पिछले सप्ताह दिल्ली में मुझे एक पुराना कांग्रेसी दोस्त मिला। वह कांग्रेस में कई दशकों से है, लेकिन अब इसकी अहमियत कम हो गई है इसलिए कि इन दिनों जो वरिष्ठ नेता रह गए हैं इस दल के ऊंचे ओहदों पर, वे वही हैं, जो राहुल गांधी के खास खुशामदी माने जाते हैं। मेरे दोस्त की राजनीतिक समझ बहुत अच्छी है, लेकिन खुशामद करने में थोड़े पीछे रह गए हैं, सो इनका चेहरा नहीं दिखता है टीवी पर आजकल।
मैंने जब भी इस दोस्त से कोई राजनीतिक सवाल पूछा है, उसने ईमानदारी से जवाब दिया है, सो इस बार मैंने जब उससे पूछा कि उसकी राय में निकट भविष्य में क्या होने वाला है, तो उसने यह कहा, हम तो हरा नहीं सकते हैं मोदी को। उनको अगर हटाया जाएगा, तो उनके अपने ही लोग हटाएंगे। सुना है कि आरएसएस मोदी से खुश नहीं है और शायद जब पचहत्तर के हो जाएंगे इस साल, उनको सुझाव दिया जाएगा कि अब किसी और की बारी है प्रधानमंत्री बनने की।
कांग्रेसी बयान दे रहे हैं कि थरूर ‘मोदी के सुपर प्रवक्ता’ बन गए हैं
इस जवाब से साफ जाहिर हुआ कि कांग्रेस का हाल अच्छा नहीं है। इस मुलाकात के कुछ ही दिन बाद शशि थरूर पर हमला करने लगे कांग्रेस के वे नेता जो राहुल गांधी के करीबी माने जाते हैं। थरूर साहब पर काफी दिनों से हमले करते आए हैं कांग्रेसी, लेकिन इस बार उनकी इस बात को लेकर आलोचना हुई, कड़े शब्दों में कि उन्होंने कहा कि ‘सर्जिकल स्ट्राइक’ पहली बार किया था भारत ने पाकिस्तान पर नरेंद्र मोदी के प्रधानमंत्री बन जाने के बाद। इतना गुस्सा दिखा कांग्रेस में कि कुछ ऐसे बयान भी आए कि थरूर ‘मोदी के सुपर प्रवक्ता’ बन गए हैं’। थरूर साहब फिलहाल कई देशों का दौरा कर रहे हैं ‘आपरेशन सिंदूर’ पर भारत की बात रखने, सो शायद ज्यादा जोश में बोले होंगे। मनमोहन सिंह के दौर में भी हमारी सेना ने सीमा पार जाकर पाकिस्तानी सैनिकों को मारा था, लेकिन इसको ‘सर्जिकल स्ट्राइक’ नाम नहीं दिया गया था। न ही वे हमले आतंकवादियों के अड्डों पर हुए थे।
शशि थरूर कांग्रेस के वरिष्ठ नेताओं में हैं। आज तक वे चुनाव हारे नहीं हैं। और उनकी इज्जत करते हैं वे लोग भी जो कांग्रेस के सदस्य नहीं हैं, तो उन पर क्यों बार-बार हमला कर रहे हैं उनके अपने लोग? क्या इसलिए ही हो रहे हैं ये हमले क्योंकि थरूर साहब की बातों की इज्जत राहुल गांधी की बातों से ज्यादा की जाती है? मेरी राय में उनकी समस्या यही है। इस बात का जिक्र इसलिए कर रही हूं आज, क्योंकि ऐसा लगने लग गया है कई राजनीतिक पंडितों को कि कांग्रेस अब अपनी ही दुश्मन बन गई है इतनी ज्यादा कि ऐसा लगता है कि आत्महत्या करने पर तुली हुई है।
मुकेश भारद्वाज का कॉलम बेबाक बोल: जी हुजूर (थरूर)
राहुल गांधी और उनके करीबी कुएं के दद्दू बन कर बैठे हुए हैं। इतना तंग है उनका नजरिया कि आपरेशन सिंदूर के बाद उनकी तरफ से एक भी ऐसा बयान नहीं आया है जिससे लगे कि उनको देश की चिंता है, सिर्फ अपनी चिंता नहीं। छोटी-छोटी बातों में उलझे रहते हैं ये लोग इतना कि आजतक कोई समझ नहीं पाया है कि अगर कभी उनकी बारी आती है दोबारा देश की बागडोर संभालने की, तो उनकी नीतियां क्या होंगी। जम्मू-कश्मीर को लेकर क्या नया करने वाले हैं? जिहादी आतंकवाद को रोकने के लिए उनके क्या सुझाव हैं? देश को सुरक्षित रखने के लिए क्या नए कदम उठाने वाले हैं? विदेश नीति उनकी क्या होगी?
असली मुद्दे ये हैं, लेकिन इन पर बोलने के बदले गांधी परिवार के वारिस राहुल और प्रियंका अक्सर नरेंद्र मोदी को नीचा दिखाने में ही लगे रहते हैं। यह भी ऐसा करते हैं जैसे मोदी से उनको खास नफरत है। आज तक मैंने इन दोनों से मोदी की एक भी नीति की तारीफ नहीं सुनी है। तारीफ तो दूर की बात, ऐसा लगता है कि उनकी अगर कोई रणनीति है मोदी को हराने की तो सिर्फ यह कि कभी न कभी जनता खुद समझ जाएगी कि मोदी को हटाना जरूरी है। मतदाताओं में अगर आज भी मोदी की लोकप्रियता दिखती है, तो शायद कारण यही है कि विकल्प के तौर पर राहुल और प्रियंका अपने परिवार को पेश करते हैं कोई नई नीति, कोई नए विचार नहीं।
मुकाबला कर रहे हैं एक ऐसे राजनेता की जो रोज कुछ नया रखते हैं देश के सामने। आपरेशन सिंदूर की वजह से फिलहाल कोई नए मुद्दे पर बात नहीं कर रहे हैं प्रधानमंत्री, लेकिन जब आपरेशन सिंदूर का जोश कम हो जाएगा, तो जरूर बातें होने लगेंगी विकास और आर्थिक तरक्की की। ऊपर से जनता देख सकती है किस तेजी से सड़कें बन रही हैं, किस तेजी से रेलवे सेवाओं में बेहतरी लाई जा रही और कितने नए हवाई अड्डे बन गए हैं पिछले ग्यारह सालों में। कहने का मतलब है कि जिस सुस्त रफ्तार से देश की गाड़ी चलती थी कांग्रेस के दौर में उसको बिल्कुल बदल कर रखा है मोदी ने।
ऐसा नहीं है कि मोदी के राज में गलतियां नहीं हुई हैं। कई सारी हुई हैं, लेकिन इन गलतियों का लाभ कांग्रेस पार्टी को नहीं मिला है क्योंकि कांग्रेस का राजपरिवार उन छोटी-छोटी बातों में उलझा रहा है जिनका जनता की अपेक्षाओं और उम्मीदों से कोई वास्ता नहीं है। सो मेरे पुराने कांग्रेसी दोस्त गलत नहीं हैं, जब कहते हैं कि मोदी को हराना अब कांग्रेस के बस की बात नहीं है। प्रधानमंत्री बने रहेंगे जब तक उनके अपने लोगों को लगने नहीं लगेगा कि उनकी गलतियों की वजह से देश को नुकसान पहुंच रहा है इतना कि अब किसी और को मौका देना चाहिए। वह दिन दूर है इतना कि दिखाई नहीं देता है चाहे दूरबीन लगा कर क्यों न देखा जाए।