बहुत दिनों बाद ‘लोकतंत्र’ बचा। बहुत दिनों बाद ‘लोकतंत्रियों’ के सदैव खिन्न दिखते चेहरों पर खुशी नजर आई। इसके बाद मुख्यालय पर पटाखे थे और बहसें थीं। चैनल उछाह में मानों कविताएं लिखने लगे कि दक्षिण का दरवाजा नहीं खुला, कि दक्षिण में हिंदुत्व की दुकान बंद… कर्नाटक हारी, अब दिल्ली की बारी… आह! वे देवोपम लंबे ‘रोड शोज’ किसी काम न आए। वे पुष्पवर्षाएं भी अकारथ गईं और बहसों के बीच कई प्रवक्ताओं के सदैव जोशीले दिखते चेहरे इस कदर किंकर्तव्यविमूढ़ दिखे कि जीतने वालों को दिल खोल कर बधाई तक न दे सके।
एक विजयी ने इसका ताना तक मारा। चुनाव विश्लेषकों की बन आई: एक कहिन कि ‘चालीस परसेंट की सरकारा’ ने दे मारा। दूसरे कहिन कि ‘लिंगायतों’ ने दे मारा। तीसरे कहिन कि अपने ‘निष्कासितों’ ने दे मारा। चौथे कहिन कि ‘हिजाब’, ‘हलाल’ और ‘बजरंगबली’ ने दे मारा। पांचवें कहिन ‘अहंकार’ ने दे मारा। छठा बोला कि ‘भारत जोड़ो’ ने दे मारा और ‘नफरत के बाजार’ में ‘मुहब्बत की दुकान’ खुली।…
कुछ विश्लेषक चेताते रहे कि वोट तो हारने वालों का भी उतना ही रहा, जितना पहले रहा। इस तरह वे उतना नहीं हारे जितना आप जीते! हारने वालों का वोट फीसद तो लगभग जस का तस ही रहा, यानी ‘हिंदुत्व’ अभी जिंदा है। भैये! यही तो ‘प्राब्लम’ है कि कित्ता भी मारो, हिंदुत्व मरता ही नहीं, वह बचा रह जाता है।…
बहरहाल, चुनाव परिणाम आने के बाद ‘मुहब्बत की दुकान’ में इतनी मुहब्बत बरसी कि बंगलुरु से दिल्ली तक सब चार-पांच दिन तक नहाए रहे। एक कहता कि तुम मुझे भूल भी जाओ तो ये हक है तुमको, मेरी बात और है, मैंने तो मुहब्बत (मेहनत) की है। जो कहा, वह नतीजा दे दिया।…
मगर मुहब्बत की इस दुकान में भी प्रतिस्पर्धा पैदा हो गई। पार्टी को मां मानने वाले ने फरमाया कि सीएम से कम कुछ नहीं। एक चैनल में खबर फैलाई गई कि सीएम तो बड़के ही बनेंगे…
उसके बाद ‘मुुहब्बत की दुकान’ में चार दिन लंबा जो ‘मिलन-रूठन-कूटन-फूटन’ चला उसने चैनलों तक को ऊबा दिया और अंत में जब मुख्यमंत्री और उप-मुख्यमंत्री की ‘मुहब्बत की दुकान’ खुली, तो कहानी दिल्ली से लौट कर बंगलुरु पहुंची, जिसे देख कई ‘लोकतंत्रियों’ के कान तुरंत खड़े हो गए।…
एक ‘लोकतंत्री’ कहिन कि जो जहां मजबूत है, वह वहां से लड़े। आप जिन दो सौ पर दो नंबरी थे वहीं से लड़ें। हमारे यहां हमें लड़ने दें, यानी ‘मेरे अंगने में तुम्हारा क्या काम है…’ इस तरह बेचारा लोकतंत्र बचता रहा: लोकतंत्र को बचाने वाले अपने को पहले बचाते, फिर उसे बचाने की बात करते। एक बोला, ऐसे तो बच लिया लोकतंत्र।…
