कर्नाटक को कई वजहों से पूरे भारत और दुनिया भर में जाना जाता है। सबसे उल्लेखनीय कारण इस राज्य की राजधानी बंगलुरु है, जिसे भारत की सूचना प्रौद्योगिकी की राजधानी कहा जाता है। व्यापार और पूंजी की उड़ान के संदर्भ में ‘बंगलोर्ड’ शब्द अमेरिका में एक खतरनाक अर्थ में प्रचलित हो गया है। व्यवसाय और पूंजी के प्रवाह के चलते बंगलुरु युवा पेशेवरों, खासकर आइटी पेशेवरों के लिए एक प्रतिष्ठित कार्यस्थल बन गया है। प्रति व्यक्ति राज्य घरेलू उत्पाद (मौजूदा कीमतों में) के मामले में कर्नाटक की रैंक सभी राज्यों में प्रभावशाली चौथे स्थान पर है।

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इन सभी वजहों से कर्नाटक को देश के शीर्ष पांच राज्यों में रखा जाना चाहिए। मगर दुर्भाग्य से, ऐसा है नहीं। अगर 2019-21 के दौरान के स्वास्थ्य और शिक्षा संबंधी कुछ संकेतकों पर नजर डालें, तो बात स्पष्ट हो जाती है (स्रोत: द हिंदू, दिनांक 25 अप्रैल, 2023): (देखें तालिका)

School and women

यह कर्नाटक के संकट का अंत नहीं है। 2018 में कर्नाटक विधानसभा के पंद्रहवें आम चुनाव के बाद, यहां चार अल्पकालिक सरकारें रही हैं, जिनका कार्यकाल क्रमश: 6 दिन, 1 वर्ष 64 दिन, 2 वर्ष 2 दिन और वर्तमान सरकार 28 जुलाई, 2021 से है (जिसका कार्यकाल 10 मई, 2023 को अगले चुनाव के बाद समाप्त हो जाएगा)। अस्थिरता के इस घिनौने नाटक का खलनायक निर्विवाद रूप से भाजपा है।

कोई तर्कसंगत बहस नहीं

इन अस्थिर और अल्पकालिक सरकारों के नतीजों का अनुमान पहले से था। लोगों की धारणा है कि वर्तमान सरकार राज्य के इतिहास में सबसे भ्रष्ट सरकार है और इसे ‘चालीस फीसद की सरकार’ कहा जाने लगा है। यह जुमला ‘कर्नाटक कांट्रैक्टर्स एसोसिएशन’ के आधिकारिक पत्र से निकला है, जिसमें सरकार पर हर काम के लिए चालीस फीसद कमीशन या रिश्वत मांगने और लेने का आरोप लगाया गया था।

इसके अलावा, कृषि, शिक्षा, स्वास्थ्य सेवा, रोजगार, बुनियादी ढांचे और अर्थव्यवस्था में भाजपा की वादाखिलाफी की एक लंबी फेहरिस्त है। इसके अलावा, पिछले चार वर्षों में सामाजिक और राजनीतिक विमर्श हिजाब, हलाल, लव जिहाद, धर्मांतरण विरोधी कानून, यहां तक कि 1782 से 1799 तक शासन करने वाले टीपू सुल्तान जैसे फालतू विवादों के आसपास केंद्रित रहा है!

लोगों को उम्मीद रही होगी कि इस वक्त चल रहे चुनाव अभियान में बहस बेरोजगारी, मुद्रास्फीति, बुनियादी ढांचा और भ्रष्टाचार जैसी आम लोगों की समस्याओं से जुड़े वास्तविक मुद्दों के इर्द-गिर्द घूमेगी, जो हर सर्वेक्षण या जनमत सर्वेक्षण में सामने आते रहे हैं। 2,58,000 सरकारी पद खाली हैं। 2020 से अब तक 1258 कंपनियां बंद हो चुकी हैं। तेरह सार्वजनिक निगम काम नहीं कर रहे हैं। घोटालों के बहुत सारे आरोप हैं।

