आपरेशन सिंदूर’ पर बहस का समय तय, फिर भी संसद के ‘मकर द्वार’ पर विपक्षी सांसदों का ‘पोस्टर बैनर’ सहित विरोध कि ‘एसआइआर बंद करो’। बहस में ‘आपरेशन सिंदूर’ पर विपक्ष के दो सवाल कि आतंकी कहां गए और ट्रंप ने क्यों कहा कि उन्होंने युद्ध रुकवाया। संसद में प्रियंका गांधी की चोट, उधर राहुल गांधी के क्षुब्ध स्वर कि ट्रंप का नाम लेकर खंडन क्यों नहीं करते… अपने कितने जेट गिरे… और अखिलेश यादव के कुछ तंज!
रक्षामंत्री राजनाथ सिंह और विदेश मंत्री जयशंकर ने संसद को बताया कि किस तरह भारत की सेना ने बाईस मिनट में दसियों आतंकी ठिकाने नेस्तनाबूद किए। सौ से अधिक आतंकी खत्म किए। भारत को कोई बड़ी भौतिक हानि नहीं हुई। मार से विचलित डीजीएमओ की डीजीएमओ से गुहार कि अब हमला बंद करें और हमने बंद कर दिया। ‘आपरेशन सिंदूर’ स्थगित हुआ है, खत्म नहीं। विदेश मंत्री ने स्पष्ट किया कि युद्ध के बीच किसी भी विदेशी मुखिया से प्रधानमंत्री की कोई बात नहीं हुई।
दूरियां मिटनी चाहिए, एक दूसरे को समझने की कोशिशें होनी चाहिए
गृहमंत्री और प्रधानमंत्री ने भी विस्तार से बताया और कहा कि युद्ध के दौरान प्रधानमंत्री की किसी से बात नहीं हुई, लेकिन विरोध जारी। फिर एक दिन चुनाव आयोग बिहार में ‘एसआइआर’ के आंकड़े देता है, लेकिन विरोध जारी। फिर एक दिन बिहार के एक विपक्षी नेता कह उठते हैं कि चुनाव का ‘बहिष्कार’ कर सकते हैं तो सत्तापक्ष के एक नेता उनको प्रति-धमकी दे देते है कि हिम्मत है तो ‘बहिष्कार’ करके दिखाएं। फिर एक दिन मोहन भागवत की पचास मुसलिम इमामों से भेंट और चैनल चर्चा कि दो टूटे दिल फिर मिल रहे हैं। एक इमाम कहिन कि दूरियां मिटनी चाहिए। एक दूसरे को समझने की कोशिशें होनी चाहिए।
फिर एक दिन विपक्ष के बड़े नेता ने ओबीसी का सम्मेलन बुलाकर कहा कि शुरू में वे ओबीसी को नहीं समझे… तभी समझते तो अब तक जाति गणना शुरू करा देते… प्रधानमंत्री में दम नहीं… वे सिर्फ ‘शो’ हैं, अंदर कुछ नहीं है… मैं जानता हूं… संसद में मुझे बोलने नहीं दिया जाता!
फिर कुछ चैनलों पर ‘परस्परं प्रशंसति अहोरूपं अहोध्वनि:’ के शास्त्रीय दृश्य दिखे। एक भक्त को अपनी नेता का ‘प्रशंसा पत्र’ मिला तो वह विह्वल होकर कहने लगा कि वे देवी हैं। बलिदान का मूर्तिमान रूप हैं। चायवाला मसीहा नहीं हो सकता। उनकी ‘नेता’ से मिला प्रशंसापत्र कहता था कि भक्त ‘आस्कर’ योग्य है। कुछ लोग कहे कि ये ‘चापलूसी संस्कृति’ है, लेकिन हम तो इसे ‘जनतांत्रिक भक्ति’ कहेंगे।
इसी ‘जनतांत्रिक भक्ति भाव’ से भर कर एक अन्य भक्त जी कहने लगे कि वे ओबीसी के लिए ‘आज के आंबेडकर’ हैं… आने वाले दिनों के ‘आंबेडकर’ हैं… दूसरे ‘आंबेडकर’ हैं। इस पर भाजपा के एक बड़े नेता कहते दिखे कि ये दलितों का अपमान है..! गुस्ताखी माफ सर जी… एक दलित नेता अपने दलित प्रतीक के ‘तमगे’ को चाहे जिस पर चिपकाएं, उनकी मर्जी… आप कौन? यह ‘भक्ति भाव’ यहीं नहीं रुका, बल्कि कर्नाटक तक पहुंच गया, जहां एक नए भक्त ने मुख्यमंत्री की तुलना मैसूर के नामी ‘चोल महाराजा’ से करके अपने को ‘धन्य’ किया।
फिर एक दिन पाकिस्तान की क्रिकेट टीम के साथ भारत की टीम के खेलने के संदर्भ में पूर्व कप्तान गांगुली ने कह दिया कि ‘शो मस्ट गो आन’ तो सरकार फिर कुटी कि जिस पाक के भेजे आतंकियों ने पहलगाम में भारत की विवाहिताओं का सिंदूर उजाड़ा, उसके साथ खेल क्यों? जिससे व्यापार बंद, वार्ता बंद, पानी बंद, तब मैच कैसे? वह तो गनीमत हुई कि अपनी टीम के क्रिकेट खिलाड़ियों ने एक दिन कथित मैच के बहिष्कार का एलान कर मामले को ठंडा किया।
कभी जलेबी-समोसे पर लेबल तो कभी नेता जी के थप्पड़; सुधीश पचौरी बता रहे इस हफ्ते की अजीब-सच्ची खबरें
एक दिन फिर ट्रंप ने एक जुमला जड़ दिया कि ‘भारतीय अर्थव्यवस्था मृत है’ तो विपक्ष के नेता ने भी उठा लिया कि इनके दोस्त ट्रंप कह रहे हैं कि ‘भारतीय अर्थव्यवस्था मृत हो चुकी है’। इसके बाद, चैनलों की बहसें दो फाड़! विपक्ष के मजे कि जो इनके दोस्त थे, वे ही इनकी अर्थव्यवस्था को ‘मृत’ बता रहे हैं। एक एंकर कहिन कि चूंकि संसद में यह कह दिया गया कि युद्ध के दौरान प्रधानमंत्री की किसी नेता से बात नहीं हुई, इससे ट्रंप चिढ़ गए लगते हैं। इसी क्रम में ट्रंप का एक और फैसला आया कि अब भारत पर शुल्क 25 फीसद होगा।
लेकिन फिर मालेगाव विस्फोट के मामले में अदालत के फैसले ने विपक्ष को ‘रक्षात्मक’ बना दिया। अदालत ने कथित सातों आरोपितों को प्रमाण के अभाव में, सभी आरोपों से मुक्त कर दिया। अंत में, विपक्ष के एक बड़े नेता ने एक ‘गुगली’ फेंकी: चुनाव आयोग वोट ‘चोरी’ करा रहा है… मेरे पास पक्के सबूत हैं। अपनी ‘पड़ताल’ या ‘छानबीन’ कराई है। ये ‘एटम बम’ है, वह फूटेगा तो आयोग दिखेगा नहीं..!