीजी के मंत्री मदद कर रहे हैं राहुल गांधी की। बात कर रही हूं नेता प्रतिपक्ष की हाल में हुई विदेश यात्रा की। राहुल गांधी अक्सर जब विदेश गए हैं पिछले दस वर्षों में, कुछ न कुछ ऐसी बात कर आते हैं, जो भारतीय जनता पार्टी उनके खिलाफ इस्तेमाल करती है। पिछले दौरों में उन्होंने कई उल्टी-सीधी बातें कही हैं, जैसे कि भारत में लोकतंत्र समाप्त हो चुका है और इसको दुबारा जीवित करने के लिए पश्चिमी लोकतांत्रिक राजनेताओं की मदद चाहिए। इस बार उनकी पहली विदेश यात्रा थी बतौर नेता प्रतिपक्ष, इसलिए मैंने सोचा समझदारी से बातें करेंगे। मिलेंगे ऐसे लोगों से, जो भारत के दुश्मन न हों, ताकि उनके दौरे का गंभीरता से विश्लेषण हो देश में।

सिखों पर बयान से खालिस्तानी अलगाववादियों को हुई खुशी

ऐसा सोचा था मैंने, लेकिन ऐसा हुआ नहीं। मालूम नहीं क्या है विदेश की हवा-पानी में कि राहुल गांधी पर असर ऐसा होता है कि उल्टी-सीधी बातें फौरन करना शुरू कर देते हैं। इस बार उन्होंने पहले तो सिखों के बारे में कहा कि उनको भारत में साफा और कड़ा पहनने का अब अधिकार नहीं है। एक तो ये सरासर झूठ है, ऊपर से उन्होंने इस बात को कहकर कनाडा में बसे खालिस्तानी अलगावादियों के दिल इतने खुश किए कि उन्होंने उनकी बातों से खुल कर सहमति जताई। अपने देश में नतीजा यह हुआ कि भाजपा के बड़े नेताओं ने फौरन याद दिलाया गांधी परिवार के इस वारिस को कि सिखों के साथ अत्याचार अगर कभी हुआ था, तो उनके पिताजी के दौर में, जब हजारों सिखों ने अपनी जान गंवाई थी, ऐसे हत्यारों के हाथों जो कांग्रेस पार्टी के जाने-पहचाने कार्यकर्ता थे। जो हुआ, कोई दंगा नहीं था। दंगा होता तो कम से कम एक हिंदू मिलता मरनेवालों में। जनसंहार था और इस जनसंहार को राहुल जी के पिताश्री ने जायज ठहराया यह कहकर कि ‘बड़ा पेड़ गिरता है तो धरती हिलती है’। यानी इंदिरा गांधी की हत्या के बाद ऐसा होना ही था।

विदेश यात्राओं में दिए बेतुके बयान: चुनावी धांधली से लेकर जातिवाद तक बोले

आगे राहुलजी ने यह भी कहा कि हाल में हुए लोकसभा चुनावों में धांधली न हुई होती तो भारतीय जनता पार्टी बुरी तरह हारी होती। इतना तो सोच लिया होता राहुल गांधी ने कि धांधली करनी थी अगर नरेंद्र मोदी को तो इतना तो गारंटी करते कि पूर्ण बहुमत मिले तीसरी बार। यहां भी नहीं रुके कांग्रेस के आला नेता। आगे यह भी कह डाला अमेरिका में कि भारत की नब्बे फीसद आबादी का हाल इतना बुरा है कि आगे बढ़ने के अवसरों से वंचित रहते हैं जातिवाद के कारण। अपने इस सबसे पसंदीदा विषय पर बोलने के बाद उन्होंने अपनी फोटो खिंचवाई इल्हान उमर नाम की एक अश्वेत, मुसलिम सांसद के साथ, जो बार-बार स्पष्ट कर चुकी हैं कि उसकी नजर में भारत में मुसलमानों के साथ इतना जुल्म होता है कि अमेरिका को हमारे साथ रिश्ता तोड़ना चाहिए। यानी राहुल गांधी ने अपने पांव पर कुल्हाड़ी इतनी बार मारी पिछले दिनों कि किसी और को हथियार उठाने की जरूरत ही नहीं थी।

पलटवार करने में लेकिन मोदी के मंत्री इतने उतावले रहते हैं कि गृहमंत्री का बयान आया पिछले सप्ताह जिसमें राहुल गांधी की बातों को तोड़-मरोड़ कर पेश किया गया। राहुल गांधी ने कहा था एक सवाल का जवाब देते हुए कि जातियों के आधार पर आरक्षण तभी समाप्त किया जाएगा जब भारत में हर जाति को बराबर के अवसर मिलने शुरू होंगे। इस पर गृहमंत्री जी ने कहा कि साबित हो गया है कि कांग्रेस पार्टी आरक्षण विरोधी है। कैसे इस बात को कही उन्होंने, समझना मुश्किल है इसलिए कि पिछले कुछ महीनों से राहुल ने अपने आप को पिछड़ी जातियों के मसीहा के रूप में पेश किया है।

जब मोदी के वरिष्ठ मंत्री इस तरह के बयान देते हैं, तो देर नहीं लगती है छुटभैयों को हल्ला मचाने में। सोशल मीडिया पर भाजपा की ट्रोल सेना हावी हो गई यह साबित करने में कि राहुल गांधी देशद्रोही हैं। देशद्रोह का आरोप इतनी आसानी से लगाते हैं मोदी भक्त कि जैसे राष्ट्रवाद का ठेका लेने का अधिकार सिर्फ उनको है। सोचने की तकलीफ नहीं करते हैं ये लोग कि उनको किसी ने हक नहीं दिया है फैसला करने का कि देशद्रोही कौन हैं और देशभक्त कौन। गांधी परिवार को निशाना काफी दिनों से बनाए रखा है मोदी भक्तों ने, लेकिन हाल में मैंने देखा है कि उनकी इस मुहिम में एक नई चीज दिखने लगी है : घबराहट। दिखने लगी मुझे घबराहट पहली बार, जब लोकसभा के परिणाम ऐसे आए कि ‘चार सौ पार’ तो दूर की बात, तीन सौ पार भी सपना बन कर रह गया।

अब घबराहट इतनी ज्यादा दिखने लगी है मोदी के मंत्रियों और भक्तों में कि ऐसा कहना जरूरी हो गया है कि उनको वास्तव में राहुल गांधी से खतरा दिखने लगा है। अभी तक तो आसानी से कहते फिरते थे ये लोग कि गांधी परिवार के वारिस सिर्फ पप्पू हैं और भविष्य में भी पप्पू ही रहेंगे। लेकिन पप्पू शब्द इन दिनों कम सुनाई देता है। घबराहट इसमें भी दिखती है कि राहुल गांधी के हर बयान को खंडन करने पूरी फौज खड़ी हो जाती है भक्तों की। जैसे कि नरेंद्र मोदी को चुनौती देने वाला एक ही व्यक्ति है और वह है राहुल। शायद यह बात सच भी है, लेकिन जिस तरह से उनको बदनाम करने में लग जाते हैं मोदी के समर्थक, उससे फायदा राहुल गांधी का होता है ज्यादा, मोदी का कम। राहुल गांधी अपने पांव पर कुल्हाड़ी मारने में इतने माहिर हैं कि जरूरत ही नहीं है किसी और को वार करने की। मोदी भक्तों को एक पूर्व भक्त से सुझाव: कभी-कभी चुप रहना बेहतर होता है।