ध्रुवीकरण की रणनीति

अफसोस की बात है कि बहसें अवास्तविक रही हैं। जब एक कथित रूप से भ्रष्ट मुख्यमंत्री का संदर्भ दिया गया, तो उसे इस तरह से प्रचारित किया गया कि जैसे सारे लिंगायत समुदाय को भ्रष्ट कहा गया है, जिस समुदाय से मुख्यमंत्री का ताल्लुक है। केंद्रीय गृहमंत्री ने मतदाताओं को चेतावनी दी कि अगर कांग्रेस सत्ता में आई तो ‘कर्नाटक में दंगे होंगे’। भाजपा (जिसने 224 निर्वाचन क्षेत्रों में किसी भी मुसलिम उम्मीदवार को मैदान में नहीं उतारा है) के प्रमुख नेताओं ने खुले तौर पर घोषणा की कि ‘हमें मुसलमानों का वोट नहीं चाहिए’।

कांग्रेस के घोषणा पत्र में बजरंग दल और पापुलर फ्रंट आफ इंडिया जैसे नफरत फैलाने वाले संगठनों के खिलाफ निर्णायक कानूनी कार्रवाई करने, उन पर प्रतिबंध लगाने के आशय वाली बात को कुछ इस तरह तोड़-मरोड़ कर पेश किया गया कि भगवान हनुमान (बजरंग बली) के उपासकों को जेल में डाल दिया जाएगा। यहां तक कि प्रधानमंत्री ने बड़े जादुई ढंग से बजरंग दल (एक दक्षिणपंथी संगठन) को बजरंगबलियों (भगवान हनुमान के भक्त) में बदल दिया! सबसे चौंकाने वाला बयान केंद्रीय गृहमंत्री का था, जिसमें उन्होंने कर्नाटक के लोगों से ‘श्री मोदी को राज्य सौंपने’ की अपील की थी। क्या संघीय व्यवस्था होने के बावजूद हर राज्य, नगरपालिका और पंचायतों में प्रधानमंत्री का शासन होगा?

भाजपा के घोषणा पत्र में समान नागरिक संहिता (यूसीसी) और राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर (एनआरसी) के विचार को आगे बढ़ाने का वादा किया गया है। इन दोनों मुद्दों ने उत्तरी और उत्तर-पूर्वी भारत के कई राज्यों को विभाजित और ध्रुवीकृत कर दिया है। कांग्रेस पार्टी ने अपने घोषणा पत्र में ‘पांच गारंटी’ दी है, जिस पर सालाना तीस हजार से पैंतीस हजार करोड़ रुपए खर्च होंगे।

Karnataka Election 2023, PM Modi.
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने उत्तर कन्नड़ जिले के अंकोला में कर्नाटक के पद्म पुरस्कार प्राप्त तुलसी गौड़ा और सुकरी बोम्मगौड़ा से मुलाकात की।

भाजपा के घोषणा पत्र में तीन हिंदू त्योहारों के मौके पर एक साल में तीन सबसिडी वाले गैस सिलेंडर देने का वादा किया गया है; हर बीपीएल परिवार को प्रतिदिन आधा लीटर दूध देने और एक रियायती कैंटीन की योजना का वादा है, जिसमें एक कटोरी चावल, दाल, सांभर, दही और छह कप सब्जियों से युक्त भोजन (चित्र) परोसने की बात कही गई है! इस बीच, प्रधानमंत्री ने ‘मुफ्त की संस्कृति’ के खिलाफ चेतावनी भी दी!

सत्ताधारी दल के दोनों शीर्ष नेताओं- प्रधानमंत्री और गृहमंत्री- ने राज्य सरकार के खराब प्रदर्शन का बचाव करने का कोई प्रयास नहीं किया। वे जनता से जुड़े वास्तविक मुद्दों पर चुप्पी साधे रहे; यह मौन निश्चित रूप से सुनहरा नहीं था। उनके भाषण दिन पर दिन तीखे होते गए और चुनाव प्रचार पूरी तरह से प्रधानमंत्री द्वारा झेले गए ‘अपशब्दों’; भगवान शिव; भगवान हनुमान; बजरंग बली पर केंद्रित हो गया। वह सारा दृश्य महाभारत कालीन युद्ध के मैदान जैसा लग रहा था, जहां शासक वर्ग को पूर्व शासकों द्वारा चुनौती दी गई हो। क्या इतिहास खुद को दोहराएगा?