एक दिन ‘डर’ की बात चली। हिंदुत्व को हिंसक बताने की आदर्श ‘कक्षा’ चली। फिर ‘हिंदुत्व’ के ‘डर’ से निपटने के लिए ‘शिवजी’ समेत बाकी धर्माें की ‘अभय मुद्रा’ दिखाकर सबको ‘अभय दान’ देने की कोशिश की गई। इसे देख एक इस्लामी विद्वान ने कहा कि इस्लाम में ऐसी मुद्रा कहां से ले आए महाराज!
अगले दिन एक ‘बालक’ के साइकिल से गिरने, रोने और कि ‘चींटी मर गई’ कह उसे बहलाने की कक्षा चली। ऐसे ‘शोर’ ने ‘संवाद’ खत्म किया! देना था ‘धन्यवाद’, लेकिन दिए गए ‘आरोप’ और ‘शोर’! इस तरह के ‘जनतंत्र बचाओ’ का मतलब हुआ: अपनी कहो, लेकिन दूसरे की हरगिज न सुनो… दूसरा बोले तो शोर करते रहो! ‘संविधान’ और ‘जनतंत्र’ को इन दिनों इसी तरह बचाया जाता है।
दो दिन की बहस के बाद लगा कि ‘सत्य’ सिर्फ एक ‘महापुरुष’ के पास है, बाकी के पास सिर्फ ‘असत्य’ है और सब उनके ‘सत्य’ से डरते हैं। शाम की बहसों में बहुत से चेहरे सुर्खरू हो ताल ठोकते दिखे कि देखा… अपने बंदे ने उनकी बोलती बंद कर दी… ‘सत्य’ की जीत हुई। ऐसे दावों को सुन कुछ हिंदुत्ववादी रोते हुए दिखे कि इनका हिंदुत्व को निशाना बनाना नया नहीं हैं… कि ये न भाजपा को जानते हैं, न संघ को जानते हैं और न हिंदुत्व को ही जानते हैं… कि हिंदू धर्म कोई संकीर्ण धर्म नहीं, एक जीवनशैली है… कि हिंदू हिंसक नहीं होता..!
फिर चैनलों में बहसें गरम हुईं। कोई ‘पटेल’ के हवाले से ‘सावरकर’ और ‘गोलवलकर’ को घेरता रहा और कोई प्रवक्ता जवाब देता रहा कि पटेल ने पाबंदी लगाई तो हटाई भी। एक ने तो यह भी कहा कि जो बात हिंदू धर्म के बारे में कही है, वैसी जरा किसी और धर्म के बारे में ऐसा कह के देखते तो मालूम पड़ता! बहसों में आरोप लगते रहे कि जो ‘सत्य वचन’ बोले गए, उनको रिकार्ड से क्यों हटाया गया… कि माइक क्यों बंद किया गया? अध्यक्ष जी ने स्पष्ट किया कि बिना तथ्य के एक बड़े समुदाय को हिंसक कहना उचित नहीं… कि माइक को बंद करने का बटन उनके पास नहीं होता।
इसके बाद उत्तर प्रदेश के जिला हाथरस की सिकंदराराउ तहसील के एक गांव में आयोजित एक सत्संग के दौरान हुई त्रासदी की कहानी आ बैठी और अधिकांश चैनलों के कैमरे हाथरस के उस गांव की ओर मुड़ गए और उस दर्दनाक दुर्घटना की विस्तार से खबरें देते रहे, जिसमें एक ‘बाबा’ के सैकड़ों निरीह निर्दाेष भक्त, यानी पुरुष, महिलाएं और बच्चे ‘अकारण’ ही मारे गए। इस भयावह त्रासदी की खबर के केंद्र में रहे एक स्वनामधन्य ‘भोले बाबा’ उर्फ ‘नारायण साकार हरि’ उर्फ ‘सूरजपाल’ उर्फ ‘कई तरह के अपराधों’ के लिए आरोपी एक पूर्व कांस्टेबल। कई चश्मदीद गवाह चैनलों को बताते रहे कि सत्संग के खत्म होते ही बाबा की चरण धूल लेने के लिए भगदड़ मची और लोग मौत के मुंह में समाते गए।
इसके बाद, जितने चैनल उतनी रपटें और जितने मुंह उतनी बातें। कहां विकसित भारत की पुकार और कहां एक बाबा के चरणों की धूल लेने से रोगमुक्त होने का ‘अंधविश्वास’ और भगदड़ के कारण दर्दनाक मौतें, चीख-पुकार, रोना-धोना और न्याय की एक कमजोर-सी पुकार। इस ‘दुर्घटना’ के बाद वही हुआ जो होना था: दुर्घटना के तुरंत बाद उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री का दुर्घटना स्थल का दौरा, फिर सरकार द्वारा मृतकों व घायलों को मुआवजे की घोषणा, फिर प्रधानमंत्री द्वारा मुआवजे की घोषणा, फिर एक सेवानिवृत्त हाईकोर्ट जज की सदारत में तीन सदस्यीय जांच समिति के गठन का आदेश और तय समय में रपट देने व दोषियों पर कठोर कार्रवाई करने के वचन।
एक दिन एक विपक्षी नेता ने कह दिया कि हादसे होते रहते हैं… फिर एक बड़े विपक्षी नेता ने भी हाथरस जाकर ‘हमदर्दी दौरा’ किया और कह दिए कि सरकार को ज्यादा से ज्यादा मुआवजा देना चाहिए। कई एंकर चीखते रहे कि इसके लिए ‘बाबा’ ही जिम्मेदार है, लेकिन ‘बाबा’ का ऐसा रुतबा कि उसका नाम न प्राथमिकी में नजर आया और न उसे किसी बड़े आदमी ने दोषी ठहराया और न भक्तों ने ही बाबा को जिम्मेदार ठहराया। कुछ कहते कि ‘प्रशासन जिम्मेदार’ और प्रशासन कहता कि ‘साजिश’ है।
बहरहाल, इस ‘कलह क्रंदन’ के बीच सबसे आनंददायक खबर आई ‘बारबडोस’ से जहां ‘टी 20’ के ‘विश्व कप’ के फाइनल में ‘टीम इंडिया’ ने साउथ अफ्रीका को हराकर और विश्व कप जीतकर देश के 140 करोड़ लोगों का दिल जीत लिया। भारत आने पर सबसे पहले प्रधानमंत्री ने ‘टीम इंडिया’ का स्वागत किया, फिर मुंबई में टीम इंडिया ने एक भीड़ भरा ‘रोड शो’ किया, फिर ‘वानखेडे स्टेडियम’ में देर तक नाच-गाकर सारे देश के क्रिकेट प्रेमियों को खूब आनंदित किया!