कुछ साल ऐसे होते हैं, जिनमें कुछ होता ही नहीं है। बस यों ही दिन गुजरते रहते हैं और साल बदल जाता है। ऐसा साल 2024 नहीं था। राजनीतिक तौर पर दो अति-महत्त्वपूर्ण चुनाव हुए भारत और अमेरिका में और इस वर्ष के अंतिम दिनों में उस पूर्व प्रधानमंत्री का देहांत हुआ, जिसने देश की आर्थिक शक्ल बदल डाली थी। डाक्टर मनमोहन सिंह न होते, तो शायद आज भी भारत समाजवादी आर्थिक नीतियों के दलदल में डूब रहा होता। आज भी लाइसेंस राज के बोझ तले पिस रहे होते हमारे उद्योगपति। माना कि इस आर्थिक परिवर्तन के समय प्रधानमंत्री नरसिंह राव थे, लेकिन उनके वित्तमंत्री थे मनमोहन सिंह, जिनके हाथों में था असली काम।
प्रधानमंत्री बनने के बाद अपने पहले कार्यकाल में उन्होंने आर्थिक सुधारों का सिलसिला जारी रखा इतने जोश से कि 2006 वाले दावोस सम्मेलन में भारत छाया रहा। हिंदी फिल्मी गाने सुना दिए बाजार में और देसी मसालों की महक थी बर्फीली हवाओं में। भारतीय उद्योगपति इतने बड़े बन गए थे कि बड़ी-बड़ी विदेशी कंपनियों के खरीदने लायक। लेकिन इसके बाद सोनिया गांधी ने स्पष्ट किया कि अब उनकी मर्जी से आर्थिक और राजनीतिक नीतियां बनेंगी और उनकी राष्ट्रीय सलाहकार परिषद द्वारा होंगे अहम फैसले।
इस साल राजनीतिक परिवर्तन और भी हुए, जिनमें सबसे महत्त्वपूर्ण था लोकसभा चुनाव, ऐसा कि जनता ने नरेंद्र मोदी का अहंकार तोड़ा। चुनाव का शंखनाद बजाया मोदी ने यह दावा करके कि ‘अबकी बार चार सौ पार’। हुआ यह कि चार सौ पार तो दूर की बात, वे पूर्ण बहुमत भी नहीं ला पाए भारतीय जनता पार्टी के लिए। लोग कहते हैं कि ऐसा इसलिए हुआ, क्योंकि पिछड़े वर्ग और दलित मतदाताओं को विपक्षी दलों ने डरा दिया था कि चार सौ पार अगर मिलते हैं मोदी को, तो संविधान में संशोधन लाकर उनके लिए आरक्षण हटा दिए जाएंगे।
मेरी अपनी राय और है। मेरा मानना है कि मोदी को उनके अहंकार ने नुकसान पहुंचाया। जब उन्होंने चुनाव से पहले कहा कि उनको परमात्मा ने भेजा है धरती पर, तो आम मतदाताओं को अहंकार की बू आई। चुनाव परिणाम जब आए तो मोदी के करीबियों से मुझे मालूम हुआ कि उनका अहंकार बिल्कुल टूट गया था। लेकिन जैसा अक्सर होता रहा है, उनकी सहायता एक बार फिर की राहुल गांधी ने। नेता प्रतिपक्ष क्या बने कि ऐसे पेश आने लगे जैसे प्रधानमंत्री बन गए हैं। जहां जाते, मखौल उड़ाते मोदी का। प्रधानमंत्री की नकल करते हुए छाती चौड़ी करके कहने लगे कि पहले जो ऐसी होती थी उनकी चाल, अब ऐसी हो गई है यानी झुकी हुई। फिर शुरू हुआ संविधान को हाथ में लेकर मोदी को ताने देने वाला तमाशा। कांग्रेस की हर आम सभा में वे दिखते थे संविधान को हाथ में लिए हुए, हर आमसभा में कहते थे कि इसकी सुरक्षा करने की जिम्मेदारी उनकी है, इसलिए कि मोदी इसको बदलने की कोशिश में हैं।
