चुनाव परिणामों के बाद एक चैनल ने योगी जी द्वारा दिए गए नारे ‘बटेंगे तो कटेंगे’ की भूमिका को लेकर एक तुरंता ‘सर्वे’ करा डाला, जो बताता रहा कि उनतालीस फीसद लोगों ने माना कि वे इस नारे के जादू से ‘बहुत ज्यादा सहमत’ हैं, जबकि इक्कीस फीसद ने कहा कि वे इससे ‘सहमत’ हैं, और सिर्फ बाईस फीसद ‘असहमत’ दिखे। एंकर ने कहा कि कुल मिलाकर उक्त नारे की जादुई ताकत से साठ फीसद लोग सहमत दिखे! इसके पूरक के रूप में चलाया गया ‘एक हैं तो सेफ हैं’ वाले नारे ने भी ‘बंटेंगे तो कटेंगे’ के अर्थाें को ‘अनुशासित’ करने का काम किया! एक मामूली-सा नारा कैसा गजब ढा सकता है, इसके ‘डिकंस्ट्रक्शन’ से यह समझा जा सकता है!
नारे की ताकत और ‘हिंदू सुनामी’ का प्रभाव
इस नारे को ‘विभाजनवादी’ मानने वाले भी इसकी ताकत को समझ ही नहीं पाए। इसीलिए इसकी कारगर ‘काट’ नहीं कर पाए! एक एंकर ने उल्लसित होकर ‘महायुति’ की इस जीत को महाराष्ट्र में आई ‘हिंदू सुनामी’ कहा। कई चर्चकों ने इसे ‘हिंदुओं’ को ‘एक’ करने वाला बताया। कुछ ने बिना रक्षात्मक हुए इसे पिछले चुनावों में एक अल्पसंख्सक समुदाय की एक उम्मीदवार के नारे ‘वोट जिहाद’ की प्रतिक्रिया में दिया गया बताया। कई ने बताया कि लोकसभा के चुनावों में विपक्ष ऐसे ‘नैरेटिव’ को चलाने में कामयाब रहा कि अगर भाजपा चार सौ सीट जीती तो वह संविधान बदल देगी और आरक्षण खत्म कर देगी। लोग इससे डर गए। कई सत्तापक्षी भी कहते रहे कि लोकसभा चुनावों में अल्पसंख्यकों ने भाजपा के खिलाफ थोक में ‘रणनीतिक वोट’ डाला और ‘चार सौ पार’ के दावे पर ‘ब्रेक’ लगाया!
नारे की आलोचना और विभिन्न दृष्टिकोण
‘बंटेंगे तो कटेंगे’ इस सबकी काट करने के लिए लाया गया। कुछ ने इसे ईजाद करने का श्रेय ‘संघ’ को दिया। कुछ ने इसे ‘डीप हिंदू स्टेट’ को दिया। कुछ ने इसे स्पष्टत: धार्मिक विभाजनकारी कहा। कुछ ने इसे ‘घोर सांप्रदायिक’ बताया। कई ने इसे ‘जहरीला’ भी बताया। कई ने इसे ‘आपस में लड़ाने’ वाला बताया! इसके पक्षधर कहते रहे कि यह सभी को ‘एकजुट’ रखने के लिए है, कि यह ‘जाति पांति’ में बांटने वालों के खिलाफ है, कि यह किसी के खिलाफ नहीं है।
नारे का प्रभाव और प्रधानमंत्री का संदेश