नए ‘शपथ ग्रहण समारोह में किसे बुलाएं, किसे नहीं’ ने फिर फंसट डाली। चैनल चहकने लगे कि उसे उसे न्योता नहीं गया… क्यों? इस कहानी के समांतर दूसरी बड़ी कहानी ‘द केरल स्टोरी’ की रही। कई चैनल बताते रहे कि फिल्म ने नौ दिन में 135 करोड़ की कमाई की है, कि यह एक ‘सुपर हिट’ फिल्म है और ग्लोबल देखी जा रही है। फिर एक चैनल ने ‘द केरल स्टोरी’ के तीन वास्तविक चरित्रों (लड़कियों) से बात की, तो मालूम हुआ कि ‘आइएसआइएस’ वाले किस तरीके से धर्मांतरण कराते हैं। यहां एक से एक भयावह किस्म की ‘लव जिहादी’ कहानी रही। फिर भी कई कथित ‘सेक्युलर लिबरल’ यही कहते रहे कि यह इस्लाम के खिलाफ ‘प्रोपेगेंडा’ है, कि यह झूठ है, कि बत्तीस हजार लड़कियों का आंकड़ा गलत है।…
जब एंकर कहता कि यह किसी धर्म के खिलाफ नहीं है, कि तीन की कहानी ‘सच’ हो तो भी क्या यह चिंता की बात नहीं है? बहसों में कई कथित ‘लोकतंत्रियों’ को ‘आइएसआइएस’ की चिंता अधिक दिखती थी और ‘द केरल स्टोरी’ के ‘लोकतंत्र’ और ‘अभिव्यक्ति की आजादी’ की चिंता नहीं दिखती थी। अंतत: ‘द केरल स्टोरी’ के ‘लोकतंत्र’ को बचाया सर्वोच्च न्यायालय ने! उसने फिल्म पर, बंगाल सरकार के लगाए ‘प्रतिबंध’ को हटाया और यह भी कहा कि जिनको नहीं देखना है वे फिल्म न देखें।…
फिर एक चैनल ने ‘द केरल स्टोरी’ जैसे नरक से किसी तरह जीवित निकल कर आईं अन्य ‘छब्बीस पीड़ित’ लड़कियों की आपबीती सुनाई, जिनको सुनकर कलेजा मुंह को आता था, लेकिन कथित ‘सेक्युलर लिबरल’ फिर भी इसे सिर्फ प्रोपेगेंडा और संघ के एजंडे को बढ़ाने वाला कहते रहे।
इस सप्ताह की तीसरी बड़ी कहानी बाबा बागेश्वरधाम वाले बागेश्वर सरकार की रही। उन्होंने भी अपने भक्तों का लक्खी दरबार वहां लगाया, जहां ‘लोकतंत्र’ के सबसे ‘निस्वार्थी रक्षक’ लोकतंत्र बचाने के लिए सारे देश में अलख जगाने निकलते रहते हैं।
और यहां भी दसियों लाख की भीड़ के बीच बाबा अपने ‘संदेश’ देते रहे कि हिंदू राष्ट्र की ज्वाला बिहार से भड़केगी, कि रामचरितमानस राष्ट्रग्रंथ बने तो भारत विश्वगुरु बनेगा कि भक्त साथ देंगे, तो भारत को हिंदू राष्ट्र बना देंगे… पूरे चार दिन बाबा भक्तों की पर्ची निकालते रहे… उनको ‘ठीक’ होने का मंत्र देते रहे और कोसने वाले उनको कोसते रहे!
बाकी,‘पायलट-गहलोत’ की ‘कुश्ती’ का एक ट्रेलर आ चुका है। उसे देख कई विश्लेषक कर्नाटक में भी भावी ‘पायलट गहलोत’ के दर्शन करते दिखे हैं। यह तो ‘एक म्यान में दो तलवार’ वाली बात हुई प्यारे!