इतना अहंकार जब जनता ने देखा तो पहले हरियाणा में भारतीय जनता पार्टी को जिताया और 2024 के अंतिम दिनों में महाराष्ट्र में। ऐसा हुआ बावजूद इसके कि शायद ही कोई सर्वेक्षण ऐसा था जिसने विपक्ष के इंडिया गठबंधन के जीतने के ठोस आसार नहीं देखे थे। शायद ही कोई राजनीतिक पंडित थे, जिन्होंने भाजपा की हार इन दोनों राज्यों में न देखी हो। जब ऐसा नहीं हुआ, तो नतीजा यह कि मोदी ने अपना खोया हुआ आत्मविश्वास दुबारा पा लिया और अब ऐसा लगता ही नहीं है कि लोकसभा में उनको पूर्ण बहुमत नहीं है आज।
मोदी आज जब दुनिया में घूमते हैं तो बिल्कुल वैसे जैसे अपने पहले दो कार्यकालों में घूमा करते थे, पूरे विश्वास के साथ। विपक्ष की स्थिति यह है कि हाल में समाप्त हुए संसद सत्र को चलने नहीं दिया ऐसे मुद्दे उठा कर, जिनसे आम जनता का कोई मतलब नहीं है। पहले तो संसद में हल्ला मचाया अडाणी पर बहस की जिद करके। जब चर्चा की इजाजत नहीं मिली, तो संसद के प्रांगण में कांग्रेस के सांसद घूमने लगे ‘अडाणी-मोदी भाई-भाई’ की टीशर्ट पहन कर। तमाशा हुआ, लेकिन हासिल कुछ नहीं। ये तमाशा समाप्त हुआ तो बाबासाहेब आंबेडकर का गृहमंत्री द्वारा तथाकथित अपमान को लेकर एक नया तमाशा शुरू हुआ, जिसमें धक्का-मुक्की तक पहुंच गए हमारे सांसद। दोनों तमाशों का नेतृत्व किया राहुल गांधी ने अपनी बहन प्रियंका को साथ में लेकर। इस साल के अंतिम दिनों में वे पहली बार सांसद बनी हैं उस चुनाव क्षेत्र से जो उनके भैया ने त्यागा, जब अमेठी से एक बार फिर जीतने का मौका मिला।
अब जब 2024 का आखिरी सत्र समाप्त हो गया है, तो राहुल गांधी फिर से घूमने लगे हैं आम लोगों के बीच। कभी दिल्ली की सब्जी मंडी में पहुंच कर सब्जियां खरीदने का नाटक करके, तो कभी वहां पहुंच कर जहां किसी भारतीय जनता पार्टी के मुख्यमंत्री के राज में आम लोगों पर अत्याचार हुआ हो। विनम्रता से अर्ज करना चाहती हूं 2024 के इस आखिरी लेख में कि राजनीति तमाशा नहीं है। राजनीति आम लोगों के लिए सबसे महत्त्वपूर्ण जरिया है अपने अधिकार हासिल करने के लिए। भारत को सख्त जरूरत है एक ताकतवर विपक्ष की, ताकि मोदी फिर से न सोचने लगें कि उनको जनता ने नहीं, परमात्मा ने भेजा है। नेता प्रतिपक्ष को अपने सलाहकारों के साथ बैठ कर तय करना चाहिए कि जनता के असली मुद्दे क्या हैं। और उनको संसद में कैसे उठाया जाए।
एक ही राजनीतिक दल है, जो भारतीय जनता पार्टी को राष्ट्रीय स्तर पर चुनौती दे सकता है और वह है कांग्रेस, लेकिन कांग्रेस का नेतृत्व है उस परिवार के हाथों में, जो भारत को अपनी निजी जायदाद समझता है और भारत पर राज करना जन्मसिद्ध अधिकार। इस अहंकार के सामने मोदी का अहंकार कुछ भी नहीं है।