कई नेताओं ने इसके जवाब में तरह तरह के नारे बनाए कि ‘जोड़ेंगे और जीतेंगे’, कि ‘न बटेंगे न कटेंगे, सब एक रहेंगे’, कि ‘जो बांटने वाले, वही काटने वाले’ हैं। लेकिन किसी की एक न चली! लोग पूछते ‘बंटेगा कौन और कटेगा कौन’ और ‘बांटेगा कौन तो काटेगा कौन’? बहसों में लोग पूछते कि ‘कटेंगे कौन’, लेकिन कोई इसका दोटूक जवाब नहीं देता! यही इस नारे की ताकत रही कि यह अपना सारा अर्थ ‘गूढ़ व्यंजना’ में प्रसारित करता रहा, जबकि लोग इसके ‘अभिधार्थ’ के आसपास ही टहलते रहे! खुद प्रधानमंत्री ने भाजपा मुख्यालय में अपने कार्यकताओं को संबोधित करते हुए कहा कि हरियाणा के बाद महाराष्ट्र की जीत का कारण है हमारी ‘एकजुटता’। ‘एक हैं तो सेफ हैं’ आज महामंत्र बन चुका है। यह सोचते थे कि लोग छोटे-छोटे समूहों में बिखर जाएंगे। महाराष्ट्र ने इसे खारिज कर दिया।
झारखंड में ‘इंडिया’ की ‘बंपर जीत’ ने भी चैनलों को इतना नहीं झकझोरा, जितना कि महाराष्ट्र में राजग की रेकार्ड जीत ने! नतीजा यह कि जैसे ही महाराष्ट्र में ‘महायुति’ ने आशातीत जीत के झंडे गाड़े, वैसे ही चैनलों में जीत के कारणों का विश्लेषण किया जाने लगा। हरियाणा के बाद भाजपा का जो नारा महाराष्ट्र में चला, वह झारखंड में नहीं चला।
ऐसी चुनाव चर्चा तभी किनारे हुई जब एक अदालत के आदेश पर संभल की जामा मस्जिद के ‘सर्वे’ की प्रतिकिया में वहां भारी उपद्रव हुआ। कई औरतों समेत दर्जनों गिरफ्तार किए गए। बड़ी संख्या में सुरक्षा दल जुटाए गए। ‘पत्थरबाजों बरक्स पुलिस प्रशासन’ की कथित ‘ज्यादतियों’ पर बहसें टूटती रहीं। कई मुसलिम नेता ‘सर्वे’ के खिलाफ बोलते रहे। नतीजतन, 1991 का ‘प्लेसेज आफ वरशिप एक्ट’ भी विवाद में आया। कुछ अल्पसंख्यक नेता और कुछ विपक्षी नेता कहते रहे कि ‘सर्वे’ गैरकानूनी है। कुछ विपक्षी नेताओं के ऐसे बयान कि लोगों को परेशान करोगे तो वे पत्थरबाजी करेंगे ही और, कि ये छोटे न्यायालय देश में आग लगवाकर रहेंगे… विवाद का विषय बने रहे, जबकि कई एंकर मानते रहे कि कोई कोर्ट छोटा-बड़ा नहीं होता, कि कानून कानून है। बहरहाल, शुक्रवार को सर्वोच्च न्यायालय ने विवाद पर अपना फैसला सुनाकर विवाद को शांत कर दिया।
उधर, ‘बंपर जीत’ ने महायुति में मुख्यमंत्री के सवाल पर कुछ तनातनी करा दी। लेकिन भाजपा के शीर्ष नेतृत्व ने अपनी अधिक सीटों के आधार पर अपना मुख्यमंत्री बनाने का दावा पेश कर साथ ही ‘दो उपमुख्यमंत्री’ बनाने का वादा कर ‘मतभेदों’ पर पानी डाल दिया, लेकिन किसे कितने और कौन-से मंत्रालय मिलें, इस पर मामला अभी अटके रहना है। महाराष्ट्र के परिणाम ने ‘इंडिया’ गठबंधन में दरार-सी डाल दी। एक घटक नेता ने सीधे कह दिया कि ‘कांग्रेस खत्म’, जबकि दूसरे ने कहा कि कि हमारे नेता को ‘इंडिया’ का नेता बनाया जाए, जिसका खंडन घटक दल के एक अन्य नेता ने यह कह कर किया कि यह उनकी व्यक्तिगत राय थी!